काले धन को बढ़ावा देने वाली पगड़ी

साठ सत्तर के जमाना में आवास की खरीददारी में ” पगड़ी ” प्रणाली का चलन था. जिसमे काले धन का लेन देन होता था. मकान मालिक रुम, फ्लैट या दुकान बनाकर, उसकी लागत जितना पैसा किरायेदार से वसूल कर लेता था.

उदाहरण के तौर पर मकान मालिक को एक सदनिका बनाने में एक लाख रुपिया लगा हो तो वो किरायेदार से ब्लैक में एक लाख रुपिया “पगड़ी” ले लेता था. और मानों 100 रुपिया भाड़ा तय किया गया हो तो उसकी तीन महीने की रिसिप्ट यांनी 300 रुपये की पावती दी जाती थी. जिसे “डिपॉजिट पावती” कहा जाता था. बाकी एक लाख रुपिया ब्लैक में वसूला जाता था.

उसके बाद किरायेदार को मकान मालिक को प्रत्येक महीने 100 रुपिया भाड़ा देना होता था. रेंट एक्ट,1974 के अनुसार नकदमें पगड़ी को देना या लेना ” गैरकानूनी ” है, फिर भी उस जमाने मे काले धन का व्यापक चलन था. आज भी, मुंबई जैसे शहरों में, किरायेदारी के हस्तांतरण के लिए, लेन-देन में कुल राशि का 33 प्रतिशत मकान मालिक को भुगतान किया जाता है. अगर कोई अपना घर 9 लाख रुपये में बेचना चाहता है, तो उसे 3 लाख रुपये मकान मालिक को देना होता है. वो भी ब्लैक में!

” पगड़ी ” प्रणाली में रुम या घर के खरीदार को किरायेदार कहा जाता है.

जब उक्त संपत्ति का पुनर्विकास होता है, तो मकान मालिक डेवलपर के साथ एक सौदा करके अपने 33 % हिस्से का दावा करता है.

मिरा भाईंदर शहर से लेकर मुंबई, महाराष्ट्र और देश के कई जगह पगड़ी का दुषण सिरदर्द बना हुआ है. यदि इस संदर्भ में सरकार कोई ठोस कदम लेती है तो दोनों पक्ष को फायदा होगा. और सरकार को करोड़ों का राजस्व मिलेंगा.

आज आलम ये है की किरायेदार रुम छोड़ना नहीं चाहता और मकान मालिक उसे सस्ते में पटाकर रुम को हड़पना चाहता है. फिर मकान मालिक नीचता की हर हद पार कर जाता है. वो पहले पानी का कनेक्शन कटवा देता है. फिर लाइट का कनेक्शन कटवा देता है.

किरायेदार को डरा धमका के भाड़ा लेना बंद करता है. फिर भाड़ा ना देनेका आरोप लगाता है. वो ईमारत को दुरुस्त करना बंद करता है. यदि कोर्ट में केस गया तो दस बारा साल लग जाता है. ये बात कोर्ट भी भली भाति जानती है और ज्यादातर अंतिम फैसला किरायेदार के पक्ष में आता है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, लिमिटेशन ऐक्ट 1963 के अंतर्गत निजी अचल संपत्ति पर लिमिटेशन की वैधानिक अवधि 12 साल की है और सरकारी अचल संपत्ति के मामले में यह अवधि 30 साल की है. यह मियाद कब्जे के दिन से ही शुरू हो जाती है.

अगर कोई 12 साल तक किसी भी संपत्ति पर एडवर्स पजेशन रखता है तो वह संपत्ति पर अधिकार जता सकता है. जानना जरुरी है क्या होता है एडवर्स पजेशन. मान लीजिए किसी व्यक्ति ने अपनी प्रोपर्टी किसीको रहने के लिए दे रखी है और उस व्यक्ति को वहां रहते हुए 11 साल से ज्यादा का समय हो गया है, तो वह व्यक्ति उस संपत्ति पर अपना अधिकार भी जमा कर सकता है. लेकिन यदि मकान मालिक समय समय पर किरायेदार से रेंट एग्रीमेंट बनवा रहा है तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी. इस स्थिति में कोई भी व्यक्ति मालिक की संपत्ति पर कब्जा नहीं कर पाएगा.

देश भर में ऐसे लाखो पगड़ी के केस न्याय के इंतजार में है. यदि इसका हल निकाला जाय तो देश की आमदनी में निश्चित अरबो का फायदा होगा. काले धन का वाइट मनी में रूपांतर होगा. किरायेदार को अपने हक का स्थायी घर मिलेगा.

ये देश व्यापी जटिल समस्या के समाधान को लेकर, मौजूदा सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? भारत देश के भाग्य विधाता जन अधिनायक ने कभी इसके बारेमें सोचा है ?

है कोई विधायक, सांसद या हमारे राजनीतिक पक्ष जो किरायदारों को न्याय प्रदान कर सके ? ताकी हम गर्व से कह सके कि…………. जन गण मन अधिनायक जय है,भारत भाग्य विधाता.

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