साक्षात् देवताओं का निवास,  ” कलशः.”

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                 कलश को हिंदू धर्म में पवित्र और शुभ माना जाता है. धार्मिक मांगलिक कार्यो के शुभारंभ के अवसर पर इसकी विधिवत पूजा की जाती है. किसी भी अनुष्ठान, गृह प्रवेश, नये सालके दिन, दीपावली, नवरात्रि उत्सव के समय तथा पूजा पाठ आदि विविध शुभ कार्यो में कलश की भक्ति भाव से स्थापना की जाती है. 

      हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख समृद्धि, वैभव तथा मंगल कामनाओं का प्रतीक माना जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में महेश तथा मूल में ब्रह्मा और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं. इसलिए पूजन के समय कलश को देवी देवता की शक्ति, तीर्थस्थान आदि का प्रतीक मानकर स्थापित किया जाता है.

        मान्यता है कि संपूर्ण देवता कलशरूपी पिंड या ब्रह्मांड में एक साथ स्वयं समाए हुए हैं. एक ही केंद्र में समस्त देवता ओंको देखने के लिए कलश की स्थापना की जाती है. कलश को सभी देवी देवताओं, और तीर्थों का संयुक्त प्रतीक मानकर उसकी स्थापना और पूजन किया जाता है. वेदोंके अनुसार कलश के मुख में भगवान विष्णु का निवास है, उसके कंठ में रुद्र तथा मूूल में ब्रह्मा जी का स्थान माना जाता हैं.

        हिंदू शास्त्रों के अनुसार कलश के मध्य भाग में सभी मातृशक्तियां निवास करती हैं. गायत्री, सावित्री, चारो वेद, सभी सागर, सप्तद्वीपों के साथ पृथ्वी, सभी देव, आदित्य देव, विश्वदेव, सभी पितृदेव एक साथ निवास करते हैं. कलश की पूजा मात्र से ये सभी देवता प्रशन्न होते है. 

      कलश में भरा पानी हमें स्वच्छ, निर्मल एवं शीतल रहने को सिखाता है. कलश के ऊपर आम का पान होता है जिसके ऊपर मिट्टी के पात्र में केसर से रंगा हुआ अक्षत (चावल) होता है , जो परमात्मा यहां अवतरित होकर अक्षत या अविनाशी आत्माओं एवं पंचतत्व की प्रकृति को शुद्ध करते है, 

        कलश में डाला जाने वाला दूर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प इस भावना को दर्शाती है कि हमारी पात्रता में दूर्वा के समान जीवनी शक्ति, कुश जैसी प्रखरता, सुपारी के समान गुणयुक्त स्थिरता, फूल जैसा उल्लास एवं द्रव्य के समान सर्वग्राही गुण समाहित हो. 

         आपने देखा होगा कि कलश में पानी और ऊपर एक नारियल रखा होता है. शास्त्रों के अनुसार इससे हमें पूर्णफल की प्राप्ति होती है. कलश के ऊपर रखे नारियल को भगवान गणेश जी का प्रतीक भी माना जाता है.

       नारियल की स्थापना करते समय उसका मुख साधक की तरफ रहना चाहिए. नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है.

           शास्त्रों के अनुसार बिना जल के कलश को स्थापित करना अशुभ माना जाता है. इसी कारण कलश में पानी, पान के पत्ते, केसर, अक्षत, कुंमकुंम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है. इससे न केवल घर में सुख-समृद्धि आती है बल्कि सकारात्मकता उर्जा की प्राप्ती होती है

        कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिष्क चिह्न हमारी चार अवस्थाओं, जैसे बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था को दर्शाता है. कुछ लोग उसे चार वेदोंका प्रतीक मानते है. 

      कुछ लोग भगवान के समीप रखा नारियल का पानी रोजाना बदलते है. ऐसे में कुछ दिन में नारियल के अंकुर फूटता है जो शुभ माना जाता है. कई नारियल तो चार पांच फुट ऊँचे हो जाते है. बादमे उसको नदी, तालाव या खादी में विसर्जित किया जाता है. 

          नवरात्रि उत्सव के समय भक्त जन नव दिन तक कलशः स्थापना करते है, जिसे घट स्थापना कहां जाता है, इस दौरान लोग शक्ति देवी की आराधना करके उनसे आशीर्वाद मांगते है. हिन्दू पंचाग अनुसार यह शुभ नवरात्रि शरद ऋतु में अश्विन शुक्ल पक्ष से शुरू होती हैं और पूरे नौ दिनों तक चलती हैं. 

          घट स्थापना का सबसे शुभ समय प्रतिपदा का एक तिहाई भाग बीत जाने के बाद होता है.अगर किसी कारणवश आप उस समय कलश स्थापित न कर पाएं, तो अभिजीत मुहूर्त में भी स्थापित कर सकते हैं. प्रत्येक दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त होता है. जो चालीस मिनट का होता है. 

        घट स्थापना में लगने वाले साधनो में जल से भरा हुआ पीतल, चांदी, तांबा या मिट्टी का कलश, पानी वाला नारियल, रोली या कुमकुम, आम के 5 पत्ते, नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा या चुनरी, लाल सूत्र/मौली, साबुत सुपारी, साबुत चावल और सिक्के, कलश ढकने के लिए ढक्कन और जौ आदिका समावेश है. 

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