एक लाख का गधा.

donkey1920

             इंटरनेट पर एक सुंदर कहानी पढनेको मिली. उसे कुछ बदलाव के साथ पाठक मित्रों के बिच जरूर शेयर करना चाहूंगा, प्रस्तुत है कहानी….. 

          एक बार राजा और वजीर वेश बदल कर अपने राज्य मे गुप्तवेष भ्रमण करने निकले. दूर से उन्होंने रास्ते में खड़े कोई लोगोंकी भीड़ देखी. नजदीक जाकर देखा तो कोई एक व्यापारी गधा बेचने के लिए खड़ा था. राजा और वजीर भी भिड के बिच खड़े रह गये. व्यापारी चिल्ला रहा था…. एक लाख में गधा लो…… एक लाखमे गधा लो….. 

           राजा ने सोचा, दुबले पतले इस गधे की कीमत एक लाख रुपये कैसे हो सकती है ? जरूर कोई इसकी खास खासियत होंगी. राजाने वजीर को इसारा किया. वजीर समझ गया और गधे के व्यापारी को पूछा, इस गधे में क्या खासियत है ? जो आप इसकी कीमत एक लाख रुपये बता रहे हो ?  

       व्यापारी ने उत्तर देते कहांकि ये खास किसम का गधा है. इसमे बैठने वाले शख्स को यदि वो ईमानदार हो, कोई पाप ना किया हो, हमेशा सत्य बोला हो तो उसे गधे पर बैठे बैठे यहांसे मक्का मदीना दिखाई देगा, वर्ना मक्का मदीना के दर्शन नहीं होंगे. 

       राजाने वजीर को उकसाया. सोचा इससे वजीर की ईमानदारी का भी पता चल जायेगा. वजीर गधे पर सवार हो गया. मगर ये क्या ? उसे तो मक्का मदीना कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. मगर वजीर ने सोचा यदि मै सच्ची बात बता दू तो राजा मुजे बेईमान समजेगा. अतः वजीर खुश होकर बोलने लगा, वाह भाई , वाह क्या नजारा है. मुजे तो मक्का मदीना स्पष्ट दिखाई दे रहा है. 

        निचे उतर कर वजीर ने राजा को गधे पर बैठने कहां. राजा खुद गधे पर सवार हुआ. वजीर की तरह राजा को भी कुछ दिखाई नहीं दिया. अब राजा चिंतित. क्या करें. अगर ये कहे कि कुछ दिखाई नहीं देता तो फिर वजीर समजेगा कि राजा बेईमान है. राजा कुछ समय चुप रहने के बाद, जोर शोर से चिल्लाने लगा, वाह… वाह… क्या नजारा है. क्या बात है, मे तो धन्य हो गया. मुजे तो मक्का दिखाई दे रहा है, ये देखो मदीना भी दिखाई दे रहा है. पवित्र मक्का मदीना की मस्जिद भी स्पष्ट दिखाई दे रही है. 

         माशाअल्लाह…. सुभानअल्लाह… मुजे तो काबा भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है. उनका वर्णन सुनकर इर्दगिर्द उपस्तित लोग भी अचंबित हुए. मगर लोगोंकी हैसियत नहीं कि एक लाख मे गधा खरीद सके. इधर वजीर को तो पता था कि गधे मे कोई विशेषता नहीं. राजा को भी पता था की गधे मे ऐसी कोई बात नहीं है. तो फिर उसको ख़रीदनेमे कोई फायदा नहीं. कहानी यहां पुरी होती है. 

        इस कहानी से हम सबक ले सकते है कि मनुष्य कितना स्वार्थी है. सब कुछ जानते हुए भी अपने आप को सच और ईमानदार साबित करने के लिए झूठ का सहारा लेता है. मगर झूठ हमेशा झूठ ही रहता है. 

          कौआ को चुना लगाकर सफेद कर दो मगर वह काउ काउ ही बोलेगा. सफेदी करने मात्र से वह बगुला कभी नहीं बन सकता. ठाट-बाट, आडंबर करने से कोई महान नहीं बन जाता. मनुष्य मे वोही गुण कायम रहते है जो कुदरत ने उसे बक्शा है. 

         राजा और वजीर ने अपने आप को ऊंचा बताने के लिए झूठ का सहारा लिया. सच बोलने की हिम्मत नहीं हुई और अपने आप से धोका किया.     

  ——=== शिवसर्जन ===–

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