जंजीरे धारावी किले का इतिहास जानना है तो वसई के किलेका इतिहास समजना होगा. किले को गढ या दुर्ग भी कहा जाता हे.
संतो की पावन भूमि वजेश्वरी गांव के वजेश्वरी योगिनी देवी मंदिर में मराठा सेनापति श्री चिमाजी अप्पा मन्नत माग रहा था, माँ में वसई का किला जितने जाता हु, और यदि में जीत गया तो , हे मा, तेरे इस मंदिर का में किले के जैसा पुनः उद्धार, जीर्णोद्धार करके दूंगा.
तीनो माता ने मन्नत कबुल की और वसई का किला श्री चिमाजी अप्पा ने जीत लिया और वादे के मुताबिक उसने किले के जैसा मंदिर निर्माण वजेश्वरी में किया जो आज भी प्रेक्षणीय हे.
करीब बीस पच्चीस साल पहले तक भाईन्दर-उत्तन चौक खाड़ी किनारे से वसई किले के बुरुज आसानीसे दीखते थे. अतिक्रमण और बढे पैड की वजह धीरे धीरे दिखना बंद हुआ. उत्तन चौक स्थित भी एक किला था. जहां श्री
नरवीर चिमाजी अप्पा का अश्वारूढ़ स्मारक ” बनाया गया है.
पुराने लोगोंका कहना था कि चौक के धारावी किले से वसई के किले तक पानी के नीचे से एक भुयारी मार्ग था. जो सैन्य के आवागमन के लिये बनाया गया था.
सन 1739 तक वसई के किले पर पुर्तगाल की हकूमत थी. उस वक्त दीव, दमण, गोवा, सेलवास, नगर हवेली, अर्नाला विरार केलवा तक पुर्तगाल का राज़ चलता था. नरवीर चिमाजी अप्पा (सन 1707 से 1740) ने दो साल तक लड़ाई जारी रखकर पुर्तगाल वसाहत पर जीत हासिल की और साष्टी तालुका पर अपना वर्चस्व स्थापित किया था.
इसी दौरान नरवीर चिमाजी अप्पा ने अपने चुनंदे 400 सैन्य के सहारे विरार का किला पर भी जीत हासिल की थी. शूरवीर नरवीर चिमाजी अप्पा, बाजीराव पेशवा के छोटे भाई थे.
वसई के किले का भौगोलिक रूप कुछ ऐसा हे पश्चिम में अरबी समुद्र, दक्षिण में वसई की खाड़ी, पूर्व एवं उत्तर में वसई गाँव विद्यमान हे. वसई स्टेशनसे छह किलोमीटर दुरी पर रोड मार्गे आप वसई के किले तक पहुंच सकते हे.
इस किले में कुल दस बुर्ज हे. मुसलमान ओर पुर्तगाल स्थापत्य शैली का मिश्रण किले का आकर्षण हे. सन 1907 में पुरातन विभाग ने अपने तांबे में लिया मगर रख रखाव के अभाव की वजह खस्ताहाल बना रहा.
किले को एतिहासिक धरोहर का दर्जा दिया गया. अब पहलेसे हालत अच्छी हे. ईसवी सन 1533 तक वसई किले पर गुजरात के राजा बहादुर शाह का राज़ था.सन 1535 में पोर्तुगाल के कब्जे में आया. 23 मार्च 1739 के दिन नरवीर चिमाजी अप्पाने किले को जीतकर मराठा हकूमत स्थापित की. फिर से अंगेजो के पास गया, अंग्रेजो ने फिर मराठा ओको दिया. इस तरह इसके कब्जे दारोमें हकूमत घूमती रही.
इस एतिहासिक वसई किले के कुल दस बुर्ज थे. जिसके उपर से निगरानी की जाती थी. दो दरवाजे थे. मुसलमानो ने जब राज़ किया तो उन्होंने अपनी स्थापत्य शैली के हिसाब से जीर्णोद्धर किया. पुर्तगाल ने जब राज़ किया तो उनके मुताबित ढांचे को बदली किया. अतः दोनों स्थापत्य शैली का यहा दर्शन होता है. वसई किले के अंदर कुल 219 मंदिर थे, उसमेसे कुछ आज भी मौजूद है. किले में कुल चार बावड़ी (कुए ) थे. सोलह वी सदी में ये किला, व्यापार का मुख्य केंद्र था. यहा शक्कर बनाने के कारखाने थे. अनेक व्यापारी ओके व्यापार का मुख्य केंद्र था.
नरवीर चिमाजी अप्पा बाजीराव पेशवा का छोटा भाई था. अतः उसे मालूम था की उसे राजगद्दी नही मिलने वाली है, फिर उसने सेनापति का काम बखूभी निभाया ओर जीत हासिल की.
आपको समय मिले तो कभी जरूर वसई किले की मुलाकात करना. यह किला पालघर जिला के वसई स्टेशन पश्चिम. ( WR ) से छह किलोमीटर की दुरी पर विद्यमान है. आप रिक्षा, बस या अपना प्राइवेट वाहन लेकर वहां तक पहुंच सकते है. किले के दक्षिण छोर स्थित जेटी से मीरा भाईन्दर महा नगर पालिका शहर का नजारा दूरसे देख सकते हो.
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