वैदिक काल में आजकी तरह अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरण नहीं थे फिरभी हमारे वैदोंमे मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की हमें विस्तृत जानकारी मिलती है. आकाश में दिखाई देनेवाला सात तारों का समूह को हम लोग सप्तर्षियों का मंडल कहते है.
यह मंडल के तारों के नाम भारत के महान सात संतों के नाम पर रखे गए हैं.
शस्त्रों के अनुसार प्रत्येक मनवंतर में अगल-अगल सप्तऋषि हुए हैं. मगर आज यहां वैवस्वत मनु के काल के सप्त ऋषियों का परिचय प्रस्तुत है.
(1) ऋषि वशिष्ठ : वशिष्ठ वैदिक काल के सुप्रसिद्ध ऋषि थे. वशिष्ठ सात ऋषियों में से एक है, जिन्हें ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान एक साथ हुआ था. उनकी पत्नी का नाम अरुंधति था. वशिष्ठ राजा दशरथ के चारो पुत्र राम, लक्ष्मण भारत और शत्रुध्न के गुरु और राजा दशरथ के राजकुल गुरु थे.
वशिष्ठ त्रिकाल दर्शी तथा ज्ञान वान ऋषि थे. कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र के बिच युद्ध भी हुआ था. विश्वामित्र ने इनके 100 पुत्रों को मार दिया था, फिर भी विश्वामित्र को माफ कर दिया था. वशिष्ठ ऋषि ब्रम्हा जी के मानस पुत्र थे. सूर्य वंशी राजा इनकी आज्ञा के बिना कोई धार्मिक कार्य नही करते थे त्रेता के अंत मे ये ब्रम्हा लोक चले गए थे. आकाश में चमकते सात तारों के समूह में उनका स्थान माना जाता है.
(2) ऋषि विश्वामित्र : विश्वामित्र एक राजा थे. बादमे वे ऋषि हुए थे. ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए थे.और इस हार की वजह वे घोर तपस्या करने के लिए प्रेरित हुए थे. विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा विश्व भर में प्रसिद्ध है.
ऋषि विश्वामित्र के अनेक किस्से मिलते है. उन्होंने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था. लेकिन स्वर्गमें उन्हें जगह नहीं मिली तो विश्वामित्र ने एक नए स्वर्ग की रचना कर डाली थी.
कहा जाता है कि हरिद्वार में आज जहां पर शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से आगबबूला होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी. विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की रचना की जो हजारों सालों से आज तक भारत में प्रसिद्ध है.
विश्वामित्र बहुत विद्वान ऋषि थे और स्वयं ब्रह्मर्षि की उपाधि चाहते थे, लेकिन ब्रह्मर्षि की उपाधि देने वाले महर्षि वशिष्ठ सदैव उनको राजर्षि ही कहकर पुकारते थे. इसलिए विश्वामित्र महर्षि वशिष्ठ जी से धृणा करते थे.
(3) ऋषि कण्व : कण्व वैदिक काल के ऋषि थे इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था. सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है.
ऋग्वेद के 103 सूक्तवाले आठवें मण्डल के अधिकांश मन्त्र महर्षि कण्व तथा उनके वंशजों तथा गोत्रजों द्वारा ही
दिखाई देते है. कुछ सूक्तों के अन्य भी द्रष्ट ऋषि हैं, किंतु ” प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति ” के अनुसार महर्षि कण्व अष्टम मंडल के द्रष्टा ऋषि कहे गए हैं. इनमें लौकिक ज्ञान-विज्ञान तथा अनिष्ट निवारण संबंधी उपयोगी मन्त्र हैं.
(4) भारद्वाज ऋषि :वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का स्थान उच्च है. वेदो के अनुसार भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं. भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्री राम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता द्वापर का सन्धिकाल था.
माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मंत्र रचना जारी रखी थी.
ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं , और एक पुत्री जिसका नाम ” रात्रि ” था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं. ॠग्वेद के छठे मंडल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं. इस मंडल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं. अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं. ” भारद्वाज-स्मृति ” तथा
” भारद्वाज-संहिता ” के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे.
ऋषि भारद्वाज ने ” यन्त्र-सर्वस्व ” नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी. इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने
” विमान-शास्त्र ” के नाम से प्रकाशित कराया है. इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है.
वैमानिक शास्त्र, संस्कृत पद्य में रचित एक ग्रन्थ है जिसमें विमानों के बारे में जानकारी दी गयी है. इस ग्रन्थ में बताया गया है कि प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में वर्णित विमान रॉकेट के समान उड़ने वाले वायुगतिकीय यान थे.
इस शास्त्र मे कुल 8 अध्याय और 3000 श्लोक हैं. पं. सुब्बाराय शास्त्री के अनुसार इस ग्रंथ के मुख्य जनक रामायणकालीन महर्षि भरद्वाज थे.
मित्रों, विमान का आविष्कार किसने किया, प्रश्न पूछे जानेपर हम लोग राइट बन्धुओँका नाम देते है मगर वास्तव मे हमारे ऋषि ओने हजारों साल पहले विमान की प्रथम शोध की थी
5) अत्रि ऋषि : वैदिक ऋषि अत्रि ब्रम्हा जी के मानस पुत्रों में से एक थे.उनके चन्द्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा ये तीन पुत्र थे. अत्री सप्तर्षि सात महान वैदिक ऋषियों में से एक है. अत्रि ऋषि ऋग्वेद के पंचम मंडल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे.
अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा माँगने गये और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देव (ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव) को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी. माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था.
ऋषि अत्रि ने कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था. अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया था. अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ था.
अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था. मान्यता है कि अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे.
अयोध्या नरेश श्री राम, वनवास के समय माता सीता तथा लक्ष्मण के साथ अत्री ऋषीके आश्रम चित्रकुट मे गये थे. सती अनुसया सोलह सतियोंमेसे एक थी. जिन्होंने अपने तपोबलसे ब्रम्हा, विष्णु, और महेश को छोटे बच्चों में परिवर्तित कर दिया था.
पुराणों में कहा गया है वही तीनों देवों ने माता अनुसूया को वरदान दिया था, कि मै आपके पुत्र रूप में आपके गर्भ से जन्म लूँगा वही तीनों चन्द्रमा (ब्रम्हा) दत्तात्रेय (विष्णु) और दुर्वासा (शिव) के अवतार हैं.
(6) वामदेव ऋषि : वामदेव ने विश्व को सबसे पहले संगीत का ज्ञान दिया. वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा “जन्मत्रयी” के तत्ववेत्ता हैं जिन्हें गर्भ अवस्था में ही अपने विगत दो जन्मों का ज्ञान हो गया था. वैदिक शास्त्र उल्लेख के अनुसार सामान्य मनुष्यों की भाँति जन्म न लेने की इच्छा से इन्होंने माता का उदर फाड़कर उत्पन्न होने का निश्चय किया था मगर माता द्वारा अदिति का आवाहन करने और इंद्र से तत्वज्ञान चर्चा होने के कारण ये वैसा न कर सके. तब यह श्येन पक्षी (बाज) के रूप में गर्भ से बाहर आये.
वामदेव ने हमें संगीत दिया. वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं. भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है. हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए वेद सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी मिलती है.
(7) ऋषि शौनक : सप्तर्षि से 7 तारों का बोध होता है, जो ध्रुव तारे की परिक्रमा करते हैं. कहा जाता है मंडल के तारों के नाम भारत के महान 7 संतों के आधार पर रखे गए हैं.
ऋषि सात प्रकारके होते है.
(1) ब्रह्मर्षि, (2) देवर्षि, (3) महर्षि, (4.) परमर्षि, (5) काण्डर्षि, (6) श्रुतर्षि और (7) राजर्षि. इन्हें सप्तर्षि कहते हैं.
पुराणों के अनुसार ऋषि शौनक एक वैदिक आचार्य थे, जो भृगुवंशी शुनक ऋषि के पुत्र थे. इनका पूरा नाम इंद्रोतदैवाय शौनक था.
शौनक एक संस्कृत वैयाकरण तथा ऋग्वेद प्रतिशाख्य, बृहद्देवता, चरणव्यूह तथा ऋग्वेद की छह अनुक्रमणिकाओं के रचयिता ऋषि हैं. वे कात्यायन और अश्वलायन के गुरु माने जाते हैं. उन्होने ऋग्वेद की बश्कला और शाकला शाखा ओंका एकीकरण किया था.विष्णु पुराण के अनुसार शौनक गृतसमद के पुत्र थे.
शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर विश्व कुलपति का सम्मान हासिल किया था. शौनक ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया. वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे
इसके अलावा मान्यता हैं कि ऋषि अगस्त्य, कष्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है.
ऋषि शौनक ने भारत मे दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर एक विश्व रिकॉर्ड किया था. इससे प्रमाणित होता है कि भारत देश शिक्षा क्षेत्र मे भी विश्वगुरु था.
- Shiv Sarjan Present.