न्यायालय मे ली जाने वाली ” शपथ.” 

COURT

              आप लोगोंने फिल्मों मे वादी और प्रतिवादी ओको न्यायालय मे शपथ खाते जरूर देखा होगा जिसमे गीता पर हाथ रखकर शपथ दिलाई जाती हैं, कि 

” मैं गीता पर हाथ रख कर कसम खाता हूं कि जो भी कहूंगा सच कहूंगा, सच के सिवा कुछ भी नहीं कहूंगा.”

        वास्तव मे ऐसी शपथ दोनों पक्ष के वकीलों को न्यायाधीश के सामने दिलाने की जरुरत हैं, क्योंकि आजकल वकील ही जानते हुए भी अनजान बनके अपने 

ग्राहक को बचाने के लिए कई बार झूठ का सहारा लेते हैं.  

       वकील अपने मुवक्किल को सच साबित करने के लिए कई प्रकारके झूठ का प्रयोग करतहैं. 

   क्या वास्तव में कोर्ट में ऐसे ही शपथ दिलाई जाती है ? या फिर इसका और कोई तरीका है ? 

        फिल्मों में जब भी कोर्ट में किसी को गवाही के लिए बुलाया जाता है तो उसे गीता पर हाथ रख कर सच बोलने की कसम खाते दिखाया जाता है. इसमे हिंदू ओके लिए गीता मुस्लिमो के लिए कुरान और ईसाइयो के लिए बाइबल के पुस्तक को दिखाया जाता हैं. 

          न्यायालय मे शपथ दिलाने की परंपरा पुरानी हैं. इतिहासिक दृश्टिकोण से देखा जाय तो पहले मुगलकाल में हिंदुओं को गंगाजल और भगवद्गीता लेकर और मुसलमानों को कुरान लेकर कोर्ट में कसम दिलाई जाती थी. राजा महाराजा भी इसका अनुसरण करते हैं. माना जाता था कि कोई अपने धर्म के पुस्तक पर हाथ रख कर कभी झूठ नहीं बोलेगा. 

      सन 1840 तक एक कानून पारित करके कोर्ट में गीता-कुरान-बाइबल पर हाथ रख कर कसम खाने का नियम बंद कर दिया गया. इसके बाद ट्रायल कोर्ट में कोई भी एक सत्यनिष्ठ होनेका अपना हलफनामा देकर ही गवाही दे सकता था. इस कानून को 1863 में हाई कोर्ट के लिए भी लागू कर दिया गया. भारत के इंडियन ओथ्स एक्ट 1873 ने इसे और मजबूती दे दी.

       ब्रिटिश राज से पहले तक धर्म के प्रतीक चिह्नों पर ही न्यायालय में कसम दिलाई जाती थी. आजादी के कुछ साल तक कुछ कोर्ट जैसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने नॉन हिंदू और नॉन मुस्लिम को अपने धर्म की किताब हाथ में लेकर कसम खाने का विकल्प दिया. यह प्रणाली सन 1957 तक चली. 

        उसके बाद भारत में पुस्तक पर हाथ रखकर कसम खाने की प्रणाली सन 1969 में खत्म कर दि गई. फिर लॉ कमीशन की 28वीं रिपोर्ट अनुसार देश में भारतीय ओथ अधिनियम 1873 में सुधार का सुझाव दिया गया. पुराने एक्ट की जगह “ओथ्स एक्ट, 1969” लाया गया. इस तरह से पूरे देश में एक जैसा शपथ कानून लागू कर दिया गया.

       देश को आजादी मिलने के बाद भी बॉम्बे हाईकोर्ट ने धार्मिक किताबों पर हाथ रखकर शपथ खाने की प्रणाली कुछ समय तक चालू रखी. 

       वर्तमान सन 1969 में नए कानून के पास होने से भारत की अदालतों में शपथ खाने की प्रणाली में बदलाव आ गया, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, पारसी और इसाई सबके लिए अब अलग-अलग किताबों और शपथों को बंद कर दिया गया है. लेकिन वर्तमान में कोर्ट में दो प्रकार की शपथ ली जाती है. पहली जज के सामने मौखिक रूप से और दूसरी शपथ पत्र पेश करके. 

वर्तमान न्यायालयमे सभी के लिए इस प्रकार की शपथ दिलाई जाती हैं : 

“I do swear in the name of God/solemnly affirm that what I shall state shall be the truth, the whole truth and nothing but the truth”.

            अर्थात : 

“मैं ईश्वर के नाम पर कसम खाता हूं / ईमानदारी से पुष्टि करता हूं कि जो मैं कहूंगा वह सत्य, संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूंगा”.

        नये ओथ एक्ट, 1969 में यह भी प्रावधान है कि यदि गवाह 12 साल से कम उम्र का है तो उसे किसी तरह की शपथ नहीं लेनी होनी. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बच्चे झूठ नहीं बोला करते. 

       यदि कोई गवाह शपथ लेकर झूठ बोलता हैं तो शिक्षा का प्रावधान हैं. अगर कोई व्यक्ति शपथ लेने के बाद भी झूठ बोलता है, तो उसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 193 के तहत झूठ बोलने वाले को 7 साल या जुर्माने तक की सजा दी जा सकती है. 

        महाकाव्य महाभारत का एक वाक्य आज भी भारत के सुप्रीम कोर्ट का मूल वाक्य है. सुप्रीम कोर्ट का मूल वाक्य ” यतो धर्मस्ततो जयः ” है. हम इसे कह सकते हैं, सत्य मेव जयते. 

    ——=== शिवसर्जन ===——

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