प्रकृति की अनमोल भेट, “शंख.”

shankh

              “शंख” जलचर जीव द्वारा खुदकी रक्षा के लिए बनाया गया कवच है. सनातन हिंदू धर्म मे शंख को पवित्र तथा कल्याणकारी माना गया है. इसे धार्मिक प्रतिष्ठान तथा रणभूमि मे फूंककर बजाया जाता है. 

         दुनिया का सबसे बड़ा शंख केरल राज्य के गुरुवयूर के श्री कृष्ण मंदिर में सुरक्षित रखा गया है, जिसकी लंबाई लगभग आधा मीटर बताई जाती है तथा इसका वजन दो किलोग्राम है.

        शंख के मुख्य तीन प्रकार होते है. (1) दक्षिणावर्ती, (2) मध्यावर्ती और (3) वामावर्ती. इनमें दक्षिणावर्ती शंख दाईं तरफ से खुलता है, मध्यावर्ती बीच से और वामावर्ती बाईं तरफ से खुलता है. मध्यावर्ती शंख बहुत ही कम पाये जाते है. इसे अति चमत्कारिक बताया गया है. 

           वैसे शंख के अन्य प्रकारों मे गोमुखी शंख, गोमुखी शंख, पांचजन्य शंख , लक्ष्मी शंख, गरूड़ शंख, विष्णु शंख, शेर शंख, कामधेनु शंख, देव शंख, हिरा शंख , मोती शंख, चक्र शंख, राहु शंख , शनि शंख, केतु शंख , पौंड्र शंख, सुघोष शंख, राक्षस शंख, मणिपुष्पक शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख, अन्नपूर्णा शंख, आदि अनेक प्रकार का समावेश है.

        शंख को विविध नामो से जाना जाता है, जैसे महानाद, अब्ज, मुखर, 

पाञ्चजन्य, समुद्रज, सुनाद, हरिप्रिय, धवल,कंबोज,दीर्घनाद, जलज, त्रिरेख, अर्णोभव,दीर्घनाद, जलोद्भव, बहुनाद, विष्णुपस्त्रीविभूषण, तथा सुरचर . 

                  भगवान श्री कृष्ण के पास ” पाञ्चजन्य ” नामक शंख था जिसकी ध्वनि दूर दूर तक कई किलोमीटर तक पहुंचती थी. देखा जाय तो पाञ्चजन्य शंख बहुत ही दुर्लभ शंख है. महाभारत के महा युद्ध में अपनी ध्वनि से पांडव सेना में उत्साह का संचार करने वाले इस शंख की ध्वनि से संपूर्ण युद्ध भूमि में शत्रु सेना में भय व्याप्त हो जाता था.

          युधिष्ठिर के पास अनंतविजय, अर्जुन के पास देवदत्त, भीष्म के पास पोंड्रिक, सहदेव के पास मणिपुष्पक , नकुल के पास सुघोष शंख था. सभी के शंखोंका महत्व और शक्ति अलग अलग थी. महाभारत में युद्धारंभ की घोषणा और उत्साहवर्धन हेतु शंख नाद किया गया था.

         ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख में जल रखने और इसे छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है. समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों मे शंख भी एक है. माता लक्ष्मी जी और भगवान श्री विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में शंख धारण करते हैं. अतः उसे पवित्र माना जाता है. 

        शंख नाद से वातावरण पवित्र होता है. इसे सुनकर मन में सकारात्मक विचार पैदा होते हैं. ब्रह्मवैवर्त पुराण में यह कहा गया है कि शंख में जल रखने और इसे छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है. शंख बजाने से फेफड़े को व्यायाम मिलता है. पुराणों के जिक्र मिलता है कि अगर श्वास का रोगी नियमि‍त तौर पर शंख बजाए, तो वो श्वास की कोई भी बीमारी से रोग मुक्त हो सकता है. 

          शंख में रखे पानी का सेवन करने से हड्डियां मजबूत होती हैं. वास्तुशास्त्र के मुताबिक शंख में ऐसे कई गुण होते हैं, जिससे घर में पॉजिटिव एनर्जी का आगमन होता है.

        समुद्र मंथन के समय 8 वें रत्न के रूप में गणेश शंख की उत्पत्ति हुई थी. इस शंख की आकृति बिल्कुल गणेशजी जैसी दिखाई देती थी इसलिए इसका नाम गणेश शंख रखा गया. यह शंख से दरिद्रता का नाश होता है तथा धन धान्य की प्राप्ति होती है. 

        धार्मिक ग्रंथों में शंख को भगवान विष्णु जी और माता लक्ष्मी का प्रिय बताया गया है. माना जाता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां भगवान विष्णु का वास होता है, और जहां भगवान विष्णु होंगे वहां महालक्ष्मी स्वयं आ जाती हैं. 

          प्रत्येक शंख का गुण अलग अलग माना गया है. कोई शंख विजय दिलाता है, तो कोई धन और समृद्धि. किसी शंख में सुख और शांति देने की शक्ति है तो किसी में यश और कीर्ति. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है. इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है.

      शंख कैल्शियम से निर्मित होता है.  शंख बजाने से योग की 3 क्रियाएं एक साथ होती है. शंख मे पानी रखकर पीने से मनोरोगी को लाभ होता है.कहां जाता है कि घर मे शंख को बजाने से नकारात्मक उर्जा व अतृप्त आत्माएं घर से बाहर निकल जाती है.

      ——=== शिवसर्जन ===——

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →