आपने रेल पटरियों पर दौड़ती ट्रैन देखी है. मगर आपको पत्ता है? जिस पटरियों पर ट्रैन चलती है उस पटरियों के गेज के अलग अलग प्रकार होते है. किसी रेलवे रूट पर दो पटरियों के बीच की दूरी को रेलवे गेज के रूप में जाना जाता है.क्या आपको पत्ता है ? दुनिया के रेलवे का लगभग साठ प्रतिशत हिस्सा 1,435 मिमी के मानक गेज का उपयोग करता है. भारत में 4 प्रकार के रेलवे गेज का उपयोग किया जाता है.
रेलवे के चार गेजो मे (1) ब्रॉड गेज, (2) मीटर गेज, (3) नैरो गेज और (4) स्टैंडर्ड गेज (दिल्ली मेट्रो के लिए) का समावेश होता है.
ब्रॉड गेज की चौड़ाई :
1676 मि.मी. (5 फुट 6 इंच) होती है.
मीटर गेज की चौड़ाई :
1000 मि.मी.(3 फुट 3 3⁄8″) होती है.
नैरो गेज की चौड़ाई :
762 मि.मी. (2 फुट 6 इंच) होती है.
स्टैण्डर्ड गेज की चौड़ाई :
1435 मि.मी.(4 फुट 8 1⁄2″) होती है.
सामान्य कोच की लम्बाई करीब 22 मीटर होती है. जबकि LHB कोच की लम्बाई लगभग 23.54 मीटर होती है. ऐसे में पुराने डिब्बों में जहां स्लीपर कोच में 72 सीटें होती हैं वहीं LHB में 80 तक सीटें होंगी.
ट्रेनों के पहियों की बनावट, माप, भार व रसायन में अंतर होता है. एक तरह जहां मालगाड़ी के पहिये का वजन 484 किलो, व्यास 1000 एमएम व कार्बन की मात्रा 0.55-0.70 प्रतिशत होती है. जबकि यात्री ट्रेन के पहिये का भार 384 किलो, व्यास 920 एमएम व कार्बन की मात्रा 0.45-0.60 प्रतिशत होती है.
कुछ ट्रेनों मे सीट वाले कोच होते है इसमें एक लाइन में 5 कुर्सियां होती है. यह कोच में एयरकंडीशन्ड की सुविधा मिलती है. इस कोच को एसी डबल डेक सीटर भी कहा जाता है. इन कोच का इस्तेमाल ज्यादातर दिन में सफर करने वाले ट्रैन में किया जाता है.
कई लोगोंके मनमे यह प्रश्न उठाता है , कि ट्रैन के इंजन मे कितना तेलकी खपत होती होंगी. एक अनुमान है कि एक बार इंजन को स्टार्ट करने में 25 लीटर तेल की खपत होती हैं. ट्रेन यदि एक किलोमीटर चले तो उसमे करीब15 लीटर तेल लगता हैं. ऐसे में इंजन को बंद करना बेहतर विकल्प नहीं होता है.
अनुमान है कि ट्रेन का इंजन एक किलोमीटर चलने में 15 से 20 लीटर डीजल खपत करता हैं. खास बात यह है कि डीजल इंजन में एक बैटरी लगी होती है और ये बैटरी तभी चार्ज होती है जब इंजन चालू रहता है. यही कारण से ट्रेन का इंजन किसी भी स्टॉप या स्टेशन पर बंद नहीं किया जाता है.
कुछ दिलचस्प बातें :
*** डेक्कन क्वीन कल्याण से पुणे तक चलती है.
*** संसार की पहली हॉस्पिटल ट्रेन को लाइफलाइन एक्सप्रेस (जीवनरेखा एक्सप्रेस) कहा जाता है.
*** भारत के सिक्किम और मेघा राज्य में रेल सुविधा उपलब्ध नहीं है.
*** लाइफलाइन एक्सप्रेस (जीवनरेखा एक्सप्रेस) का आरंभ सन 1991 में हुआ था.
***:भारत की पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन डेक्कन क्वीन के रूपमें चलाई गई है.
*** भारत और बांग्लादेश के बीच मे चलने वाली ट्रेन का नाम मैत्री एक्सप्रेस रखा गया है.
*** विश्व का सबसे लंबा प्लेटफार्म गोरखपुर स्टेशन प्लेटफार्म है.
*** भारत की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन शताब्दी एक्सप्रेस है.
*** ” फेयरी क्वीन ” विश्व का सबसे पुराना भाप लोकोमोटिव इंजन है जो आज भी काम कर रहा है.
*** भारतीय रेलवे बोर्ड की स्थापना सन 1905 में हुई थी.
ट्रैन को खास टेक्निकल सिस्टम के जरिए संचालित किया जाता है. ट्रैन के मोटरमैन के हाथमे ट्रैन को चलाना, सिंगनल के अनुसार स्पीड कम ज्यादा करना, ट्रैन को ब्रेक मारकर रोकना और आपातकालीन स्थिति मे इमर्जन्सी ब्रेक मारना आदि सिमित काम होता है.
ट्रैक को बदलने की स्थिति असल में रेलवे स्टेशन के पास ही होती है. ट्रैन की पटरी बदली करना,सिंगनल द्रारा ट्रैन को रोकना, प्लेटफार्म बदली की जानकारी देना टेक्निशियन का काम होता है. ट्रैन को मोड़ देना पटरी और व्हील का काम होता है.
जब आप किसी व्हील को बारीकी से से देखेंगे तो आपको पता चलेगा की पाहियों के बाहरी हिस्सा अन्दर वाले हिस्से से अलग होता हैं. अन्दर वाले हिस्से में आपको एज(Edge) देखने को मिलेगी और इन्ही राउंड एज (Edge) को हम फलांगेस (flanges) कहते हैं. ट्रेन को ट्रैक पर बनाये रखने के लिए इनका ख़ास महत्वा होता है.
जब ट्रेन चलती है तो इस तरह के मूवमेंट्स में हमें कोई खतरा नहीं है और ये बहोत नार्मल है. लेकिन जब ट्रेन की मूवमेंट बहोत ज्यादा फ़ास्ट हो जाती है तो खतरा बन सकता है उस समय ये फलांगेस इसे सुरक्षित रखने में पूरी तरह मदद करते हैं. क्यूँ की इनके अन्दर जो फलांगेस बने हैं उनकी वजह से ये पहिये ट्रैक से फिसल कर जाना भी चाहे तो भी नहीं जा सकते.
वास्तव मे पहिये के अंदर वाली एज (Edge) ही ट्रैन की पटरी के मोड़ के अनुसार ट्रैन को मोड़ देनेका काम करती है. यदि मोड़ ज्यादा हो तो वहां ट्रैन की स्पीड को कम किया जाता है. इसकी जानकारी मोटरमैन को सूचना फलक के द्वारा या सिंगल स्पीड से पता चल जाता है.
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