भारत मे शिक्षा का मौलिक अधिकार|

Neelam teli

शिक्षा से समृद्धि है. शिक्षा से देश की प्रगति होती है. विकास होता है. ” भारतीय संविधान ” ने हमें शिक्षा का मूलभूत अधिकार दिया है. ” भारत ” में शिक्षा का मूलभूत अधिकार’, संविधान के ” अनुच्छेद 21A ” के अंतर्गत दिया गया है. 

       तारीख : 2 दिसंबर, 2002 के दिन संविधान में 86वाँ संशोधन किया गया . और इस संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया. और इसके तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे के लिये शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया.

     अक्तूबर 2003 मे उपरोक्त अनुच्छेद में वर्णित कानून, मसलन बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा विधेयक सन 2003 का पहला मसौदा तैयार करके , अक्तूबर 2003 में इसे वेबसाइट पर वायरल किया गया और आम लोगों से इस पर राय और सुझाव आमंत्रित किये गये.

       सन 2004 मे मसौदे पर प्राप्त सुझावों को ध्यान मे रखते मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा विधेयक 2004 का संशोधित प्रारूप तैयार करके उसे http://education.nic.in सरकारी वेबसाइट पर डाला गया.

       जिसमे बालको को निशुल्क शिक्षा का प्रावधान है. इस शिक्षा अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया गया. जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ. इस अधिनियम में 7 अध्याय तथा 38 खण्ड हैं. 

        ये अधिनियम के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के करोड़ों बच्चे विद्यालय नहीं जा पाते जिनकी शिक्षा के लिए कानून पारित किया गया है.  

       उल्लेखनीय है कि श्री सरदार वल्लभभाई पटेल संस्था की राष्ट्रीय सचिव तथा शांति सेवा फाउंडेशन ( रजि ) संस्था की संस्थापक अध्यक्षा समाज सेविका श्रीमती नीलम तेली जैन ने सरकारी दावों की पोल खोल दी है. 

       उन्होंने निर्माणाधीन बिल्डिंगो मे काम करने वाले गरीब बच्चों को मुफ्त मे पढानेका बीड़ा उठाया और देश हित मे साक्षरता अभियान चलाकर , श्रेष्ठम स्ट्रीट स्कूल खोलकर , शुरु मे बंध गटर के उपर पढ़ाना शुरु किया. 

       इसकी जब शुरुआत की तब 15 बच्चे थे उसके बाद कुल 55 विद्यार्थी की संख्या हो गईं. उसमे से पहिले 28 और बादमे 7 विद्यार्थी मिलाकर कुल 35 विद्यार्थीयों का मिरा भाईंदर महा नगर पालिका की सरकारी स्कूल नंबर 30 मे दाखिला ( admission ) दिलवाया. जिसकी न्यूज़ पत्रकार बंधु ओने अपने पत्र एवं न्यूज़ चैनल मे उजागर की.

          आज उनकी स्कूल मे करीब 75 विद्यार्थी पढ़ रहे है. उनके साथ शांति सेवा संस्था के सचिव श्री प्रकाश भाई शाह तथा प्रिंसिपल श्रीमती पूनम प्रसाद जी इस भगीरथ कार्य मे समर्पित होकर अपना कार्य कर रहे है. 

      मिरा भाईंदर महानगर पालिका की कुल जनसंख्या 18 लाख आंकी जाती है. 18 लाख की बस्ती मे, भाईंदर पश्चिम के एक एरिया की ये हालत है, तो फिर पुरे देश की हालत क्या होंगी ?  

       सरकार, ” पढ़ेगा इंडिया तो बढेगा इंडिया ” की बडी बडी बात करती है. सरकार का ये दावा जूठा नहीं लगता ? 

     कोरोना काल मे भी हम लोगोंने निजी स्कूलों के प्रति अभिभावकों की नाराजगी देखी. क्या ये हमारी शिक्षा प्रणाली है ? उन पर कोई नियंत्रण नहीं ? 

      हमारे शहर मे यह हालत है तो गावों की हालत क्या होंगी ? जिस देश का बचपन अनपढ़ हो, उस देश के बच्चे जिम्मेदार नागरिक कैसे बन सकते है ? 

     निलम तेली जैन साक्षरता अभियान चलाकर झोपड़पट्टियों के बच्चों को शिक्षा ज्ञान देकर देशके गरीब बच्चोका भविष्य उज्जवल बनाना चाहती है. सरकार उनकी क्या सहायता कर रही है ? 

       आयुक्त मिरा भाईंदर महा नगर पालिका ने निलम के इस महा कार्य को संज्ञान मे लेते हुए उनकी कोई मदद की है ? 

      एक अबला नारी सबला बनकर शिक्षा के प्रति इतनी जागरुक है, तो क्या हमारा कोई उत्तरदायित्व नहीं है ? 

      झोपड़पट्टियों मे रहने वाले ये गरीब के बच्चे हमारे देश के नागरिक नहीं है? ये लोग अपने हक के बारेमें अनजान है. उनको हक दिलाना हमारा कर्तव्य नहीं बनता ? 

      सरकारी स्कूलों मे निजी स्कूल जैसी सुविधा का अभाव क्यों है ? आज हर कोई मिरा भाईंदर शहर मे निजी स्कूल और निजी अस्पताल खोलना चाहता है. क्यों ? ये दोनों ही सेवाके माध्यम व्यापार बन गया है.

      राजनीति बदनाम हो चुकी है. सब समज रहे है के अधिकांश लोग मेवा के लिए सेवा क्षेत्र मे आये है. ऐसे मे उनसे अधिक क्या उम्मीद की जा सकती है ? 

      शिक्षा मानव की सम्पूर्ण शक्तियों का प्राकृतिक, तथा प्रगतिशील और सामंजस्यपूर्ण विकास है. शिक्षा राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक विकास का प्रतिक शक्तिशाली साधन है, शिक्षा को राष्ट्रीय सम्पन्नता एवं राष्ट्र कल्याण की कुंजी मानी जाती है. 

       सूत्रों की माने तो सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की मन पसंद बदली मे भी भ्रस्ट्राचार व्याप्त है. बदनामी के डर से महिला चुप है वर्ना कई, ” me too ” कांड बहार आते. 

    आज अभिभावकों को ऊंचा डोनेशन देकर निजी स्कूल मे अपने बच्चों को क्यों प्रवेश देना पड रहा है ? उत्तर स्पष्ट है……. सरकारी स्कूल मैनेजमेंट की निष्फलता. यहीं हालत सरकारी अस्पताल की है. 

      हमारे देश मे योजनाये तो बनती है मगर पुरी तरह कार्यान्वित होती है ? 

संविधान मे प्रावधान के तहत गरीबों को शिक्षा मील रही है ? 

सरकारे बदलते जायेगी, नीतियाँ बनती रहेगी मगर कोल्हू के बैल की तरह चले सौ कोस मगर वही के वही…. !!!  ——-====शिवसर्जन ===———-

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