मंदिर तो आपने बहुत देखे होंगे, मगर खारीगांव का चमत्कारिक मंदिर के बारेमे कम लोगोंको पता है. यस सर खारीगांव का श्री मळेकर ( मलेकर ) मंदिर करीब 150 साल पुराना है. जब यहां आगरी समाज के स्थानीय लोग आकर बसने लगे, तबसे यह मंदिर विद्यमान है. वर्तमान मलेकर मंदिर का खारीगांव ग्रामस्थ मंडल द्वारा संचालन किया जाता है.
भाईंदर पूर्व मे खारीगांव , गोड़देव , नवघर , बंदरवाडी आदि चार छोटे छोटे गांव थे. जनसंख्या शुरूमे कुल मिलाकर करीब 200 की रही होंगी. चारो तरफ खेती थी. बारिस के समय मे हरियाली से पूरा पूर्व विभाग हरि चादर सा बन जाता था. स्टेशन से पूर्व का नजारा रमणीय लगता था. यहाके लोगोंका मुख्य व्यवसाय खेतीवाड़ी था.
लोग महेनतु ,ईमानदार और भोले स्वभाव के थे. खेतीवाडी ही उनके उदर पूर्ति का मुख्य साधन था.
श्री मळेकर मंदिर की स्थापना कब की गई इसकी इतिहास मे कोई पुष्टि नहीं है, मगर यह निश्चित है की ये मंदिर आगरी समाज के तत्कालीन ग्रामस्थ पूर्वजो द्वारा स्थापित है.
इस मंदिर मे चोरस आकार का स्वयंभू बना पत्थर है जिसकी श्री मळेकर भगवान के रूपमे आज तक पूजा की जाती है. प्राचीन खारीगांव के तीन मंदिर है, जिसमे श्री सत्यनारायण मंदिर , श्री गावदेवी मंदिर तालाब रोड और श्री मळेकर मंदिर ये मुख्य है.
जब भी बारिस का मौसम शुरु होता था तब खारीगांव ग्रामस्थ के लोग हल लेकर जमीन की खुदाई करने लगते थे. उससे पहिले नारियल , हार , अबीर ग़ुलाल लेकर प्रथम पूजा इस मंदिर की जाती थी बादमे हल चलाया जाता था.
यदि कोई विधि करना भूल गये तो हल के आगे फन फैलाये साप आकर खड़ा रह जाता था. उसकी पूजा करने के बाद वो चला जाता था. सत्तर – अस्सी के दशक मे श्री मंदिर परिसर अनेकों असली साप निवास करते थे. उसका दर्शन होना शुभ माना जाता है. गांववालों के अनुसार यहां दो मुह के साप भी पाए जाते थे. मेरा सौभाग्य है की मुख्य मंदिर के अंदर रहने वाला करीब आठ – दस फुट के असली साप को नजदीक से देखनेका मुजे अवसर मिला था.
श्री सत्यनारायण मंदिर की भाति यहां भी हर साल खारीगांव ग्रामस्थ मंडल द्वारा मेले का आयोजन किया जाता है.
इस मंदिर की अनेकों चमत्कारिक घटना हुई है. एक बुजर्ग को चाली ( ईमारत ) बनानी थी. कॉन्टेक्टर को ढूंढकर परेशान हो गया था. सोचा चलो खुद ही कारीगरों को लेकर ईमारत बांधना शुरु करें. सोचा गांव के बहार छोटा मंदिर है क्योना उसका आशीर्वाद लेकर काम शुरु किया जाय ! तब उनको यह भी पता नहीं था की इस मंदिर का नाम क्या है ! उसने हार पहनाकर नारियल फोड़कर अपनी जगह पर आया और फावड़ा – कुडारी लेकर भूमि पूजन करने लगा तब एक कांट्रेक्टर आया और बातचीत के बाद ईमारत का काम शुरु हुआ. और ईमारत बनकर तैयार भी हो गयी. ये बात उसने मुझे बताई की यह मंदिर वास्तव मे चमत्कारी है. मेरी आस्था बनी मै भी दिलो जानसे मानने लगा. मेरी नौकरी लगी, यहीं गांव मे दुकान शुरु की. मान सम्मान मिला इसके पीछे श्री मळेकर मंदिर के प्रति मेरी आस्था का परिणाम है.
वो बुजुर्ग ने जो चाली बनाई थी वहां आज सरस्वती स्कूल के सामने नीरज बिल्डिंग खड़ी है.
यह मंदिर श्री सत्यनारायण मंदिर के पास स्थित विद्यमान है. मंदिर भले छोटा है मगर मांगने वाले की हर मुराद पूरी होती है. आप भी इसका दर्शन करके पावन हो सकते है.
मळेकर मंदिर नाम कैसे पडा ?
गहन संशोधन के बाद पता चला है कि मळ्या ( खलिहान = खेती की उपज काट कर जहां भंडारण की जाती है, उसे खलिहान कहते हैं.) वरचा मंदिर अर्थात गांव के सीमा अंत के बाहर विध्यमान मंदिर यांनी की मलेकर ( मळेकर ) मंदिर. यहां पर चावल की खेती होती थी. साठ साल पहले इस मंदिर के इर्दगिर्द की जमीन सर्पो को रहने लायक थी. यहां अनेकों असली सर्प रहते थे अतः कुछ लोगोंने उसे शिव जी का स्थान मान लिया.
इस मंदिर के लिए यहाके स्थानीय किसान स्व. श्री पांडुरंग केशव पाटील ने कुछ जगह मलेकर मंदिर के लिए दान मे दी थी. उन्होंने तलाव रोड स्थित श्री गावदेवी मंदिर के लिए भी अपनी कुछ जगह दान मे दी थी. इस मंदिर का सर्व प्रथम समाचार , लोकप्रिय समाचार पत्र भाईंदर भूमि ने प्रकाशित किया था.
किसीको दान दक्षिणा देनी हो तो आप श्री मोहन मधुकर पाटील, श्री यशवंत पांडुरंग पाटील, श्री मगेश आत्माराम पाटील का संपर्क कर सकते हो. जो आपको मार्गदर्शन कर सकते है.
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