दुनिया की सबसे लंबी दीवार का बहुमान चीन की दीवार को प्राप्त है. जिसकी लंबाई करीब 6400 कि.मी. है. मगर आपको पता है ? दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार भारत में है. जी हा , चीन की दीवार के बाद कुम्भलगढ़ की यह दीवार भारत की दूसरी सबसे ऊंची और लंबी दीवार है.
कुम्भलगढ़ किले की दीवार 36 किलोमीटर लंबी और 15 फीट चौड़ी है. इसे एशिया की दूसरी सबसे ऊंची दीवार का दर्जा प्राप्त है. किले के भीतर 360 मंदिर विध्यमान है , जिसमें से 300 मंदिर जैन धर्म के और बाकी 60 हिंदू धर्म के हैं. इस किले के बारे में बहुत से लोगो को पता नहीं है.
किले के नजदीक में एक जंगल था जिसे अब वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी में तब्दील कर दिया गया है. इस किले की दूसरी खासियत यह है कि मेवाड़ के महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ में हुआ था.
कुम्भलगढ़ के पास मेवाड़ मे ऐसे दुर्ग होने का इतिहास है , जिसे मुगल तथा बाद में अंग्रेज भी कभी जीत नहीं सके. इसकी बेहद मजबूत दीवार चीन की दीवार के बाद विश्व की दूसरी सबसे लम्बी दीवार है. पर्वतों की चोटियों व घाटियों पर 36 किलोमीटर में फैली इस दीवार पर आज भी तोपों के गोलों के निशान इसके युद्धग्रस्त इतिहास की गवाही देते हैं.
कुंभलगढ़ किला उदयपुर से करीब 82 किलोमीटर की दूरी पर अरावली की पहाड़ियों पर बना हुआ है. इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का स्टेटस भी मिल चुका है. कहा जाता है कि इस किले को बनने में 15 साल लगे थे और इसका निर्माण मेवाड़ के शासक महाराणा कुंभा ने 15 वीं शताब्दी में करवाया था.
कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान के राजसमंद जिले में विध्यमान है. दुर्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद महाराणा कुम्भा ने सिक्के ढलवाये थे, जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित किया गया था. वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, जलाशय,बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, प्राचीर, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है. कुम्भलगढ़ दुर्ग का विशालकाय द्वार को राम पोल कहा जाता है.
कुंभलगढ़ के मशहूर महलों में से एक है ” बादल महल ” इसमें मर्दाना महल और जनाना महल दो हिस्से हैं जो आपस में जुड़े हुए हैं. महल के शानदार कमरे पेस्टल रंगों से बने तथा भित्ति चित्रों से सजे हुए हैं. इसी महल में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था.
यह किला राजस्थान के राजसमन्द जिले में स्थित है. इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सन 13 मई 1459 वार शनिवार को कराया था. इस किले को ‘अजयगढ’ कहा जाता था क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना किसी को नामुमकिन था. इसके चारों ओर एक बडी दीवार बनी हुई है जो पुरे विश्व की दूसरी सबसे बडी दीवार है.
कुम्भलगढ किले को मेवाड की आँख कहते है. यह दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है जिसके कारण अजय रहा था. इस दुर्ग में ऊँचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का यूज कृषि कार्य के लिए किया गया था.
ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथा संभव स्वाबलंबी बनाया गया था. इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है. यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है. इस गढ़ के शीर्ष भाग में बादल महल है व कुम्भा महल सबसे ऊपर है.
महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है. महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए क्रूर आक्रमणों के समय राज परिवार इसी दुर्ग में रहा था.यहीं पर कुंवर पृथ्वीराज और राणा सांगा का बचपन बीता था. उड़वा राजकुमार कुंवर पृथ्वीराज की छतरी भी दुर्ग में देखी जाती है. महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा कर पालन पोषण किया था.
हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक इसी दुर्ग में रहे थे. इस दुर्ग के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू हो गए लेकिन एक बार को छोड़ कर ये दुर्ग प्राय: अजय ही रहा है लेकिन इस दुर्ग की कई दुःखद घटनाये भी है जिस महाराणा कुम्भा को कोई नहीं हरा सका वही शुरवीर महाराणा कुम्भा इसी दुर्ग में अपने पुत्र ऊदा सिंह द्वारा राज्य की चाह में मारे गए.
कहां जाता है कि यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की तरफ देखने पर सिर से पगड़ी निचे गिर जाती है. पृथ्वीराज स्मारक पर लगे लेख में पृथ्वीराज के घोड़े का नाम ‘साहण’ दिया गया है.
किले में घुसने के लिए आरेठपोल, हल्लापोल, हनुमानपोल तथा विजयपाल आदि दरवाजे हैं. कुम्भलगढ़ के किले के भीतर लघु दुर्ग कटारगढ़ स्थित है जिसमें ” झाली रानी का मालिया महल ” प्रमुख है.
वहां तक पहुंचने के लिये दिल्ली से कुम्भलगढ़ 600 किलोमीटर दूर है जबकि मुम्बई से 850 तथा जोधपुर से यह 235 किलोमीटर दूर है. इसके सबसे करीब रेलवे जंक्शन उदयपुर तथा फालना दोनों 90 किलोमीटर की दूरी पर हैं. करीबी घरेलू हवाई अड्डा भी उदयपुर है
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