भाईंदर, घोड़बंदर और काशीमीरा यह तीन गांव की कॉ.ऑप. हाउसिंग सोसाइटी जब जमीन संबंधित 7/12 के उतारे पर अपना नाम सामिल करने के लिए तहसीलदार कार्यालय में जाती है तो उन्हें, ” इस्टेट इन्वेस्टमेंट कपनी ” से ना हरकत दाखिला लानेको कहते है.
जब ये इस्टेट इन्वेस्टमेंट कंपनी के पास जाते है तो उन्हें पेनल्टी सह बाकी राशि अदा करनेको को कहा जाता है. सन 1860 से उपरोक्त तीन गांवके लोग इस्टेट इन्वेस्टमेंट कंपनी को कर अदा कर रहे है.
जानते है इस्टेट इन्वेस्टमेंट कंपनी क्या है ? क्यों वो भूमि धारकों से धन राशि वसूलते है ?
मिरा भाईन्दर क्षेत्र तीन ओर समुद्र के खारे पानी से घेरा हुआ है. समुद्र में बड़ी भरती आती है तो हमेशा उनको खारा पानी आनेका खतरा रहता था.
अतः खेती की रक्षा, बांध बंदोबस्त करने के लिये भाईन्दर, घोड़बंदर, और काशीमीरा के एरिया को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने सन 1860 में बांध बांधनेके लिये इस्टेट इन्वेस्टमेंट कंपनी को 999 साल की लीज़ पर ठेका दे दिया गया.
खाड़ी का खारा पानी खेत में न आये इसके लिये नियुक्त किये गये ठेकेदार को किसानो द्वारा चावल की खेती का 1/3 हिस्सा कर के रूप में देना पड़ता था.
सन 1948 साल मे ठेकेदार इस्टेट इन्वेस्टमेंट कंपनी ने लापरवाह की और खेतो में खारा पानी घुस गया. किसानो को काफी नुकसान हुआ अतः सभी किसानो ने असहयोग आंदोलन शुरु किया. उन्होंने मिलकर भाईन्दर, घोड़बंदर, काशीमीरा शेतकरी सहकारी संस्था की स्थापना की ओर शिकायत दर्ज की.
श्री भाउ साहेब वर्तक की अध्यक्षता में एक जांच समिति बनाई गई जिसके रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने इस्टेट इन्वेस्टमेंट कंपनी के कामकाज को अपने हाथो में लेते एक इस्टेट मैनेजर की नियुक्ति की. मगर बादमे कंपनी ने रिकार्ड ऑफ़ राइट की माग करके किसानो की जमीन के 7/12 उतारे पर अपना नाम दर्ज करा लिया.
किसानो ने इसका जोरदार विरोध किया. अतः प्रांत साहब ने उनका नाम सन 1972 में निकाल दिया. इस पर कंपनी ने अपिल की जिसका निर्णय सन 1992 में रेजिडेंट कलेक्टर ने मंडल के विरोध में दिया. और आदेश दिया की किसानो का नाम अन्य हक धारक के रूप में लिखा जाय.
मिरा भाईन्दर शहर क्षेत्र के भाईंदर,
घोड़बंदर, काशीमीरा की अधिक जगह बिक चुकी है. और आज वहां घर, मकान या उद्योगिक व्यवसाय बन गये है. वे अपनी जमीन की खरीद विक्री, एन ए, या बांधकाम परमिशन के लिये अर्ज करते है तो सरकार के अधिकारी उनसे इस्टेट इन्वेस्ट कंपनी का ना हरकत दाखला लानेकी मांग करते है, इससे उन लोगोंका सामूहिक आर्थिक नुकसान हो रहा है.
महाराष्ट्र सरकार ने खेती नस्ट कानून बनाया मगर इस्टेट इन्वेस्ट कंपनी का लीज पट्टा रद्द नहीं किया जो किसानो को सरदर्द बन रहा है. कहा जाता है, ” कसेल त्याची जमीन ” आज ब्रिटिश काल से भाईन्दर, घोड़बंदर, काशीमीरा का किसान खेती करते आया है, खेती की राख रखाव करता आया है, फिर अन्य का नाम 7/12 के उतारे के उपर क्यु है ? इसीलिए सरकार किसानो के हित में लीज रद्द करें यही उचित होगा.
क्या यह हमारी स्वतंत्रता है ? सिर्फ समुद्र का खारा पानी खेत में न पहुंचे उसका ठेका देने मात्र से इस्टेट इनवेस्ट कंपनी का नाम सात बारा के उतारा के उपर ? रेल्वे से लेकर नगर पालिका, महा नगर पालिका सब जगह ठेका दिया जाता है. क्या वे कायम के हक दार बन जाते है ?
क्या इस्टेट इनवेस्ट कंपनी आज भी बांध का राख रखाव कर रही है ?
आजादी के बाद कई सरकारे आयी और गई मगर इस और किसीने ध्यान नहीं दिया. मिरा भाईंदर शहर क्षेत्र की अधिकांश बिल्डिंग जो 30 या 40 साल पहले बन चुकी है , वे सभी जर्जरित अवस्था में पहुंच चुकी है, और सभी बिल्डिंगे रिडेवलोपमेन्ट की राह देख रही है. ये सभीको इस्टेट इन्वेस्टमेंट कंपनी का पेनल्टी सह कर भरना ही पड़ेगा ये निश्चित है.
——=== शिवसर्जन ===——