पुराने भाईंदर गांव की बीती हुई यादे| Part -XXV

पुराने भाईंदर पूर्व पश्चिम के गावों की बात करे तो भाईंदर गांव एरिया के और विकास के दृश्टिकोण से सबसे बड़ा था. भाईंदर पुलिस स्टेशन से पूर्व की तरफ आगे बढ़ते आवर लेडी ऑफ़ नाजरेथ स्कूल से फकरी कॉलोनी, श्री चंदूलाल शेठ जी की वाड़ी से क्रॉस गार्डन होकर कोठार होते हुए गावदेवी मंदिर, मांडली तलाव से भाईंदर पुलिस स्टेशन तक के बिच का भाग पुराना भाईंदर गांव कहा जाता था.

मांडली तलाव के दक्षिण दिशा की और टेम्बा अस्पताल थी. जिसका ज्यादातर उपयोग रेसिडेंट डॉक्टर द्वारा पुलिस मेडिकल जांच एवं पोस्ट मॉर्टम के लिये किया जाता था. इसके अलावा यहां पर कुष्ठ रोग आदि रोगों के लिये जिला परिषद अंतर्गत औषधिय कैंप चलाया जाता था. जहां पर वर्तमान मे विशाल भीमसेन जोशी रुग्णालय वहां पर मौजूद है.

भाईंदर पुलिस स्टेशन से आगे गोपिका टॉकीज के नजदीक एक पोस्ट ऑफिस थी जो बादमे मारवाड़ी गली के नाके पर स्थानांतरण की गईं थी. बादमे पोस्ट ऑफिस को भाईंदर पुलिस स्टेशन के सामने फाटक रोड स्थित लाया गया.

गोपिका टॉकिंग के सामने समाज सेवी श्री बालकृष्ण तेंदुलकर जी का निवास था. ठीक उसके आगे जिला परिषद की मराठी , गुजराती शाला एवं भाईंदर सेकेंडरी स्कूल थी. उसके आगे कस्टम चाल और नमक का टोल नाका था. उसके आगे एक एक किलोमीटर के अंतर्गत मूर्धा, राई, मोरवा, डोंगरी गांव थे जो आज भी मौजूद है.

सत्तर के दशक मे भाईंदर पश्चिम चर्च के नजदीक नवरंग रोड वेज़ एक मात्र पब्लिक ट्रांसपोर्ट चलती थी. जो डेली भाईंदर से मस्जिद बंदर,और भात बाजार,आती जाती थी. तब नवी मुंबई की मार्किट का नामो निशान नहीं था.

सन 1936 मे भाईंदर की बस्ती करीब 5000 की थी. और सन 1961 के दशक के प्रारंभ मे यहां पर ग्राम पंचायत की हकूमत थी. जन संख्या करीब 9500 की थी. हमारे भारत देश की प्रथम जन गणना सन 1964 मे की गईं थी. उसके बाद सन 1981 की जन गणना के अनुसार भाईंदर क्षेत्र की जन संख्या 35121 की हो गयी थी.

साठ के दशक मे भाईंदर मे खेती की जमीन की कोई ज्यादा कीमत नहीं थी. तब गुंठा और एकड़ के हिसाब से प्लाट बिका जाता था. फिर आया 25 पैसे वार का जमाना. सन 1964 – 65 मे भाईंदर पूर्व सेवार तालाब मीरा रोड के आसपास 50 पैसे वार के हिसाब से खेती की जमीन बिकी गयी. आपको पढ़कर ताजुब होगा की भाईंदर पूर्व स्टेशन सामने की शांति गंगा बिल्डिंग A B C की जगह खारीगाव के श्री जनार्दन पाटिल ने एक रूपया वार के हिसाब से बेच दी थी. आप सब जानते है की एक चौरस वार मतलब 3 X 3 फुट मतलब 9 चौरस फुट को एक चौरस वार कहते है.

तब स्टेशन के सामने 90 रूपया प्रति स्क़्वेर फुटके भावसे से फ्लैट बेचे गये थे. सन 1982 – 1983 मे यहां भाईंदर पूर्व मे रेसिडेंस का भाव 140 फुट और दुकान गाले का भाव 150 रूपया फुट का हो गया था. सन 1988 आते तक यहां रेसिडेंट का भाव 450 रुपया प्रति फुट बताया जाता था.

ब्रिटिश कालीन ज़माने मे देश भर मे नयी रेल लाइन का काम तेजी से चल रहा था. नयी पटरी बिठाई जा रही थी. लोगोंका रेल यात्रा के लिए बेसब्री से इंतजार हो रहा था.

सन 1870 मे भाईंदर खाड़ी पर का प्रथम पुराना पुल का निर्माण हुआ. उससे पहिले गुजरात तक के लोग पैदल चल कर मुंबई तक आते थे. भाईंदर , नायगाव, एवं वैतरणा की दो खाड़ी पार करने के लिये दूंगी, होड़ी ( नाव ) का इस्तेमाल किया जाता था.

भाईंदर की बात करें तो प्रारंभ मे कोयले के इंजिन की अमदावाद – मुंबई पैसेंजर एक मात्र रेल गाड़ी थी, जो सुबह 10 बजे भाईंदर से मुंबई की और जाती थी और शाम 8 बज कर 30 मिनट पर वापस आती थी. यहाके लोग ज्यादातर दहिसर , बोरीवली , मालाड जानेके लिये नमक की दूंगी, पड़ाव जिसे हम नाव कहते है, उसका उपयोग करते थे.

ज्यादातर धनिक लोग अपनी निजी घोड़ा गाड़ी रखते थे और किसान लोग बैलगाडी मे सफर करते थे.

चालीस के दशक मे अन्थोनी गोम्स की एक मात्र घोड़ा गाड़ी थी जो भाईंदर पश्चिम पुलिस स्टेशन से भाईंदर स्टेशन तक चलती थी. और एक तरफी भाड़ा एक आना मतलब आजका 6 नया पैसा लीया जाता था, फ़िर भी अधिकांश लोग स्टेशन तक पैदल जाना पसंद करते थे.

भाईंदर मे जब रिक्शा की शुरुआत हुई तो दो सालवी भाई ओकी रिक्शा भाईंदर पुलिस स्टेशन से भाईंदर रेलवे स्टेशन के बिच मे चलती थी. जो भाईंदर गांव की प्रथम आम जनता के लिये रिक्शा थी.

सत्तर के प्रारंभ मे मुंबई – अमदावाद राष्ट्रीय महा मार्ग का काम चल रहा था. रोड के उपर भरनी डाली जा रही थी. तब 1971 तक वेस्टर्न रेलवे का विकास हो चुका था.

ब्रिटिश कालमे बना पुराना पुल की आयु 100 साल की थी. सन 1970 मे 100 साल पुरा करने के बाद भी ये सन 1991 तक काम मे लीया गया. अर्थात 121 साल तक सेवा देनेके बाद आज तक स्वस्थ खड़ा है. अब इसे तोड़नेका टेंडर दिया गया है. लकड़े के स्लीपर और रेल पटरी को हटा दिया गया है. आगे तोड़नेका काम चालू है.

इस पुल के निर्माण के समय मानव बलि दिये जानेका कहा जाता है. लोहे से बने हर खम्भे को करीब 150 फीट जमीन के निचे तक गाढ़ दिये गये है. हर खम्बे मे शीशा गलाकर भरा गया है, ताकि इसकी मजबूती बनी रहे.

इसकी बगल मे बना सीमेंट कंक्रीट का नया पुल बनाने का काम सन 1981- 82 मे शुरु हो चुका था. और दिसंबर 1991 तक करीब पुरा हो गया था. इसके पीछे 45 करोड़ रुपये का खर्च किया गया का अनुमान है.

वसई की खाड़ी से ये पुल गुजरता है उसके बिच पांजू द्वीप आता है अतः ये पुल दो भागोंमें बट जाता है. एक पुल भाईंदर बाजु से पांजू सीमा तक. जिसकी लम्बाई 1.4 किलो मीटर है. जो 56 गर्डरों पर टिका हुआ है. जबकि दूसरा पुल पांजू सीमा से नायगाव की सीमा तक बना है जिसकी लम्बाई 0.533 किलोमीटर है. जो 22 गर्डरों पर टिका है.

दोनों पुल मिलाकर दोनों की कुल लम्बाई 1.933 किलोमीटर है. वर्त्तमान पुराना पुल पर आवाजाई बंद है मगर सीमेंट कंक्रीट के दो पुल से स्लो फ़ास्ट ट्रैन चल रही है.

वतर्मान विरार तक चार लाइन कार्यरत है, और भीड़ के समय हर चार – पांच मिनट मे ट्रैन चल रही है फ़िरभी ट्रैन मे चढ़ते समय सुरक्षा के लिये प्रभु का नाम लेना पड़ता है…!

सन 1901 मे भाईंदर स्टेशन का निर्माण हुआ था. सन 1960 के आसपास भाईंदर से चर्चगेट तक का मासिक पास का किराया 25 रुपये था. और भाईंदर से चर्चगेट का एक तरफी भाड़ा 1 रूपया 30 नया पैसा था.

साठ के दशक मे आठ डिब्बे की लकड़े की सीट वाली लोकल ट्रैन चलती थी. जिसको स्पीड पकड़ने मे काफ़ी समय लगता था. टिकट खिड़की के बाजुमें एक मात्र नारायण भुवन होटल थी. जहा चार आना प्लेट गरमा गरम पकोड़ा मिलता था.

ता : 5 फरवरी 1985 को श्री गौतम जैन के नेतृत्व एवं श्री पुरुषोत्तम ” लाल ” चतुर्वेदी के मार्गदर्शन मे जनता ने रेल रोको आंदोलन किया था. तब पुलिस द्वारा बर्बरता पूर्वक की गईं गोलीबारी मे 7 निर्दोष लोगों की जान चली गयी थी.

सन 1987 तक यहां पर सिर्फ दो रेल्वे लाइन थी. ता : 7 दिसंबर 1987 तक कई आंदोलनों के बाद भाईंदर रेलवे स्टेशन पर नये प्लाट फॉर्म नंबर – 3 और 4 का निर्माण कार्य शुरु किया गया था.

ता : 7 दिसम्बर 1987 के दिन भाईंदर रेलवे स्टेशन पर नये प्लाट फॉर्म नंबर : 3 और 4 का निर्माण कार्य शुरु किया गया था. तारीख 1 दिसंबर 1988 के दिन भाईंदर टर्मिनल का उद्घाटन तत्कालीन विधायक श्री जनार्दन गौरी जी तथा सांसद श्री शांताराम घोलप द्वारा किया गया था.

भाईंदर रेलवे स्टेशन ने तीन डिब्बे की शटल , छह डिब्बे , आठ डिब्बे, नव डिब्बे , बारा डिब्बे की ट्रैन और वर्तमान 15 डिब्बे की ट्रैन का जमाना भी देखा है. मुजे सभी ट्रेनों मे यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है.

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