दो “जेन” प्रेरक कथा.

ज़ेन (ZEN ) दुनिया भर में लाखों लोगों द्वारा प्रचलित बौद्ध परंपरा का जापानी नाम है. ऐतिहासिक रूप से, ज़ेन प्रथा चीन, कोरिया, जापान और वियतनाम में उत्पन्न हुई और बाद में पश्चिम में आयी. ज़ेन बौद्ध धर्म का एक रूप है जो मनुष्य की जागृति पर जोर देता है. ज़ेन कहानियां हमें जीवन को सरलता का मार्ग दिखातीं हैं. ज़ेन कहानी को पढ़कर आप ज़िन्दगी को जीने का तरीका सीख सकते है.

आज ऐसी ही दो प्रेरक जेन कथा यहां पर प्रस्तुत करता हूं.

कथा = 1. ” मैले कपड़े.”

जापान के ओसाका शहर के निकट किसी एक गांव में एक जेन मास्टर रहते थे. उनकी ख्याति पूरे देशभर में फैली हुई थी उनको दूर दूर से कई लोग मिलने और अपनी समस्याओं का समाधान कराने आते थे.

एक दिन की बात है मास्टर अपने एक अनुयायी के साथ प्रातः काल सैर कर रहे थे कि अचानक ही एक व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें भला–बुरा कहने लगा. उसने पहले मास्टर के लिए बहुत से अपशब्द कहे , पर बावजूद इसके मास्टर मुस्कुराते हुए चलते रहे. मास्टर को ऐसा करता देख वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उनके पूर्वजों तक को अपमानित करने लगा. पर इसके बावजूद मास्टर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते रहे. मास्टर पर अपनी बातों का कोई असर ना होते हुए देख अंततः वह वयक्ति निराश हो गया और उनके रास्ते से हट गया.

उस वयक्ति के जाते ही अनुयायी ने आश्चर्य से पुछा “मास्टर आपने भला उस दुष्ट की बातों का जवाब क्यों नहीं दिया ? और आप मुस्कुराते रहे ,क्या आपको उसकी बातों से कोई कष्ट नहीं पहुंचा ?”

जेन मास्टर कुछ नहीं बोले और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया. कुछ देर चलने के बाद वे मास्टर के कक्ष तक पहुँच गए.

मास्टर बोले , ” तुम यहीं रुको मैं अंदर से अभी आया. “ मास्टर कुछ देर बाद एक मैले कपड़े लेकर बाहर आये और उसे अनुयायी को थमाते हुए बोले “लो अपने कपड़े उतारकर इन्हे धारण कर लो.”

कपड़ों से अजीब सी दुर्गन्ध आ रही थी और अनुयायी ने उन्हें हाथ में लेते ही दूर फेंक दिया.

मास्टर बोले, ” क्या हुआ तुम इन मैले कपड़ों को नहीं ग्रहण कर सकते ना ? ठीक इसी तरह मैं भी उस व्यक्ति द्वारा फेंके हुए अपशब्दों को नहीं ग्रहण कर सकता.

इतना याद रखो कि यदि तुम किसी के बिना मतलब भला–बुरा कहने पर स्वयं भी क्रोधित हो जाते हो तो इसका अर्थ है कि तुम अपने साफ़–सुथरे वस्त्रों की जगह उसके फेंके फटे–पुराने मैले कपड़ों को धारण कर रहे हो.”

सार :

कथा = 2.

इस ज़ेन कहानी में गुरु ने शांत चित रहकर अपने आप पर और अपने विचारों पर काबू पाने की बात कही है. किसी के अपशब्दों से हमें बिलकुल भी विचलित नहीं होना चाहिए. हमारे मन और तन पर सिर्फ हमारा ही कंट्रोल होना चाहिए.

एक बार ज़ेन मास्टर बनकेइ ने ध्यान करना सिखाने का कैंप लगाया तो पूरे जापान से कई बच्चे उनसे सीखने आये . कैंप के दौरान ही एक दिन किसी छात्र को चोरी करते हुए पकड़ लिया गया . बनकेइ को ये बात बताई गयी , बाकी छात्रों ने अनुरोध किया की चोरी की सजा के रूप में इस छात्र को कैंप से निकाल दिया जाए . पर बनकेइ ने इस पर ध्यान नहीं दिया और उसे और बच्चों के साथ पढने दिया.

” चोरी की सजा “

कुछ दिनों बाद फिर ऐसा ही हुआ, वही छात्र दुबारा चोरी करते हुए पकड़ा गया . एक बार फिर उसे बनकेइ के सामने ले जाया गया , पर सभी की उम्मीदों के विरूद्ध इस बार भी उन्होंने छात्र को कोई सजा नहीं सुनाई.

इस वजह से अन्य बच्चे क्रोधित हो उठे और सभी ने मिलकर बनकेइ को पत्र लिखा की यदि उस छात्र को नहीं निकाला जायेगा तो हम सब कैंप छोड़ कर चले जायेंगे.

बनकेइ ने पत्र पढ़ा और तुरंत ही सभी छात्रों को इकठ्ठा होने के लिए कहा गया. बनकेइ ने बोलना शुरू किया,आप सभी बुद्धिमान हैं. आप सभी जानते हैं की क्या सही है और क्या गलत. यदि आप कहीं और पढने जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं , पर ये बेचारा यह भी नहीं जानता की क्या सही है और क्या गलत. यदि इसे मैं नहीं पढ़ाऊंगा तो और कौन पढ़ायेगा ? आप सभी चले भी जाएं तो भी मैं इसे यहाँ पढ़ाऊंगा.

यह सुनकर चोरी करने वाला छात्र फूट -फूट कर रोने लगा. अब उसके अंदरसे चोरी करने की इच्छा हमेशा के लिए जा चुकी थी.

सार :

इस ज़ेन कहानी में गुरु ने ये बताया कि गुरु के लिए सभी शिष्य एक से हैं और गुरु का काम भी तो आखिर एक अच्छा इंसान बनाना है. बस इसी प्रकार हमारा भी ये दायित्व है कि समाज में ऐसे बच्चे जिनको सही गलत का पत्ता ही नहीं है उनको सही मार्गदर्शन मिले और उनका जीवन सफल बन सके.

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