सत्याग्रह आन्दोलन ” धारासना.”

Satyagraha

        सत्याग्रह का मतलब सत्य के लिये आग्रह करना. इसकी शुरुआत सर्वप्रथम महात्मा मोहनदास करमचंद गांधीजी ने सन1894 में दक्षिण अफ़्रीका में की थी.

      सत्याग्रह का अर्थ, ” सत्य के प्रति समर्पण ” कह सकते हैं.मगर मुजे आज धारासना सत्याग्रह के बारेमें बातें शेयर करनी हैं. 

     धारासना गुजरात राज्य के वलसाड जिले में एक शहर हैं . ये स्थल दांडी के निकट है. मई 1930 में हुए धारासना सत्याग्रह के कारण ये स्थल दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया. यह दांडी मार्च से पहले बिलकुल अनजान था. 

      धारासना में ब्रिटिश भारतीय पुलिस ने करीब हमारे निर्दोष 2500 अहिंसक प्रदर्शनकारियों पर बर्बरतापूर्वक हमला करके लाठी चार्ज किया था. धारासना सॉल्ट वर्क पर कीये गए हमले के बाद इसकी वैश्विक स्तर पर पहचान बनी थी. ये नमक आंदोलन के प्रचार की वजह विश्व का ध्यान भारत की ओर आकर्षित हुआ था. 

        महात्मा गांधीजी और पंडित श्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसने सार्वजनिक रूप से ता : 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज, आजादी की घोषणा जारी की गई थी. ओर नमक मार्च से दांडी स्थित ता : 6 अप्रैल को गांधीजी द्वारा अवैध नमक बनाने का निष्कर्ष निकाला गया था. 

        सन 1930 में ब्रिटिश नमक कर के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू किया गया. ता : 4 मई, 1930 को, गांधी जी ने वाइसराय लॉर्ड इरविन को लिखा,जिसमें धारासना नमक वर्क्स पर हमला करने का इरादा बताया गया. मगर उसको गिरफ्तार कर लिया गया.

     भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने कार्रवाई की प्रस्तावित योजना के साथ जारी रखने का फैसला किया. जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल समेत योजनाबद्ध दिन से पहले कई कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था. 

         तत्पश्चात 76 वर्षीय सेवानिवृत्त न्यायाधीश अब्बास तैयबजी के साथ मार्च की योजना बनाई गई, जिसमे गांधी जी की पत्नी कस्तुरबाई के साथ मार्च की ओर अग्रसर किया. मगर दोनों को धर्मसन पहुंचने से पहले गिरफ्तार कर लिया गया और तीन महीने की जेल की सजा सुनाई गई. 

      उनकी गिरफ्तारी के बाद, सरोजिनी नायडू और मौलाना अबुल कलाम के नेतृत्व में शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रहा. कुछ कांग्रेस नेता मार्च के नेतृत्व में गांधी के प्रचार के साथ असहमत थे. सैकड़ों भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस स्वयंसेवकों ने धारासना नमक कार्य जगह की ओर बढ़ना शुरू कर दिया. सरोजिनी नायडू और सत्याग्रहियों को पुलिस द्वारा तब गिरफ्तार कर लिया गया. 

     सरोजिनी नायडू को पता था कि सत्याग्रहियों के खिलाफ हिंसा एक खतरा था , इसीलिए उन्होंने किसी भी परिस्थिति में हिंसा का उपयोग नहीं करने दिया. 21 मई को, सत्याग्रहियों ने नमक आगर की रक्षा करने वाले कांटे दार तार को दूर करने की कोशिश की. मगर उन्हें पकड़ लिया गया. 

      धारासना में हजारों अहिंसक प्रर्दशनकारीयों पर बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज करके बुरी तरह घायल किया गया. कइयों के हाथ पैर तो कई लोगोंके सिर फोड़ दिए गए. अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर सत्याग्रहियों को देखनेवाले चश्मदीद गवाह थे.

           पत्रकार मिलर द्वारा इंग्लैंड में अपने प्रकाशक को कहानी टेलीग्राफ करने के पहले प्रयासों को भारत में ब्रिटिश टेलीग्राफ ऑपरेटर द्वारा सेंसर किया गया. ब्रिटिश सेंसरशिप का पर्दाफाश करने की धमकी देने के बाद ही उनकी कहानी पारित होने की अनुमति दी गयी.मिलर की कहानी पूरी दुनिया में 1,350 समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई और सीनेटर जॉन जे. ब्लेन द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका सीनेट के आधिकारिक रिकॉर्ड में पढ़ा गया. मिलर की रिपोर्ट ने अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करनेमें प्रमुख भूमिका निभाई. 

       प्रेस कवरेज के जवाब में, लॉर्ड इरविन, भारत के वाइसराय ने किंग जॉर्ज को एक पत्र लिखकर बताया कि पुलिस ने लंबे समय से कार्रवाई से बचना शुरू किया. मगर एक समय के बाद यह असंभव हो गया, और उन्हें भी कठोर तरीकों का सहारा लेना पड़ा. परिणाम स्वरूप बहुत से लोगों को मामूली चोटों का सामना करना पड़ा. 

         इसपर मिलर ने बाद में लिखा था कि वह अस्पताल गया था जहां 320 घायल ओर फ्रैक्चर खोपड़ी के साथ लोगोंको देखा था. घंटों के लिए कोई इलाज नहीं हुआ और दो की मृत्यु हो गई थी. 

       मित्रों, हमें आजादी ऐसे ही नहीं मिली, इसके लिये हजारों क्रन्तिकारी देश भक्तों ने अपने प्राणों कि क़ुरबानी दी है. आज हम स्वतंत्र जरूर है मगर लोकशाही के नींवके पत्थर हमारे लाखो देशवासी है जिन्होंने यातना सहन की है. तथा शहादत को स्वीकार किया था.

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