जिलाधिकारी किसी जिले का मुख्य कार्यकारी, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारी होता है. जिले का अधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा का एक प्रमुख प्रशासनिक पद है. जिसे अंग्रेजी में ” डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ” या सिर्फ “कलेक्टर” के नाम से भी जाना जाता है भारत के प्रत्येक जिले का एक अपना उपायुक्त होता है. अंग्रेज शासन के दौरान सन 1772 में गव्हर्नर जनरल लोर्ड वॉरेन हेस्टिंग द्वारा बुनियादी रूप से नागरिक प्रशासन और ‘भू राजस्व की वसूली’ के लिए गठित ‘जिलाधिकारी’ का पद, अब राज्य के लोक-प्रशासन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पदों में प्रमुख स्थान पर आता है.
जिलाधीश और कलेक्टर के रूप में जिले में राज्य सरकार का सर्वोच्च अधिकार संपन्न प्रतिनिधि या प्रथम लोक सेवक होता है. जो मुख्य जिला विकास अधिकारी के रूप में सारे प्रमुख सरकारी विभागों : पंचायत एवं ग्रामीण विकास, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, आयुर्वेद, अल्पसंख्यक कल्याण, कृषि, भू-संरक्षण, शिक्षा, महिला अधिकारता, ऊर्जा, उद्योग, श्रम कल्याण, खनन, खेलकूद, पशुपालन, सहकारिता, परिवहन एवं यातायात, समाज कल्याण, सिंचाई, सार्वजनिक निर्माण विभाग, स्थानीय प्रशासन आदि के सारे कार्यक्रमों और नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन करवाने के लिए अपने जिले के लिए अकेले उत्तरदायी होता है.
वह जिला मजिस्ट्रेट के रूप में पुलिस अधीक्षक के साथ प्रमुखतः जिले की संपूर्ण कानून-व्यवस्था का प्रभारी होता है और सभी तरह के चुनावों का मुख्य प्रबंधक तथा साथ ही वह जनगणना-आयोजक, प्राकृतिक-आपदा प्रबंधक, भू-राजस्व वसूलीकर्ता, भूअभिलेख-संधारक, नागरिक खाद्य व रसद आपूर्ति-व्यस्थापक, ई-गतिविधि नियंत्रक, और जन समस्या निवारण करता भी है.
DM का फुल फॉर्म District Magistrate है और SDM का फुल फॉर्म Sub Divisional Magistrate है. एक जिला का नेतृत्व डीएम करता है और जिला के उपखण्ड का नेतृत्व एसडीएम करता है. SDM का प्रमोशन होकर वो DM बन सकता है.SDM, DM से छोटे स्तर की पोस्ट होती है.
जिलाधिकारी जिले का सबसे बड़ा प्रशासनिक अधिकारी होता है. कलेक्टर को किसी जिले के हर छोटे-बड़े सभी कार्य करने होते है.
कलेक्टर बननेके लिये (1) प्रारंभिक परीक्षा (2) मुख्य परीक्षा (3) साक्षात्कार से गुजरना पडता है. कलेक्टर बननेके लिये कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. इसके लिये सिविल सर्विस एग्जाम (CSE) देना जरुरी होता है. इस परीक्षा का आयोजन यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) द्वारा किया जाता है. इस परीक्षा के लिए स्नातक होना जरुरी है.
(1) प्रारंभिक परीक्षा :
इस परीक्षा का आयोजन जून – जुलाई और अगस्त महीने के बीच किया जाता हैं. इस परीक्षा के दो पेपर होते हैं. (1) सामान्य अध्यन तथा (2) सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट. ये दोनों पेपर 250 – 250 अंकों के होते हैं. इसमे आप सफलता पाते हो तो मुख्य परीक्षा में शामिल किया जाता हैं.
(2) मुख्य परीक्षा इस परीक्षा का आयोजन दिसंबर से जनवरी के बीच किया जाता है.
(3) साक्षात्कार : मुख्य परीक्षा में सफलता प्राप्त करने पर साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है, साक्षात्कार कुल 750 अंकों का होता है. तीनो परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने पर इस पद के लिए नियुक्त कर लिया जाता है.
कलेक्टर बनने के लिए कम से कम स्नातक होना अनिवार्य है. आयु सीमा सामान्य श्रेणी के लिये 21 से 32 वर्ष है. तथा अन्य पिछड़ी जाति (OBC) के लिये 21 से 35 वर्ष यांनी तीन साल की छूट दी जाती है.
अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) के लिये 32 वर्ष तथा पांच साल की छूट =37 वर्ष होती है. इसके सिवा विकलांग और सेवा-निवृत सैनिक या कर्मी को भी UPSC के नियमानुसार छूट प्रदान की जाती है.
एक कलेक्टर को प्रतिमाह ढाई लाख रूपये तक सैलरी के साथ बहुत प्रकार के भत्ते व सरकारी सुविधाए दी जाती है.
कलेक्टर का मुख्य कार्य.
कलेक्टर भूमि का मूल्यांकन करता है. भूमि अधिग्रहण करने का काम करता है. भूमि राजस्व का संग्रहण, भूमि रिकार्डों का रख-रखाव, भूमि सुधार व जोतों का एकीकरण कराता है.
बकाया आयकर, उत्पाद शुल्क, सिंचाई बकाया को वसूलने का काम करता है.
बाढ़, सूखा और महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाने का कार्य करता है. कोरोना काल मे हम लोगोंने इसका अनुभव किया है. बाह्य आक्रमण और दंगों के समय सुरक्षा प्रदान करता है. कृषि ऋण का वितरण करता है. जिला बैंकर समन्वय समिति का अध्यक्षता करने का काम करता है. तथा जिला योजना केंद्र की अध्यक्षता करता है.
जिला मजिस्ट्रेट के रूपमें कार्य :
कलेक्टर कानून व्यवस्था की स्थापना करने का काम करता है. वह अधीनस्थ कार्यकारी मजिस्ट्रेटों का भी निरीक्षण करने की जिम्मेदारी निभाता है. अपराध प्रक्रिया संहिता के
” निवारक खंड ” से सम्बंधित मुकदमों की सुनवाई करने में भूमिका निभाता है. कलेकटर सरकार को वार्षिक अपराध प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है. पुलिस और जेलों का निरीक्षण करता है. सभी मसलों से मंडल आयुक्त को अवगत कराने का काम करता है. मृत्यु दंड के कार्यान्वयन को प्रमाणित करने का काम करता है.
कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट ( DM ) ये दोनों अलग अलग पोस्ट है. एक कलेक्टर की पोस्ट तहसीलदार दार से उपर की होती है. पर कई छोटे राज्यों मे जिला मजिस्ट्रेट ( DM ) की नियुक्क्ती करके उसे कलेक्टर का काम भी दिया जाता है. ऐसे मामलों मे जिला मजिस्ट्रेट ( DM ) कलेक्टर का भी कार्यभार संभालता है.
( DM ) जिला मजिस्ट्रेट के रूप में पुलिस अधीक्षक के साथ जिले की संपूर्ण कानून व्यवस्था का प्रभारी है, और पुलिस और अभियोजन एजेंसी का नेतृत्व करता है. और सभी चुनावों का मुख्य प्रबंधक है.
कलेक्टर के रूप में, वह राजस्व प्रशासन के मुख्य अधिकारी हैं और भूमि राजस्व के संग्रह के लिए ज़िम्मेदार हैं,
याद रहे, एक आई.ए.एस.अफसर ही कलेक्टर, या फिर जिलाधिकारी बन सकता है
सबसे बड़ा पद (District Magistrate) डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट यानी कि जिलाधिकारी का होता है और उसके बाद जिला कलेक्टर का और उसके बाद डिप्टी कमिश्नर का इस प्रकार सबसे बड़े जिले के पद होते है. ——-====शिवसर्जन ===———
जिलाधिकारी किसी जिले का मुख्य कार्यकारी, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारी होता है. जिले का अधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा का एक प्रमुख प्रशासनिक पद है. जिसे अंग्रेजी में ” डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ” या सिर्फ “कलेक्टर” के नाम से भी जाना जाता है भारत के प्रत्येक जिले का एक अपना उपायुक्त होता है. अंग्रेज शासन के दौरान सन 1772 में गव्हर्नर जनरल लोर्ड वॉरेन हेस्टिंग द्वारा बुनियादी रूप से नागरिक प्रशासन और ‘भू राजस्व की वसूली’ के लिए गठित ‘जिलाधिकारी’ का पद, अब राज्य के लोक-प्रशासन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पदों में प्रमुख स्थान पर आता है.
जिलाधीश और कलेक्टर के रूप में जिले में राज्य सरकार का सर्वोच्च अधिकार संपन्न प्रतिनिधि या प्रथम लोक सेवक होता है. जो मुख्य जिला विकास अधिकारी के रूप में सारे प्रमुख सरकारी विभागों : पंचायत एवं ग्रामीण विकास, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, आयुर्वेद, अल्पसंख्यक कल्याण, कृषि, भू-संरक्षण, शिक्षा, महिला अधिकारता, ऊर्जा, उद्योग, श्रम कल्याण, खनन, खेलकूद, पशुपालन, सहकारिता, परिवहन एवं यातायात, समाज कल्याण, सिंचाई, सार्वजनिक निर्माण विभाग, स्थानीय प्रशासन आदि के सारे कार्यक्रमों और नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन करवाने के लिए अपने जिले के लिए अकेले उत्तरदायी होता है.
वह जिला मजिस्ट्रेट के रूप में पुलिस अधीक्षक के साथ प्रमुखतः जिले की संपूर्ण कानून-व्यवस्था का प्रभारी होता है और सभी तरह के चुनावों का मुख्य प्रबंधक तथा साथ ही वह जनगणना-आयोजक, प्राकृतिक-आपदा प्रबंधक, भू-राजस्व वसूलीकर्ता, भूअभिलेख-संधारक, नागरिक खाद्य व रसद आपूर्ति-व्यस्थापक, ई-गतिविधि नियंत्रक, और जन समस्या निवारण करता भी है.
DM का फुल फॉर्म District Magistrate है और SDM का फुल फॉर्म Sub Divisional Magistrate है. एक जिला का नेतृत्व डीएम करता है और जिला के उपखण्ड का नेतृत्व एसडीएम करता है. SDM का प्रमोशन होकर वो DM बन सकता है.SDM, DM से छोटे स्तर की पोस्ट होती है.
जिलाधिकारी जिले का सबसे बड़ा प्रशासनिक अधिकारी होता है. कलेक्टर को किसी जिले के हर छोटे-बड़े सभी कार्य करने होते है.
कलेक्टर बननेके लिये (1) प्रारंभिक परीक्षा (2) मुख्य परीक्षा (3) साक्षात्कार से गुजरना पडता है. कलेक्टर बननेके लिये कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. इसके लिये सिविल सर्विस एग्जाम (CSE) देना जरुरी होता है. इस परीक्षा का आयोजन यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) द्वारा किया जाता है. इस परीक्षा के लिए स्नातक होना जरुरी है.
(1) प्रारंभिक परीक्षा :
इस परीक्षा का आयोजन जून – जुलाई और अगस्त महीने के बीच किया जाता हैं. इस परीक्षा के दो पेपर होते हैं. (1) सामान्य अध्यन तथा (2) सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट. ये दोनों पेपर 250 – 250 अंकों के होते हैं. इसमे आप सफलता पाते हो तो मुख्य परीक्षा में शामिल किया जाता हैं.
(2) मुख्य परीक्षा इस परीक्षा का आयोजन दिसंबर से जनवरी के बीच किया जाता है.
(3) साक्षात्कार : मुख्य परीक्षा में सफलता प्राप्त करने पर साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है, साक्षात्कार कुल 750 अंकों का होता है. तीनो परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने पर इस पद के लिए नियुक्त कर लिया जाता है.
कलेक्टर बनने के लिए कम से कम स्नातक होना अनिवार्य है. आयु सीमा सामान्य श्रेणी के लिये 21 से 32 वर्ष है. तथा अन्य पिछड़ी जाति (OBC) के लिये 21 से 35 वर्ष यांनी तीन साल की छूट दी जाती है.
अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) के लिये 32 वर्ष तथा पांच साल की छूट =37 वर्ष होती है. इसके सिवा विकलांग और सेवा-निवृत सैनिक या कर्मी को भी UPSC के नियमानुसार छूट प्रदान की जाती है.
एक कलेक्टर को प्रतिमाह ढाई लाख रूपये तक सैलरी के साथ बहुत प्रकार के भत्ते व सरकारी सुविधाए दी जाती है.
कलेक्टर का मुख्य कार्य.
कलेक्टर भूमि का मूल्यांकन करता है. भूमि अधिग्रहण करने का काम करता है. भूमि राजस्व का संग्रहण, भूमि रिकार्डों का रख-रखाव, भूमि सुधार व जोतों का एकीकरण कराता है.
बकाया आयकर, उत्पाद शुल्क, सिंचाई बकाया को वसूलने का काम करता है.
बाढ़, सूखा और महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाने का कार्य करता है. कोरोना काल मे हम लोगोंने इसका अनुभव किया है. बाह्य आक्रमण और दंगों के समय सुरक्षा प्रदान करता है. कृषि ऋण का वितरण करता है. जिला बैंकर समन्वय समिति का अध्यक्षता करने का काम करता है. तथा जिला योजना केंद्र की अध्यक्षता करता है.
जिला मजिस्ट्रेट के रूपमें कार्य :
कलेक्टर कानून व्यवस्था की स्थापना करने का काम करता है. वह अधीनस्थ कार्यकारी मजिस्ट्रेटों का भी निरीक्षण करने की जिम्मेदारी निभाता है. अपराध प्रक्रिया संहिता के
” निवारक खंड ” से सम्बंधित मुकदमों की सुनवाई करने में भूमिका निभाता है. कलेकटर सरकार को वार्षिक अपराध प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है. पुलिस और जेलों का निरीक्षण करता है. सभी मसलों से मंडल आयुक्त को अवगत कराने का काम करता है. मृत्यु दंड के कार्यान्वयन को प्रमाणित करने का काम करता है.
कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट ( DM ) ये दोनों अलग अलग पोस्ट है. एक कलेक्टर की पोस्ट तहसीलदार दार से उपर की होती है. पर कई छोटे राज्यों मे जिला मजिस्ट्रेट ( DM ) की नियुक्क्ती करके उसे कलेक्टर का काम भी दिया जाता है. ऐसे मामलों मे जिला मजिस्ट्रेट ( DM ) कलेक्टर का भी कार्यभार संभालता है.
( DM ) जिला मजिस्ट्रेट के रूप में पुलिस अधीक्षक के साथ जिले की संपूर्ण कानून व्यवस्था का प्रभारी है, और पुलिस और अभियोजन एजेंसी का नेतृत्व करता है. और सभी चुनावों का मुख्य प्रबंधक है.
कलेक्टर के रूप में, वह राजस्व प्रशासन के मुख्य अधिकारी हैं और भूमि राजस्व के संग्रह के लिए ज़िम्मेदार हैं,
याद रहे, एक आई.ए.एस.अफसर ही कलेक्टर, या फिर जिलाधिकारी बन सकता है
सबसे बड़ा पद (District Magistrate) डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट यानी कि जिलाधिकारी का होता है और उसके बाद जिला कलेक्टर का और उसके बाद डिप्टी कमिश्नर का इस प्रकार सबसे बड़े जिले के पद होते है.
——-====शिवसर्जन ===———