” नक्सल ” शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है, जहाँ भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्यालने 25 मई 1967 मे सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की थी.
सोशल मीडिया की रिपोर्ट को माने तो नक्सलवाद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आंदोलन का अनौपचारिक नाम है , जो भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ.
उदाहरण के लिए एक आतंकी चाहता है कि लोग उस के अल्लाह के बताए गए हिंसात्मक और कट्टर रास्ते पर चले शरीया कानून अर्थात इस्लामी कानून को लागू करके. वही एक नक्षली यह चाहता है कि लोग नास्तिक हो जाये कोई किसी भी ईश्वर अल्लाह में यकीन न करे. ये बात अलग है कि इसपर कुछ मुस्लिम कहते है कि आतंकी असली मुसलमान नही हो सकता भटका हुआ होता है.
मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से एक थे और उनका यह मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ ही जिम्मेदार हैं. जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन तंत्र स्थापित हो गया है.
उनका मानना था कि न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है. यहीं कारण वश नक्सलवादियों ने ईसवी सन 1967 में कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों की एक ” अखिल भारतीय समन्वय समिति ” की स्थापना की थी.
विद्रोहियों ने औपचारिक तौर पर स्वयं को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अलग करके सरकार के खिलाफ़ भूमिगत होकर सशस्त्र लड़ाई छेड़ दी थी. सन 1971 का आंतरिक विद्रोह नेता सत्यनारायण सिंह के नेतृत्व मे हुआ था.
कई लोगोंका कहना है कि आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टी बनकर के संसदीय चुनावों में सक्रिय भाग लेते है. लेकिन बहुत से संगठन अब भी छलावरण लड़ाई में लगे हुए हैं.
नक्सलवाद के विचारधारात्मक विचलन की सबसे बड़ी मार आँध्रप्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, झारखंड और बिहार को झेलनी पड़ रही है. फरवरी 2019 तक, 11 राज्यों के 90 जिले वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित हैं.
नक्सलवाद को माओवाद भी कहा जाता है. सन 1968 में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ मार्क्ससिज्म एंड लेनिनिज्म (CPML) का गठन किया गया जिनके मुखिया दीपेन्द्र भट्टाचार्य थे. यह लोग मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों पर काम करने लगे, क्योंकि वे उन्हीं से प्रभावित थे. 1969 में पहली बार चारु माजूमदार और कानू सान्याल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर पूरे देश में सत्ता के खिलाफ एक व्यापक लड़ाई शुरू कर दी थी.
भूमि अधिग्रहण को लेकर देश में सबसे पहले आवाज नक्सलवाड़ी से ही उठी थी. आंदोलनकारी नेताओं का मानना था कि जमीन उसी की हो जो उस पर खेती करें. नक्सलवाड़ी से शुरु हुआ इस आंदोलन का प्रभाव पहली बार तब देखा गया जब पश्चिम बंगाल से काँग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा. इस आंदोलन का ही प्रभाव था कि सन 1977 में पहली बार पश्चिम बंगाल में कम्यूनिस्ट पार्टी सरकार के रूप में आयी और ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने.
जब यह आंदोलन फैलता हुआ बिहार पहुँचा तब यह अपने मुद्दों से पूर्णतः भटक चुका था. अब यह लड़ाई भूमि की लड़ाई न रहकर जातीय वर्ग की लड़ाई बन चुकी थी. यहां से प्रारम्भ होता है उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग के बीच का उग्र संघर्ष जिससे नक्सल आन्दोलन ने देश में नया रूप धारण किया. श्रीराम सेना जो माओवादियों की सबसे बड़ी सेना थी, उसने उच्च वर्ग के विरुद्ध सबसे पहले हिंसक प्रदर्शन करना प्रारम्भ किया था.
इससे पहले 1972 में आंदोलन के हिंसक होने के कारण चारु माजूमदार को धरपकड़ कर लिया गया और 10 दिन के लिए कारावास के समय ही उनकी कारागृह में ही मृत्यु हो गयी थी. नक्सलवादी आंदोलन के प्रणेता कानू सान्याल ने आंदोलन के राजनीति का शिकार होने के कारण और अपने मुद्दों से भटकने के कारण तंग आकर ता : 23 मार्च, 2010 को आत्महत्या कर ली थी.
भारत में नक्सलवाद की बड़ी घटना मे सन 2007 छत्तीसगढ़ के बस्तर में 300 से ज्यादा विद्रोहियों ने 55 पुलिस कर्मियों को मौत के घाट पर उतार दिया था. सन 2008 ओडिसा के नयागढ़ में नक्सलवादियों ने 14 पुलिसकर्मियों और एक नागरिक की हत्या कर दी थी. सन 2009 महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में हुए एक बड़े नक्सली हमले में 15 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गये थे.
2010 नक्सलवादियों ने कोलकाता मुंबई ट्रेन में 150 यात्रियों की हत्या कर दी थी. सन 2010 मे ही पश्चिम बंगाल के सिल्दा केंप में घुसकर नक्सलियों ने हमला कर दिया जिसमें अर्द्धसैनिक के 24 जवान शहीद हो गए थे.
सन 2010 छत्तीसगढ के दंते वाड़ा में हुए एक बड़े नक्सलवादी हमले में कुल 76 जवान शहीद हो गए जिसमें सीआरपीएफ के जवान सहित पुलिस कर्मी भी शामिल थे. 2012 झारखंड के गढ़वा जिले के पास बरिगंवा जंगल में 13 पुलिसकर्मीयों की हत्या कर दी थी. सन 2013 छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सलियों ने कांग्रेस के नेता सहित 27 व्यक्तियों की हत्या कर दी थी. सन
2021 में छत्तीसगढ़ के बीजापुर में सुरक्षा बलों के 23 जवान शहीद हो गए और 31 जवान घायल हुए थे.
माना जाता है कि नक्सलवाद के वित्तपोषण के भी कई स्रोत हैं, इसमें से सबसे बड़ा स्रोत खनन उद्योग है. तथा नक्सली संगठन मादक दवाओं (ड्रग्स) का भी व्यापार करते हैं. नक्सलियोंको मिलने वाला करीब 40% फण्ड नशे के व्यापार से ही आता है.
नक्सलियों के विरुद्ध चलाएँ गए मुख्य अभियान सन 1971 में चलाया गया था. इस अभियान में भारतीय सेना तथा राज्य पुलिस ने भाग लिया था. अभियान के दौरान लगभग 20,000 नक्सली मारे गए थे.
ग्रीनहंट अभियान सन 2009 में चलाया गया था. इस नक्सल विरोधी अभियान को यह नाम मीडिया द्वारा प्रदान किया गया था. इस अभियान में पैरामिलेट्री बल तथा राष्ट्र पुलिस ने भाग लिया था तथा यह अभियान छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र में चलाया गया था.
प्रहार अभियान ता : 3 जून, 2017 को छत्तीसगढ़ राज्य के सुकमा जिले में सुरक्षा बलों द्वारा अब तक के सबसे बड़े नक्सल विरोधी अभियान ” प्रहार ” को प्रारंभ किया गया था. सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों के चिंतागुफा में छिपे होने की सूचना मिलते ही इस अभियान को चलाया गया था. इस अभियान में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के कोबरा कमांडो, छत्तीसगढ़ पुलिस, डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड तथा इंडियन एयरफोर्स के एंटी नक्सल टास्क फोर्स ने भाग लिया था. यह अभियान चिंतागुफा पुलिस स्टेशन के क्षेत्र के अंदर स्थित चिंतागुफा जंगल में चलाया गया जिसे नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. इस अभियान में तीन जवान शहीद हो गए थे तथा कई अन्य घायल हुए थे. अभियान के दौरान 15 से 20 नक्सलियों के मारे जाने की सूचना सुरक्षा बल के अधिकारी द्वारा दी गई थी. खराब मौसम के कारण ता : 25 जून, 2017 को इस अभियान को समाप्त किया गया था.
राजनैतिक भारत में माओवाद असल में नक्सलबाड़ी के आंदोलन के साथ पनपा और पूरे देश में फैल गया. राजनीतिक रूप से मार्क्स और लेनिन के रास्ते पर चलने वाली कम्युनिस्ट पार्टी में जब विभेद हुये तो एक धड़ा भाकपा मार्क्सवादी के रूप में सामने आया और एक धड़ा कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में सामने आया. ( समाप्त )
( सोर्स सोशल मीडिया )
विशेष सूचना :
हमारे लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है. विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से इसको संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई जाती हैं. हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें. इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी.
——–====शिवसर्जन ====——