300 साल पहले भाईंदर क्षेत्र को ” भाईबन्दर ” के नामसे पुकारा जाता था. कई बुजुर्ग भाईंदरवासी ओका यह कहना था कि, भाईंदर गांव को पुराने जमाने मे ” भाई बन्दर ” के नाम से पुकारा जाता था. संक्षिप्त मे नाम कहने की प्रथा ने उसे कालान्तर के बाद इस नामका भाई (ब) न्दर यांनी भाईन्दर या भाईंदर के नाम से भाईबन्दर प्रचलित हुआ. जो नाम आज तक चालू है.
मराठा साम्राज्य के इतिहास मे भी उल्लेख मिलता है की जब मराठा ओने जंजीरे धारावी किला का निर्माण किया तब यहां तक पहुंचने के लिए मुर्धा की खाड़ी और मोरवा की खाड़ी पार करने बडी मसक्कत करनी पड़ी थी. क्योंकि तब यहां रोड का नामोनिशान नही था. यातायात का एकमात्र साधन नाव था.
भाईंदर स्टेशन का निर्माण सन 1901 मे हुआ था. भाईंदर का पुराना ब्रिज सन 1870 के आसपास बनना शुरु हुआ. इससे पहले भाईंदर मे ईस्ट वेस्ट जैसा कुछ भी नहीं था.
सर्व प्रथम ब्रिटिश शासन ने रेल्वे मार्ग को बनाने के लिए मिट्टी की भरनी डालना शुरु की. ब्रिटिश शासन हमेशा दूरदृष्टि से कार्य करते थे. उन्होंने रेल्वे मार्ग इतना ऊंचा बनाया की 100 साल तक उसमे कोई बदल करने की जरुरत ना पड़े.
जब प्लेटफार्म का निर्माण किया तो हर स्टेशन पर, स्टेशन का नाम और समुद्र सतह से स्टेशन की ऊंचाई कितनी है ? ये सूचना स्टेशन के नाम के साथ, बोर्ड पर ही स्टेशन के दोनों छोर पर लिखी जाती थी.
कालांतर के बाद समुद्र सतह से ऊंचाई की सूचना लिखना बंद कर दिया गया. आज भी मुंबई के बाहर कई स्टेशनो पर ऐसे ब्रिटिश कालीन बड़े बोर्ड देखे जा सकते है, जिसमे समुद्र सतह से स्टेशन की ऊंचाई दर्शाई गई है.
मीरारोड ईस्ट वेस्ट मे तीन चार किलोमीटर तक पूर्व पश्चिम मे कोई गांव नहीं था. अतः मीरारोड पूर्व का मिरा गाँव के नाम से ” मीरारोड ” स्टेशन का नामकरण किया गया.
भाईंदर स्टेशन के निर्माण की बात आयी तो पहेली पसंद फाटक स्थित आज जहां सब वे बनाया गया है, वहां पर भाईंदर स्टेशन बनाने का निर्णय लिया गया. क्योकि तत्कालीन मुख्य गाँव भाईंदर का अंतर यहांसे कुछ दुरी पर ही था.
मिरा भाईंदर मे रोड का नामो निशान नहीं था. लोगोंके आवागमन के लिए छोटी मोटी नाव चलती थी. ब्रिटिश शासन ने नमक उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए वर्तमान जगह पर भाईंदर स्टेशन का निर्माण किया गया.
पुराना पुल बनने के बाद वहापर एक छोटा यार्ड तथा स्टेशन बनाया गया जहासे नमक की गोनी को उसके गंतव्य स्थान पर पहुंचाया जा शके. नमक को रखने के लिए भाईंदर पश्चिम चौपाटी खाड़ी किनारे दो बड़े ऊँचे पतरे के शेड बनाये गये जो जर्जरित होनेके कारण वर्तमान मे उसे तोड़ दिया गया है.
आजादी के बाद पुराने पुलके राख रखाव के लिए एक अफसर जिसका नाम ब्लैक साहब को रखा गया था. जो घर आज भी विध्यमान है.
शुरूमे यहां तक पहुंचने के लिए एक मिट्टी और पत्थर का कच्चा रोड बनाया गया था.
ग्रामपंचायत के तत्कालीन सरपंच श्री चंदूलाल भाई छबीलदास शाह के प्रयत्न से भाईंदर पश्चिम पुलिस स्टेशन से भाईंदर पश्चिम स्टेशन तक सीमेंट कंक्रीट का पक्का रोड बनाया गया. जो वरसो तक चला था. जर्जरित होनेके कारण रोड रुंधीकरण के समय मिटा दिया गया था.
देवल आगर का नमक उठाने के लिए फकरी कॉलोनी तक बडी नाव पड़ाव ( दूंगी ) आती थी. सन 1962 तक भरती के समय समुद्र का पानी राजेश होटल से शिवसेना गली तक आता था. रमणीय दृश्य दिखता था.
उस जमाने मे नमक उत्पादन के लिए नाना बंदर, मोटा बंदर, देवल मीठा आगर, अस्सी आगर, श्रीप्रसाद आगर, शिलोत्री के आगर, सनखाई आगर, बबू आगर , नाजरेथ आगर, और भाठी आगर आदि नमक उत्पादन के आगर शुरु हो चुके थे
सॉल्ट विभाग कस्टम ने कई जगह पत्थर की चौकी बना दी थी. ताकी कोई बिना टोल टेक्स भरे नमक नहीं ले जा सके. बादमे उन्होंने भाईंदर पश्चिम स्थित स्टेशन के सामने अपनी मुख्य ऑफिस बनाई और मूर्धा गांव की और जाते समय सुभाषचंद्र बोस ग्राउंड के पहले विधिवत टोल टेक्स नाका की स्थापना की गई, जहासे नमक पर टेक्स वसूला जाता था.
सन 1950 तक भाईंदर पूर्व पश्चिम की कुल जनसंख्या 5000 थी.
रेल्वे मार्ग बनने से पहले यहां पर पूर्व पश्चिम जैसा कुछ भी नहीं था. रेल्वे मार्ग बनने के बाद लोग रेल्वे के पूर्व तरफ के भाग को पूर्व तथा रेल्वे के पश्चिम तरफ के भाग को पश्चिम के नामसे पहचानने लगे.
300 साल पहले लोग आवागमन के लिए सिर्फ नाव का उपयोग करते थे. भाईंदर से दहिसर, बोरीवली से मुंबई के अन्य भागोंमें तथा ठाणे जाने के लिए निजी या भाड़े की नाव का उपयोग किया करते थे . पूर्व मे घोड़बंदर से ठाणे जानेके लिए भी भाईंदर की खाड़ी मार्ग से नाव मे ही सफर करते थे.
भाईंदर पश्चिम मे मोरवा गाँव के आगे शादी के बारात की नाव ने जल समाधी ली थी जिसमे दूल्हा – दुल्हन सहित सेकड़ो बारातियों की जान चली गई थी. आज भी उस जगह को स्थानीय लोग नवरा – नवरी के नामसे पुकारते है.
उल्लेखनीय है कि भारतीय रेलवे के इतिहास में ता : 16 अप्रैल 1853 के दिन देश में पहली रेल बम्बई ( अब मुंबई ) से ठाणे के बीच चली थी. उसके बाद रेल्वे का विस्तार होते गया, जो आज तक चालू है.
सन 1987 तक बोरीवली और विरार के बिच सिर्फ दो लाइन थी. आज चार लाइन है फिर भी भीड़ यथावत है.
मुंबई महानगर पालिका के नजदीक होनेके कारण तथा सस्ते आवास की लालच की वजह यहां बस्ती विस्फोट हुआ और वर्तमान करीब 15 लाख से न्यादा जनसंख्या पहुंच गई होनेका अब अनुमान किया जा रहा है|
——=== शिवसर्जन ===——