” पंच महल ” – फतेहपुर सीकरी.

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” पंच महल ” को मुगल सम्राट अकबर ने ईसवी सन 1560 मे निर्माण किया था. यह फतेहपुर सीकरी में स्थित है. यह इमारत फ़तेहपुर सीकरी क़िले की सबसे ऊँची इमारत है. चार मंजिले महल की वास्तुकला किसी बौद्ध मन्दिर से प्रेरित प्रतीत होती है. यूनेस्को ने सन 1981 में इसे अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल किया है.

इस महल में कुल 176 खम्भे हैं,जिनमें से 84 भूतल पर, 56 प्रथम तल पर और 20 तथा 12 खम्भे क्रमशः द्वितीय तथा तृतीय तल पर हैं. अन्तिम तल पर 4 खम्भे हैं, जिनके ऊपर एक छतरी स्थित है. पंचमहल पिरामिड आकार में बना है, इसे हवा महल भी कहा जाता है.

पंचमहल मरियम-उज़्-ज़मानी के सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बनवाया गया था. यहीं से अकबर की मुस्लिम बेगमें ईद का चाँद देखती थी.

प्रत्येक खम्भे की नक़्क़ाशी अलग अलग किस्म की है. नीचे से ऊपर की ओर जाने पर मंजिलें छोटी होती गई हैं. महल के खम्बों पर फूल-पत्तियाँ, रुद्राक्ष के दानों से सुन्दर सजावट की गई है. मुग़ल बादशाह अकबर के इस निर्माण कार्य में बौद्ध विहारों तथा हिन्दू धर्म का प्रभाव स्पष्टतः दिखाई पड़ता है.

फ़तेहपुर सीकरी में जोधाबाई महल से निकल कर सामने की ओर ही सुनहरा मकान और “पंचमहल” है. पंचमहल के बारे में कहा जाता है कि शाम के वक्त बादशाह यहाँ अपनी बेगमों के साथ हवा का लुफ्त उठाता था. अतः इसे हवामहल भी कहते थे.

यह जानना दिलचस्प होगा कि कैसा होता था ? मुगल बादशाहो का हरम.

मुगल सल्तनत के बादशाह रंगीन दिल के होते थे. उनके हरम मे चमक होती थी. हरम सुगंध से परिपूर्ण होता था. जब दासी ख़बर देती थी कि स्वयं जहांपनाह इधर आ रहे हैं, तो दर्जनों दासियां इधर-उधर दौड़ने-भागने लगती थी. रंगों में और रंग भरा जाता था. और खुशबू बिखेर दी जाती थी.

जब बादशाह ने शयनगाह में क़दम रखता था तो वहां किसी उत्सव सा माहौल बन जाता था. बादशाह शान से एक आसन पर बैठ जाते थे. बगल में उस कक्ष की सबसे ताकतवर महिला यानी रानी और उनके चारों ओर कम उम्र की लड़कियों, युवतियों का जमावड़ा लगता था. खूशबूदार जल और तेल से बादशाह की मालिश होती थी ताकि वह ख़ुद को ज़्यादा तरोताज़ा महसूस कर सकें.

संगीत की धुन छेड़ दी जाती थी. रानी ख़ुद अपने हाथों से जाम बनाकर बादशाह को पिलाने लगती थी. इस माहौल और सोहबत ने औरतों को भी शराब का तलबगार बना दिया जाता था. फिर जाम रानी के लिए भी बनाया जाता था. पीने-पिलाने का यह दौर तब तक चलता था, जब तक कि बादशाह को बिस्तर पर जाने की इच्छा न हो.फिर रंगीन रात का दौर शुरु होता था.

पंचमहल का उपयोग भी राजा अपनी बैगमो के सहवास के लिए करता था. पंचमहल के नजदीक ही मुग़ल राजकुमारियों का मदरसा है.

मरियम-उज़्-ज़मानी का महल प्राचीन घरों के ढंग का बनवाया गया था. इसके बनवाने सजाने में अकबर ने अपने रानी की हिन्दू भावनाओं का विशेष ध्यान रखा था. भवन के अंदर आंगन में तुलसी के बिरवे का थांवला है और सामने दालान में एक मंदिर के चिह्न हैं.

दीवारों में मूर्तियों के लिए आले बने हैं. कहीं-कहीं दीवारों पर कृष्णलीला के चित्र हैं, जो बहुत धुंधले पड़ गए हैं.वहां पर मंदिर के घंटों के चिह्न पत्थरों पर अंकित हैं. इस तीन मंज़िले घर के ऊपर के कमरों को ग्रीष्म कालीन और शीत कालीन महल कहा जाता था. ग्रीष्म कालीन महल में पत्थर की बारीक जालियों में से ठंडी हवा छन-छन कर आती थी.

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