आज मुजे राज्य सभा के बारेमें बात करनी है. राज्यसभा की संरचना ब्रिटेन के ” हाउस ऑफ लॉर्ड्स ” की तर्ज पर काम करने वाली राज्यसभा भारतीय संसद का ऊपरी और स्थाई सदन है और ये कभी भी भंग नहीं होती. राज्यसभा में 245 सदस्य होते हैं जिनमें से 12 को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं, वहीं बाकी 233 सदस्य चुनकर आते हैं. हर सदस्य का कार्यकाल छह साल का होता है और हर दो साल में एक तिहाई सीटों के लिए मतदान होता है. उप राष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति (अध्यक्ष) होते हैं.
लोकसभा या विधानसभा चुनाव के विपरीत राज्यसभा के चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से होते हैं. इसका मतलब यह होता है कि लोग राज्यसभा सांसदों का चुनाव नहीं करती, बल्कि उनके द्वारा चुने गए विधायक वोट डालकर उनका चुनाव करते हैं. इस तरीके से राज्यसभा सांसदों के चुनाव में जनता की अप्रत्यक्ष भागेदारी होती है.
राज्य मे राज्य सभा की सीटें उसकी जनसंख्या को देखकर कि जाती है और राज्य के छोटे-बड़े होने पर इन सीटों पर भी फर्क पड़ता है. राज्यसभा चुनाव में विधायक हर सीट के लिए अलग-अलग वोट नहीं डाल सकते क्योंकि अगर यदि ऐसा हो तो हर सीट पर सत्तारूढ़ पार्टी ही कब्जा कर लेगी.
दरअसल, वोटिंग के वक्त हर विधायक को एक सूची दी जाती है, जिसमें उसे राज्यसभा प्रत्याशियों के लिए अपनी पहली पसंद, दूसरी पसंद, तीसरी पसंद आदि लिखनी होती है. इसके बाद एक फॉर्मूले की मदद से तय किया जाता है कि कौन सा प्रत्याशी जीता है.
किसी प्रत्याशी को राज्यसभा सीट जीतने के लिए कितने विधायकों का वोट चाहिए, इसके लिए राज्य की कुल विधानसभा सीटों में जितनी सीटों पर राज्यसभा चुनाव होना है उससे एक अधिक से भाग देते हैं और जो फल आता है उसमें एक जोड़ देते हैं.
मिसाल के तौर पर अगर एक राज्य में 400 विधानसभा सीटें हैं और तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होना है तो 400 में 3+1 यानि 4 से भाग देंगे. इसका नतीजा 100 आएगा, जिसमें एक जोड़ने पर 101 आएगा, जो इस राज्य में राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए जरूरी विधायकों के वोटों की संख्या है.
जब किसी भी प्रत्याशी को पहली पसंद के 101 वोट नहीं मिलते तो दूसरी पसंद के वोटों की गिनती की जाती है.
राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए जरूरी सीटें निकालने के इस फॉर्मूले को ” हेयर फॉर्मूले ” के आधार पर जाना जाता है , और 1857 में अंग्रेज राजनीतिज्ञ थॉमस हेयर ने इसे तैयार किया था. भारत में इसका प्रयोग राज्यसभा चुनाव के अलावा राष्ट्रपति और विधान परिषद के सदस्यों के चुनाव के लिए भी होता है. इसके अलावा अमेरिका, कनाडा और आयरलैंड जैसे देशों में भी कई स्तर पर चुनाव के लिए हेयर फॉर्मूले का प्रयोग किया जाता है
देश में हुए पहले लोकसभा चुनाव के बाद संसद में एक और सदन की जरूरत महसूस की गई. ऐसे में 23 अगस्त, 1954 को राज्यसभा के गठन का ऐलान किया गया.
राज्यसभा एक स्थाई सदन है. ये कभी भंग नहीं होती. इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है. संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है. कुल 12 सदस्य राष्ट्रपति नॉमिनेट करते हैं. ये 12 सदस्य खेल, कला, संगीत जैसे क्षेत्रों से होते हैं. बाकी के 238 राज्यसभा सांसद राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से आते हैं. भारत का उप राष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है.
संविधान के अनुच्छेद 75 (3) के अधीन, मंत्री परिषद् सामूहिक रूप से लोक सभा के प्रति जिम्मेदार होती है. जिसका आशय यह है कि राज्य सभा सरकार को बना या गिरा नहीं सकती है. तथापि, यह सरकार पर नियंत्रण रख सकती है और यह कार्य विशेष रूप से उस समय बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब सरकार को राज्य सभा में बहुमत प्राप्त नहीं होता है.
जुलाई 2018 से, राज्यसभा सांसद सदन में 22 भारतीय भाषाओं में भाषण कर सकते हैं क्योंकि ऊपरी सदन में सभी 22 भारतीय भाषाओं में एक साथ व्याख्या की सुविधा है. आप को जानकारी के लिये बता दू कि राज्यसभा का पहला सत्र ता : 13 मई 1952 के दिन हुआ था.
संसद सदस्य के रूप में चुने जाने के लिए एक व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए और राज्य सभा में चुने जाने के लिए उसकी आयु कम से कम 30 वर्ष और लोक सभा के मामले में कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए.
सभापति और उपसभापति के अलावा, सदन का नेता एक अन्य ऐसा अधिकारी है जो सभा के कुशल और सुचारू संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. राज्य सभा में सभा का नेता सामान्यतः प्रधान मंत्री होता है, यदि वह इसका सदस्य है, अथवा कोई ऐसा मंत्री होता है, जो इस सभा का सदस्य है और जिसे उनके द्वारा इस रूप में कार्य करने के लिए नाम-निर्दिष्ट किया गया हो.
राज्य सभा में वर्ष 1969 तक वास्तविक अर्थ में विपक्ष का कोई नेता नहीं होता था. उस समय तक सर्वाधिक सदस्यों वाली विपक्षी पार्टी के नेता को बिना किसी औपचारिक मान्यता, दर्जा या विशेषाधिकार दिए विपक्षी नेता मानने की प्रथा थी. विपक्ष के नेता के पद को संसद में विपक्षी नेता वेतन और भत्ता अधिनियम, 1977 द्वारा अधिकारिक रुप मे मान्यता प्रदान की गई. इस अधिनियम के द्वारा राज्य सभा में विपक्षी नेता, राज्य सभा का एक ऐसा सदस्य होता है जो कुछ समय के लिए राज्य सभा के सभापति द्वारा यथा मान्य सबसे अधिक सदस्यों वाले दल की सरकार के विपक्ष में हो.
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