भारतीय संसद का निचला सदन ” लोकसभा.” 

लोकसभा को भारतीय संसद का निचला सदन कहां जाता है. भारतीय संसद का ऊपरी सदन राज्य सभा होता है. लोकसभा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव से चुने प्रतिनिधियों से गठित होती है. भारतीय संविधान के अनुसार सदन में सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 तक हो सकती है, जिसमें से 530 सदस्य विभिन्न राज्यों का और 20 सदस्य तक केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. 

       कभी सदन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने जैसी स्थिति में राष्ट्रपति यदि चाहे तो एंग्लो इंडियन समुदाय के 2 प्रतिनिधियों को लोकसभा के लिए मनोनीत कर सकता था. मगर ता : 25 जनवरी 2020 के बाद से एंग्लो इन इंडियन की रेज़र्वैशन को बढाया नहीं गया और वो स्वतः ही समाप्त को गई. 

        लोकसभा की कार्यावधि 5 वर्ष की होती है परंतु इसे समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है. संसद सदस्‍य के रूप में चुने जाने के लिए एक व्‍यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए और राज्‍य सभा में चुने जाने के लिए उसकी आयु कम से कम 30 वर्ष और लोक सभा के मामले में कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए.

          प्रथम लोकसभा सन 1952 मे आम चुनाव होने के पश्चात देश को अपनी पहली लोक सभा मिली थी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 364 सीटों के साथ जीत हासिल करके सत्ता में पहुँची थी. इसके साथ ही जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने थे , तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को लगभग 45 प्रतिशत मत मिले थे

     अगर समय से पहले भंग ना किया जाये तो, लोक सभा का कार्यकाल अपनी पहली बैठक से लेकर अगले पाँच वर्ष तक होता है उसके बाद यह स्वत: भंग हो जाती है. लोक सभा के कार्यकाल के दौरान यदि आपातकाल की घोषणा की जाती है तो संसद को इसका कार्यकाल कानून के द्वारा एक समय में अधिकतम एक वर्ष तक बढ़ाने का अधिकार है, जब कि आपातकाल की घोषणा समाप्त होने की स्थिति में इसे किसी भी परिस्थिति में छ: महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता.  

लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर) : 

        लोकसभा अपने निर्वाचित सदस्यों में से एक सदस्य को अपने अध्यक्ष (स्पीकर) के रूप में चुनती है. कार्य संचालन में अध्यक्ष की सहायता उपाध्यक्ष द्वारा की जाती है. जिस का चुनाव लोक सभा के निर्वाचित सदस्य करते हैं लोक सभा में कार्य संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष का होता है. 

लोकसभा अध्यक्ष के दो कार्य : 

(1) लोकसभा की अध्यक्षता करना एवं उस में अनुसाशन, गरिमा तथा प्रतिष्टा बनाये रखना. इस कार्य हेतु वह किसी भी न्यायालय के सामने उत्तरदायी नहीं होता है.

(2) वह लोकसभा से संलग्न सचिवालय का प्रशासनिक अध्यक्ष होता है किंतु इस भूमिका के रूप में वह न्यायालय के समक्ष उत्तरदायी होता है. 

स्पीकर की शक्तियाँ : 

  •  दोनो सदनों का सम्मिलित सत्र बुलाने पर स्पीकर ही उसका अध्यक्ष होगा. उसके अनुउपस्थित होने पर उपस्पीकर तथा उसके भी न होने पर राज्यसभा का उपसभापति अथवा सत्र द्वारा नांमाकित कोई भी सदस्य सत्र का अध्यक्ष होता है.

(2) धन बिल का निर्धारण स्पीकर करता है. यदि धन बिल पे स्पीकर साक्ष्यांकित नहीं करता तो उस बिल को धन बिल नहीं माना जाता.स्पीकरका निर्णय अंतिम तथा बाध्यकारी होता है.

(3) सभी संसदीय समितियाँ उसकी अधीनता में काम करती हैं. उसके किसी समिति का सदस्य चुने जाने पर वह उसका पदेन अध्यक्ष होता. 

(4) लोकसभा के विघटन होने पर भी स्पीकर पद पर कार्य करता रहता है. नवीन लोकसभा के चुने जाने पर ही वह अपना पद छोड़ता है 

कार्यवाहक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) : 

                     जब कोई नवीन लोकसभा चुनी जाती है तब राष्ट्रपति उस सदस्य को कार्यवाहक स्पीकर नियुक्त करता है जिसको संसद मे सदस्य होने का सबसे लंबा अनुभव हो. वह राष्ट्रपति द्वारा शपथ ग्रहण करता है.

(1) संसद सदस्यों को शपथ दिलवाना, एवं

(2) नवीन स्पीकर चुनाव प्रक्रिया का अध्यक्ष भी वही बनता है.

उपाध्यक्ष : 

     लोकसभा के सदस्य अपने में से किसी एक को उपाध्यक्ष के रूप में चुनाव करते हैं. यदी संबंधित सदस्य का लोकसभा की सदस्यता खत्म होती है तो उसका अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद भी खत्म हो जाता है. उपाध्यक्ष अपना त्याग पत्र अध्यक्ष को संबोधित करता है लोकसभा के उपस्थित सदस्यों के बहुमत से संमत किये हुए प्रस्ताव के अनुसार अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पदच्युत ( पद से निकाला जाना ) किया जा सकता है.

लोकसभा के सत्र : 

             संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार संसद सदैव इस तरह से आयोजित की जाती रहेगी कि संसद के दो सत्रॉ के मध्य 6 मास से अधिक अंतर न हो. पंरपरानुसार संसद तीन नियमित सत्रों तथा विशेष सत्रों मे आयोजित की जाती है. सत्रों का आयोजन राष्ट्रपति की विज्ञप्ति से होता है.

(1)  बजट सत्र : 

        यह वर्ष का पहला सत्र होता है सामान्यत फरवरी मई के मध्य चलता है यह सबसे लंबा तथा महत्वपूर्ण सत्र है इसी सत्र मे बजट प्रस्तावित तथा पारित होता है सत्र के प्रांरभ मे राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है. 

(2) मानसून सत्र : 

           जुलाई अगस्त के मध्य होता है. 

(3) शरद सत्र : 

       नवम्बर-दिसम्बर के मध्य होता है सबसे कम समयावधि का सत्र होता है. 

विशेष सत्र – इस के दो भेद है

(1) संसद के विशेष सत्र.

(2) लोकसभा के विशेष सत्र.

                  संसद के विशेष सत्र : प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति इनका आयोजन करता है ये किसी नियमित सत्र के मध्य अथवा उससे पृथक आयोजित किये जाते है.एक विशेष सत्र मे कोई विशेष कार्य चर्चित तथा पारित किया जाता है , यदि सदन चाहे भी तो अन्य कार्य नही कर सकता. 

                  लोकसभा का विशेष सत्र : अनु 352 मे इसका वर्णन है किंतु इसे 44 वें संशोधन 1978 से स्थापित किया गया है यदि

       लोकसभा के कम से कम 1/10 सद्स्य एक प्रस्ताव लाते है जिसमे राष्ट्रीय आपातकाल को जारी न रखने की बात कही गयी है तो नोटिस देने के 14 दिन के भीतर सत्र बुलाया जायेगा. 

सत्रावसान : 

       मंत्रिपरिषद की सलाह पे सदनॉ का सत्रावसान राष्ट्रपति करता है इसमे संसद का एक सत्र समाप्त हो जाता है तथा संसद दुबारा तभी सत्र कर सकती है जब राष्ट्रपति सत्रांरभ का सम्मन जारी कर दे, सत्रावसान की दशा मे संसद के समक्ष लम्बित कार्य समाप्त नही हो जाते है. 

         स्थगन : किसी सदन के सभापति द्वारा सत्र के मध्य एक लघुवधि का अन्तराल लाया जाता है इस से सत्र समाप्त नही हो जाता ना उसके समक्ष लम्बित कार्य समाप्त हो जाते है यह दो प्रकार का होता है. 

(1) अनिश्चित कालीन

 (2) जब अगली मीटिग का समय दे दिया जाता है. 

       लोकसभा का विघटन— राष्ट्रपति द्वारा मंत्रि परिष्द की सलाह पर किया है. इससे लोकसभा का जीवन समाप्त हो जाता है इसके बाद आम चुनाव ही होते है. विघटन के बाद सभी लंबित कार्य जो लोकसभा के समक्ष होते है समाप्त हो जाते है किंतु बिल जो राज्यसभा मे लाये गये हो और वही लंबित होते है समाप्त नही होते या या बिल जो राष्ट्रपति के सामने विचाराधीन हो वे भी समापत नही होते है या राष्ट्रपति संसद के दोनॉ सदनॉ की लोकसभा विघटन से पूर्व संयुक्त बैठक बुला ले.

अविश्वास प्रस्ताव

लोकसभा के क्रियांवयन नियमों में इस प्रस्ताव का वर्णन है. विपक्ष यह प्रस्ताव लोकसभा में मंत्रिपरिषद के विरूद्ध लाता है, इसे लाने हेतु लोकसभा के 50 सदस्यों का समर्थन जरूरी है यह सरकार के विरूद्ध लगाये जाने वाले आरोपॉ का वर्णन नही करता है केवल यह बताता है कि सदन मंत्रिपरिषद में विश्वास नही करता है एक बार प्रस्तुत करने पर यह प्रस्ताव् सिवाय धन्यवाद प्रस्ताव के सभी अन्य प्रस्तावों पर प्रभावी हो जाता है इस प्रस्ताव हेतु पर्याप्त समय दिया जाता है इस पर् चर्चा करते समय समस्त सरकारी कृत्यॉ नीतियॉ की चर्चा हो सकती है लोकसभा द्वारा प्रस्ताव पारित कर दिये जाने पर मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को त्याग पत्र सौंप देती है संसद के एक सत्र मे एक से अधिक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाये जा सकते. 

विश्वास प्रस्ताव :

    लोकसभा नियमों में इस प्रस्ताव का कोई वर्णन नहीं है यह आवश्यक्तानुसार उत्पन्न हुआ है ताकि मंत्रिपरिषद अपनी सत्ता सिद्ध कर सके यह सदैव मंत्रिपरिषद लाती है इसके गिरजाने पर उसे त्याग पत्र देना पडता है. 

निंदा प्रस्ताव : 

   लोकसभा मे विपक्ष यह प्रस्ताव लाकर सरकार की किसी विशेष नीति का विरोध/निंदा करता है इसे लाने हेतु कोई पूर्वानुमति जरूरी नहीं है यदि लोकसभा में पारित हो जाये तो मंत्रिपरिषद निर्धारित समय में विश्वास प्रस्ताव लाकर अपने स्थायित्व का परिचय देती है उसके लिये यह अनिवार्य है.

काम रोको प्रस्ताव : 

             लोकसभा मे विपक्ष यह प्रस्ताव लाता है यह एक अद्वितीय प्रस्ताव है जिसमे सदन की समस्त कार्यवाही रोक कर तात्कालीन जन महत्व के किसी एक मुद्दे को उठाया जाता है प्रस्ताव पारित होने पर सरकार पर निंदा प्रस्ताव के समान प्रभाव छोडता है.

लोकसभा विशेष :

*** लोकसभा का प्रथम अध्‍यक्ष श्री जी. वी. मावलंकर थे. ( ता : 15 मई 1952 से ता : 27 फरवरी 1956 ).

*** लोकसभा का प्रथम उपाध्‍यक्ष श्री एम अनंतशयनम अय्यंगर था. ( ता : 30 मई 1952 से ता : 7 मार्च 1956 ).

*** लोकसभा मे सबसे कम उम्र के संसद सदस्‍य का बहुमान श्री दुष्यंत चौटाला. उम्र : 27. ( ता : 3.4.1988 ) 

*** लोकसभा (हाउस ऑफ पीपल) का सर्वप्रथम गठन ता : 25 अक्‍तूबर 1951 से ता : 21 फरवरी 1952 तक पहले आम चुनावों के पश्‍चात 17 अप्रैल 1952 को सर्वप्रथम लोक सभा का गठन हुआ था.

*** भारतीय संविधान के आधार पर देश में दो सदनीय व्यवस्था की गई है, (1) लोकसभा तथा (2) राज्य सभा, लोकसभा को ” आम जनता का सदन या निम्न सदन कहा जाता है, राज्य सभा को उच्च सदन या “राज्यों का परिषद्” कहा जाता है, लोकसभा के पास वास्तविक कार्यकारी शक्ति होती है, जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री के द्वारा किया जाता है.

*** लोकसभा के सदस्य भारतीय नागरिकों द्वारा वयस्क मतदान से निर्वाचित किये जाते है. जब कि राज्य सभा के सदस्य राज्यों की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं.

*** लोकसभा का कार्यकाल पांच साल का होता है, जब कि राज्यसभा के सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है, इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक 2 वर्ष में सेवा-निवृत होते हैं. 

*** धन विधेयक को केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है, 14 दिन तक राज्य सभा यदि धन विधेयक पर अपनी सहमति नहीं देती है, तो इसे स्वत: पारित मान लिया जाता है. धन विधेयक के संबंध में राज्यसभा को अधिक शक्तियां प्राप्त नहीं है.

*** लोकसभा के बैठकों की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है, उनकी अनुपस्थिति उपाध्‍यक्ष लोकसभा में पीठासीन होता है. राज्यसभा की सभी बैठकों की अध्यक्षता उप-राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, उनकी अनुपस्थिति में यह कार्य उप सभापति करते हैं. 

*** लोकसभा में केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री द्वारा यदि कोई भी विधेयक पेश किया जाता है और वह विधेयक पारित नहीं हो पाता है, तो कैबिनेट को इस्तीफा देना पड़ता है. मगर राज्य सभा में केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री द्वारा यदि कोई विधेयक पेश किया जाता है और वह विधेयक पारित नहीं हो पाता है, तो पूरी कैबिनेट को इस्तीफा नहीं देना पड़ता है. 

*** लोकसभा में राष्ट्रपति द्वारा आंग्ल-भारतीय समुदाय के 2 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है. राज्यसभा में राष्ट्रपति के द्वारा कला, शिक्षा, समाजसेवा व खेल जैसे क्षेत्र संबंधित 12 सदस्यों को मनोनीत करते हैं. 

*** लोकसभा का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु 25 वर्ष निर्धारित की गई है. राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए आयु 30 वर्ष निर्धारित की गई है.  

*** लोकसभा की अधिकतम सदस्य

संख्या 552 है. जब की राजयसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 250 है. ( समाप्त )

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