प्रत्येक नगर पालिका में एक मेयर ( महापौर ) का पद होता है. मेयर शहर का ” प्रथम नागरिक ” होता है. प्रत्येक पांच वर्ष में नगर निगम का चुनाव आयोजित किया जाता है, और चुनाव में जो पार्षद चुने जाते है, उन्हीं में से एक पार्षद को मेयर पद के लिए चुना जाता है. नगर निगम के चुनाव में सभासदों का चुनाव आम जनता के द्वारा किया जाता है.
नगर निगम के सभी एजेंडे मेयर की स्वीकृति के बाद ही सदन में पेश किये जाते है. मेयर ( महापौर ) बनने के लिए व्यक्ति की उम्र 21 वर्ष या उससे अधिक होनी जरुरी है. साथ मेयर के लिए व्यक्ति को न्यूनतम दसवीं उत्तीर्ण होना चाहिए.
नगर निगम के चुनाव में जनता द्वारा निर्वाचित पार्षद ही मेयर के पद पर चुने जा सकते है .
महापौर को शहर के विकास के लिए दो करोड़ रुपये की राशि प्रदान की जाती है. इस राशि को मेयर अपने वार्ड को छोड़कर पूरे शहर में कहीं भी खर्च कर सकता है. महापौर को लाल बत्ती वाली गाड़ी के साथ एक मेयर हाउस भी प्रदान किया जाता है. मेयर को प्रतिमाह 30 हजार रुपये तक वेतन दिता जाता है.
कानून में बताई गई भूमिकाओं के अलावा, महापौर आमतौर पर परिषद के प्रवक्ता होते हैं और नागरिक घटनाओं सहित विशेष घटनाओं में महत्वपूर्ण औपचारिक भूमिका भी निभाते हैं. महापौर को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी सभासदों को उनके विचार व्यक्त करने का अवसर मिले, भले ही उनके प्रस्ताव पराजित हो जाएं.
अच्छे प्रशासन व्यवहार और नैतिकता के मानकों की स्थापना में महापौर का भी काफी प्रभाव पड़ता है.
मेयर का कार्यकाल एक साल का होता है. नगर निगम के चुनाव हर पांच साल बाद होते हैं.
आरक्षण
नगर निगम के पांच साल के कार्यकाल में पहले और चौथे साल का मेयर का पद महिला पार्षद के लिए आरक्षित होता है. दूसरे वर्ष और पांचवें वर्ष का कार्यकाल जनरल, तीसरे वर्ष का अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होता है.
कौन बनता है मेयर?
नगर निगम चुनाव में चुने पार्षदों में से किसी एक को हर साल मेयर चुना जाता है.
देश के सभी केंद्र शासित प्रदेशों में मेयर का कार्यकाल एक साल का ही होता है. सन 2005 में तत्कालीन मनोनीत पार्षद श्री के.एस. राजू की अध्यक्षता में गठित एक लीगल कमेटी ने मेयर का कार्यकाल ढाई वर्ष करने का प्रस्ताव तैयार किया था. सन 2006 में यह प्रस्ताव केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजा गया था.
पंजाब और हरियाणा में मेयर का कार्यकाल पांच-पांच वर्ष का है. हिमाचल प्रदेश में मेयर का कार्यकाल ढाई वर्ष है.
अधिनियम 1559 के तहत मेयर को कई अधिकार मिलते हैं. हालांकि मेयर को मिलने वाले अधिकारों में कानून व्यवस्था और प्रशासनिक व्यवस्था शामिल नहीं है. शहर का प्रथम नागरिक होने के नाते किसी राजकीय मेहमान की आगवानी का अधिकार मेयर को मिलता है. मेयर को सदन की विशेष सदन बुलाने, बजट अधिवेशन और सामान्य बैठक के संचालन का अधिकार होता है. मेयर के अनुमोदन से ही संविदा का निष्पादन होगा.जो कि बीस लाख रुपये से अधिक न हौ. इससे अधिक के लिए कार्यकारिणी और सदन की स्वीकृती लेनी होती है.
मेयर को निगम में प्रतीक्षालय और कैंप कार्यालय की सुविधा मिलती है. विभागों के कार्यों की समीक्षा भी मेयर के अधिकार में शामिल है. नगर निगम के पार्षदों को विकास कार्य कराने के लिए प्रस्ताव देने का अधिकार मेयर के पास होता है. जनताकी शिकायतों के आधार पर पार्षदों के प्रस्ताव पर चर्चा कर अधिकारियोंको समाधान के लिए मेयर स्वीकृति दे सकते हैं.
आप लोगोंकी जानकारी के लिये उल्लेखनीय है की संजीव नाईक को सन 1995 मे 23 साल की उम्र मे महापौर के रूपमें चुन लिया गया था.
अंतिम महापौर चुनाव मे पीठासीन अधिकारी श्री मिलिंद बोरिकर की निगरानी मे हुई चुनावी प्रक्रिया मे मीरा भायंदर महानगरपालिका के महापौर और उपमहापौर चुनाव में भाजपा ने बाजी मारी. और महाविकास आघाडी को करारी शिकस्त दी. और दोनों पदों पर अपना कब्जा कर लिया. भाजपा की उम्मीदवार ज्योत्सना हसनाले ने 55 वोट हासिल करके महाविकास आघाड़ी के उम्मीदवार अनंत शिर्के को 19 मतों से पराजित कर दिया. शिर्के को 36 वोट मिले. उप महापौर चुनाव में भाजपा के हसमुख गहलोत जीते. उन्होंने 56 वोट लाकर कांग्रेस के मर्लिन डिसा को 21 मतों से हराया. मर्लिन को 34 वोट मिले थे. इससे पहले महापौर पद पर भाजपा के दो उम्मीदवार हसमुख गहलोत और मदन सिंह खड़े थे, लेकिन अंतिम समय में मदन सिंह ने नाम वापस लेकर गहलोत की राह आसान कर दी थी.
विशेष टिप्पणी :
मेयर को दिये जाना वाला वेतन और विकास के लिए दिये जाने वाली धन राशि राज्य और नगर पालिका के अनुसार कम ज्यादा हो सकती है.
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