भारतीय संगीत कलाके शिल्पकार.

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माता सरस्वती को कला, साहित्य, और संगीत की देवी माना जाता है. हमारा भारतीय संगीत प्राचीन काल से भारत मे सुना और विकसित होता हुआ संगीत है. इस संगीत का प्रारंभ “वैदिक काल” से भी पूर्व का है. इस संगीत का मूल स्रोत वेदों को माना जाता है. हिंदु परंपरा मे ऐसा मानना है कि ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था.

संगीत कई प्रकारके है. जो हल्के शास्त्रीय या अर्ध-शास्त्रीय की श्रेणी में आते हैं. कुछ रूप हैं ठुमरी, दादरा, भजन, ग़ज़ल, चैती, कजरी, टप्पा, नाट्य संगीत और कव्वाली आदि है. शास्त्रीय रूपों के विपरीत, ये रूप दर्शकों से स्पष्ट रूप से भावनाओं की तलाश करने पर जोर देते हैं.

वाद्य वादन, गायन एवम् नृत्य तीनों कलाओं का समावेश संगीत शब्द में माना गया है. तीनो स्वतंत्र कला होते हुए भी एक दूसरे की पूरक है. भारतीय संगीत के दो प्रकार प्रचलित है, प्रथम (1) कर्नाटक संगीत जो दक्षिण भारतीय राज्यों में प्रचलित है और दूसरा (2) हिन्दुस्तानी संगीत शेष भारत में लोकप्रिय है.

संगीत हमें ताज़ातरो रखता है. ये हमें व्यस्त रखता है और हमारे जीवन को शान्त पूर्ण बनाता है.भारतीय संगीत मे राष्ट्रीय संगीत, लोक संगीत, फिल्म, भारतीय रॉक और भारतीय पॉप के कई प्रकार शामिल हैं. संगीत को भारतीय संस्कृति की आत्मा मानी जाती है. वैदिक काल में अध्यात्मिक संगीत को

” मार्गी “तथा लोक संगीत को ” देशी ” कहा जाता था. यही संगीत का रुप आगे चलकर शास्त्रीय और लोक संगीत के नामसे प्रचलित हुआ.

वैदिक काल में सामवेद के मंत्रों का उच्चारण उस समय के वैदिक सप्तक या सामगान के अनुसार सातों स्वरों के प्रयोग के साथ किया जाता था. मगर प्राचीन समय में वेदों व संगीत का कोई लिखित रूप न होने के कारण उनका मूल स्वरूप लुप्त होता गया है.

भारतीय संगीत के सात स्वर मे सात शुद्ध स्वर होते है.

(1) षड्ज (सा)

(2) ऋषभ (रे)

(3) गंधार (ग)

(4) मध्यम (म)

(5) पंचम (प)

(6) धैवत (ध)

(7) निषाद (नी)

शुद्ध स्वर से उपर या नीचे विकृत स्वर आते है. सा और प के कोई विकृत स्वर नही होते. रे, ग, ध और नी के विकृत स्वर नीचे होते है और उन्हे कोमल कहा जाता है. म का विकृत स्वर उपर होता है और उसे तीव्र कहा जाता है.

भारतीय संगीत को सामान्यत: तीन भागों में बाँटा जा सकता है.

(1) शास्त्रीय संगीत : इसको मार्गी भी कहते हैं. (2) उपशास्त्रीय संगीत (3)

सुगम संगीत.

भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख पद्धतियां हैं.

*** हिन्दुस्तानी संगीत : जो उत्तर भारत में प्रचलित हुआ.

*** कर्नाटक संगीत : जो दक्षिण भारत में प्रचलित हुआ.

*** हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मन्दिरों में. इसी कारण दक्षिण भारतीय कृतियों में भक्ति रस अधिक मिलता है और हिन्दुस्तानी संगीत में श्रृंगार रस अधिक मिलता है.

उपशास्त्रीय संगीत में ठुमरी, टप्पा, होरी,दादरा, कजरी, चैती आदि आते हैं.

संगीत की बात चली है तो भारतीय संगीत को ऊंचाई तक ले जाने मे कई भारतीय संगीतकारो का हाथ है…… जैसे….

(1) उस्ताद बिस्मिल्ला खान :

एक शहनाई वादक थे और भारतीय संगीत में संगीतकार उस्ताद बिस्मिल्ला खान का नाम बहुत सम्‍मान से लिया जाता है. इन्‍होंने अपने संगीत के माध्यम से शहनाई को एक लोकप्रिय वाद्य यंत्र बनाया. भारत सरकार द्वारा उन्हें भारत रत्न, पद्म विभूषण और पद्म भूषण आदि से सम्मानित किया गया हैं.

(2) पंडित रविशंकर :

आप सितार के सबसे प्रसिद्ध वादक थे. उनको कई पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया गया. उन्हें

शास्त्रीय संगीत का राजा कहा जाता है,.

(3) पंडित हरिप्रसाद चौरसिया:

ये बांसुरी वाद्ययंत्र के मास्टर थे.

उन्होंने 15 साल की उम्र मे बांसुरी सीखना शुरु किया था. वाराणसी के प्रसिद्ध बांसुरीवादक पंडित भोलानाथ प्रसन्ना के मार्गदर्शन में बांसुरी वादन सीखा. भारत सरकार द्वारा पद्म श्री और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है.

(4) पंडित शिवकुमार शर्मा :

पंडित शिवकुमार शर्मा एक प्रसिद्ध संतूर वादक थे, इन्‍होंने शास्त्रीय संगीत की दुनिया में महान योगदान दिया है.

इन्‍होंने शास्त्रीय संगीत को अलग उंचाई पर पहुंचाया है.

(5) जगजीत सिंह :

जगजीत सिंह मशहूर हरमोनियम वादक थे. उनको गजल किंग के नाम से जाना जाता है जगजीत सिंह रोमांटिक धुनों, उदास रचनाओं और भक्ति भजनों के भी काफी अच्छे संगीतकार माने जाते है.

(6) ज़ाकिर हुसैन :

सबसे कम उम्र के तबला वादक कलाकार है. इन्होने तबले की ताल को कुछ वाद्ययंत्र के साथ मिलाकर कुछ बेहतरीन संगीतमय रचनाएँ भी कीं, जिनमें शक्ति, मिकी हार्ट के साथ प्लेनेट ड्रम और कई अन्य शामिल हैं. ज़ाकिर हुसैन को पद्म भूषण और पद्म श्री से भी सम्मानित किया जा चूका है.

(7) सुब्बलक्ष्मी :

वीणा बजाती थी. उन्होंने सिर्फ 13 सालकी उम्रमें अपना पहला प्रदर्शन मद्रास संगीत अकादमी में किया था.

कर्नाटक संगीत में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

(8) एम.एस.गोपालकृष्णन :

ये एक वायलिन वादक थे. इन्‍होंने अपने पिता पेरूर सुन्दरम अय्यर से संगीत की शिक्षा ली थी. एमएस गोपालकृष्णन को कर्नाटक संगीत और हिंदुस्तानी संगीत दोनों का ही गहरा ज्ञान था. संगीत में इनके योगदान के लिए इन्‍हें सन 2012 पद्मभूषण से सम्मानित किया गया.

विकिपीडिया सर्वे डाटा के अनुसार कुछ भारतीय गायको का प्रसिद्धि के आधार पर सर्वे पेश कर रहा हूं.

कुमार सानु :

जुलाई 2015 से अगस्त 2021 तक, कुमार सानु के अंग्रेजी विकिपीडिया पृष्ठ को 40,86,780 से अधिक लोगोंने देखा है. उनकी जीवनी विकिपीडिया पर 29 विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है. हिस्टोरिकल पॉप्युलॅरिटी इंडेक्स (एचपीआई) के अनुसार, कुमार सानु विश्व के 847वें सबसे लोकप्रिय गायक, भारत की 383वीं सबसे लोकप्रिय व्यक्ति और पांचवें सबसे लोकप्रिय भारतीय गायक है.

कुमार सानु ने हिंदी के अलावा, मराठी, नेपाली, असमिया, भोजपुरी, गुजराती, मणिपुरी, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, तमिल, पंजाबी, ओडिया, छत्तीसगढ़ी, उर्दू, पाली, अंग्रेजी और अपनी मूल भाषा बंगाली सहित अन्य भाषाओं में भी गाया है.

सन 1990 से 1994 के लिए उन्होंने अरिजीत सिंह के साथ सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक के रूपमें लगातार पांच फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड बनाया है. भारतीय सिनेमा और संगीत में उनके योगदान के लिए, उन्हें भारत सरकार द्वारा 2009 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था.

किशोर कुमार :

जुलाई 2015 से अगस्त 2021 तक, किशोर कुमार के अंग्रेजी विकिपीडिया पृष्ठ को 78,87,679 से अधिक बार देखा जा चुका है. उनकी पुरी जीवनी विकिपीडिया पर 39 विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है. हिस्टोरिकल पॉप्युलॅरिटी इंडेक्स (एचपीआई) के अनुसार, किशोर कुमार दुनिया के 696वें सबसे लोकप्रिय गायक , भारत की 326वीं सबसे लोकप्रिय व्यक्ति और 4थे सबसे लोकप्रिय भारतीय गायक हैं.

वह भारतीय फिल्म उद्योग में सबसे लोकप्रिय गायकों में से एक थे. उन्हें भारतीय संगीत के इतिहास में सबसे महान गायकों में से एक माना जाता है.

हिंदी के अलावा, उन्होंने बंगाली, मराठी, असमिया, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम और उर्दू सहित कई भारतीय भाषाओं में गाया है.

उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक के लिए 8 फिल्मफेयर पुरस्कार जीते और उस श्रेणी में सबसे अधिक फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड बनाया. उन्हें 1985-86 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा “लता मंगेशकर पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था. 1997 में, मध्य प्रदेश सरकार ने हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए “किशोर कुमार पुरस्कार” नामक एक पुरस्कार की शुरुआत की थी.

आशा भोसले :

जुलाई 2015 से अगस्त 2021 तक, आशा भोंसले के अंग्रेजी विकिपीडिया पृष्ठ को 43,36,326 से अधिक लोगो ने देखा है. उनकी जीवनी विकिपीडिया पर 45 विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है. हिस्टोरिकल पॉप्युलॅरिटी इंडेक्स (एचपीआई) के अनुसार, आशा भोसले 566वीं संसार की सबसे लोकप्रिय गायिका हैं. भारत की 274वीं सबसे लोकप्रिय व्यक्ति और तीसरी सबसे लोकप्रिय भारतीय गायिका हैं.

वह हिंदी सिनेमा में अपने पार्श्व गायन के लिए सबसे ज्यादा जानी जाती हैं.

उन्होंने एक हजार से अधिक फिल्मों के लिए पार्श्व गायन किया है. आशा भोसले ने कहा कि उन्होंने 12,000 से अधिक गाने गाए हैं.

सन 2011 में उन्हे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा संगीत के इतिहास में सबसे अधिक रिकॉर्ड किए गए कलाकार के रूप में स्वीकार किया गया था.

भारत सरकार ने उन्हें 2000 में दादासाहब फालके पुरस्कार और 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया. भोसले पार्श्व गायिका लता मंगेशकर की छोटी बहन हैं.

भोंसले के काम में फिल्म संगीत, पॉप, ग़ज़ल, भजन, पारंपरिक भारतीय शास्त्रीय संगीत, लोक गीत, कव्वाली और रवींद्र संगीत शामिल हैं. उन्होंने हिंदी के अलावा 20 से अधिक भारतीय और विदेशी भाषाओं में भी गाने गाए हैं.

मोहम्मद रफ़ी :

मोहम्मद रफ़ी के अंग्रेज़ी विकिपीडिया पृष्ठ को 40,35,161 बार देखा गया है. उनकी जीवनी विकिपीडिया पर 49 विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है.

हिस्टोरिकल पॉप्युलॅरिटी इंडेक्स (एचपीआई) के अनुसार, मोहम्मद रफ़ी जी 463वें दुनिया के सबसे लोकप्रिय गायक, भारत की 227वीं सबसे लोक प्रिय व्यक्ति और दूसरे सबसे लोकप्रिय भारतीय गायक हैं.

उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे महान और सबसे प्रभावशाली गायकों में से एक माना जाता है. उन्हें चार फिल्मफेयर पुरस्कार और एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला है.

सन 1967 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 2001 में,मोहम्मद रफ़ी को हीरो होंडा और स्टारडस्ट पत्रिका द्वारा “Best Singer of the Millennium” के खिताब से सम्मानित किया गया था. 2013 में, CNN-IBN के पोल में रफ़ी को “हिंदी सिनेमा में सबसे बड़ी आवाज़” (the Greatest Voice in Hindi Cinema) के लिए वोट दिया गया था.

उन्होंने एक हज़ार से अधिक हिंदी फ़िल्मों के लिए गाने रिकॉर्ड किए और अन्य कई भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं में भी गाने गाए, हालांकि मुख्य रूप से उर्दू और पंजाबी में गाने गाए.

उन्होंने कई भाषाओं में 7,405 गाने रिकॉर्ड किए. उन्होंने कई भारतीय भाषा कोंकणी, असमिया, भोजपुरी, उड़िया, पंजाबी, बंगाली, मराठी, सिंधी, कन्नड़, गुजराती, तमिल, तेलुगु, मगही, मैथिली आदि में गाया। भारतीय भाषाओं के अलावा, उन्होंने अंग्रेजी, फ़ारसी या फ़ारसी, अरबी, सिंहल, क्रियोल और डच सहित कई विदेशी भाषाओं में भी गाने गाए.

लता मंगेशकर :

जुलाई 2015 से अगस्त 2021 तक, लता मंगेशकर के अंग्रेजी विकिपीडिया पृष्ठ को 89,64,850 बार देखा गया. उनकी जीवनी विकिपीडिया पर 65 विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है.

हिस्टोरिकल पॉप्युलॅरिटी इंडेक्स (एचपीआई) के अनुसार, लता मंगेशकर 224वीं विश्व की सबसे लोकप्रिय गायिका, भारत की 124वीं सबसे लोकप्रिय व्यक्ति, और पहली सबसे लोकप्रिय भारतीय गायिका हैं.

भारत की सबसे बड़ी गायिका लता मंगेशकर है 68.56 के एचपीआई के साथ, लता मंगेशकर भारत की सबसे प्रसिद्ध गायिका हैं.उनकी जीवनी का 65 विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है.

उन्होंने हजार हिंदी फिल्में और छत्तीस से अधिक भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं में गाने गाए हैं, हालांकि मुख्य रूप से मराठी, उर्दू, हिंदी और बंगाली में गाने गाए हैं. दादासाहब फालके पुरस्कार उन्हें 1989 में भारत सरकार द्वारा प्रदान किया गया था.

सन 2001 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया था और एमएस सुब्बुलक्ष्मी के बाद यह सम्मान प्राप्त करने वाली वह केवल दूसरी गायिका हैं. 2007 में, फ्रांस ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, ऑफिसर ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर से सम्मानित किया। वह तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 15 बंगाल फिल्म पत्रकार संघ पुरस्कार, चार फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व पुरस्कार, दो फिल्मफेयर विशेष पुरस्कार, फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार और अन्य कई पुरस्कारों की प्राप्तकर्ता हैं. 1974 में, वह लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में प्रदर्शन करने वाली पहली भारतीय बनीं थी.

भारतीय संगीत की शुरुआत वैदिक काल मे हुई है. मगर वेद काल के विषय में विद्वानों में बहुत मतभेद है, परंतु उसका काल ईसा से लगभग 2000 वर्ष पूर्व रहा होगा. इसपर प्राय: सभी विद्वान् सहमत है. इसलिए भारतीय संगीत का इतिहास कम से कम 4000 साल पुराना है.

वाल्मीकि रामायण में भेरी, दुंदुभि, मृदंग, पटह, घट, पणव, डिंडिम, वीणा, आडंवर, इत्यादि वाद्यों और जातिगायन का उल्लेख मिलता है. महाभारत में सप्त स्वरों और गांधार ग्राम का उल्लेख आता है. भगवान श्री कृष्ण बांसुरी वादन मे महारथ थे. उनकी बांसुरी से निकला सुर गोपियों को मंत्रीमुग्ध कर देता था.

बॉलीवुड की कई संगीतकार जोड़ियों ने संगीत को ऊंचाई पर ले जानेका भगीरथ कार्य किया है. जानते है कुछ उसके बारेमें……

कल्याणजी-आनंदजी :

परदेशियों से ना अंखियां मिलाना,

कसमें वादे प्यार वफ़ा, चांद सी महबूबा मेरी,ऐसे ही कई गानों से प्रसिद्ध संगीत कार बने कल्याण जी और आनंद जी.

दोनों भाइयों की जोड़ी ने बॉलीवुड में कई वर्षों तक अपना दबदबा बनाये रखा था. कल्याणजी-आनंदजी ने अपने फ़िल्मी करियर में लगभग 250 के आस पास फिल्मों में अपने संगीत का जादू बिखेरा. मुक्कदर का सिकंदर, उपकार, जंजीर, कुर्बानी, पूरब पश्चिम, आदि इनकी प्रसिद्ध फिल्में रही हैं.

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल :

लक्ष्मीकांत शांताराम कुदलकर और प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा से बनी यह जोड़ी बॉलीवुड की सबसे मशहूर जोड़ी मानी जाती है. इन्हें बॉलीवुड में संगीत का जादूगर भी कहा जाता था. 80 के दशक में इनकी जोड़ी इतनी मशहूर हुई कि इनका मुकाबला कर पाना किसी अन्य संगीतकार के लिए आसान न था.

करीब 635 फिल्मों में संगीत दे चुकी इस जोड़ी ने अपने समय के सभी प्रसिद्ध निर्माताओं के साथ काम किया. फिल्म कर्ज के लिए इस जोड़ी को लगातार चौथा फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया था. ता : 25 मई 1998 को लक्ष्मीकान्त के निधन के बाद यह जोड़ी टूट गई थी.

सावन का महीना पवन करे शोर,

राही मनवा दुःख की चिंता क्यों सताती है, तू मेरा हीरो मैं तेरी दिलबर, आदि इनके संगीतबद्ध किये गाने आज भी लोगों की जुबान पर रहते हैं. इसके सिवा महबूब की मेहंदी, अमर अकबर ऍन्थनी, सत्यम शिवम सुंदरम, राम लखन और सौदागर जैसी सुपर हिट फिल्मों में इनके ही गाने बजे, जिसने आम लोगों को पागल बना दिया था.

शंकर-जयकिशन :

भारतीय फिल्म जगत में एसजे के नाम से मशहूर शंकर जय किशन की जोड़ी भी फिल्म जगत की कामयाब संगीतकार जोड़ियों में से एक है. अपने समय में इस जोड़ी ने दर्शकों के दिल पर राज किया है. हालांकि बीच में एक समय ऐसा भी आया, जब किसी कारणवश इस जोड़ी को अलग होना पड़ा था.

बाद में गायक मोहम्मद रफी के प्रयास के बाद इन दोनों में सुलह की खबरें आईं थी. अपने कैरियर के दौरान इस जोड़ी ने नौ बार फिल्म फेयर का पुरूस्कार जीता. मेरा जूता है जापानी, एहसान तेरा होगा मुझ पर, बोल राधा बोल, जिंदगी एक सफर है सुहाना आदि इस जोड़ी के प्रसिद्ध गाने हैं, जिन्होंने सुर्खियां बटोरीं. हरियाली और रास्ता, श्री 420, दीवाना, सन्यासी इनकी सुपरहिट फिल्म थी.

हुस्नलाल -भगतराम:

यह जोड़ी भारतीय सिनेमा जगत की पहली संगीतकार जोड़ी थी. प्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफ़ी को तैयार करने में इस जोड़ी का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है. कहा जाता है कि जिस दौर में रफी अपनी पहचान बनाने में लगे थे, उस समय इस जोड़ी ने उन्हें ब्रेक दिया था. इस जोड़ी ने अपनी करियर की शुरुआत 1944 में आई फिल्म ‘चांद’ से की थी. इस फिल्म का गाना ‘दो दिलो की ये दुनिया’ ने दर्शकों के दिल जीत लिया था. सन 1948 में आई फिल्म “प्यार की जीत” इनकी जिंदगी में नया मोड़ लेकर आई. इसका गाना “एक दिल के टुकड़े हजार हुए “… इतना प्रसिद्ध हुआ कि हर तरफ इस जोड़ी की ही चर्चा होने लगी थी. ***100

नदीम- श्रवण :

नब्बे के दशक में आई एक फिल्म आशिक़ी का गाना ” मैं दुनिया भुला दूंगा “, इस गाने को नदीम- श्रवण’ की जोड़ी ने संगीत से सवारा था. फिल्म के गानों का ही जादू था कि उस समय की यह फिल्म बड़ी हिट साबित हुई. इस प्रसिद्ध संगीत जोड़ी ने 1973 में पहली बार एक दूसरे के संपर्क में आकर काम किया था.

इनका शुरुआती दौर अच्छा नहीं था. बावजूद इसके कड़ी मेहनत और संगीत के प्रति इनकी दीवानगी ने इन्हें फिल्म जगत में संगीत का बड़ा नाम किया.

सन 1997 में नदीम के ऊपर टी सीरीज़ कंपनी के मालिक गुलशन कुमार की हत्या की साजिश में शामिल होने के आरोप के चलते यह जोड़ी टूट गई थी. इस जोड़ी ने साजन, सड़क, दीवाना, राजा हिंदुस्तानी, धड़कन, हम है राही प्यार के, फूल और कांटे, दिलवाले जैसी तमाम सुपर हिट फिल्मों में अपना संगीत दिया.

जतिन- ललित :

सन 1991 में आई फिल्म “यारा दिलदारा” से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले जतिन-ललित ने उस समय बॉलीवुड में कदम रखा था, जब नदीम श्रवण जैसे संगीतकार का बॉलीवुड में दबदबा था.

“जो जीता वही सिकंदर ” का गाना “पहला नशा” ने इस जोड़ी को स्टार बना दिया. सन 1995 में आई फिल्म दिलवाले दुल्हनिया का गाना “हो गया है तुझको तो प्यार सजना” जतिन-ललित की जोड़ी को बॉलीवुड का दुलारा बना दिया. हालांकि, अब यह जोड़ी साथ नहीं है. जतिन के अमेरिका में बस जाने के बाद दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं. “कुछ कुछ होता है”, “सरफ़रोश”, “यस बॉस”, “वास्तव”, फ़ना, मोहब्बतें इस जोड़ी की कुछ सुपरहिट फिल्में रही है.

विशाल-शेखर :

विशाल दलानी और शेखर रवजियानी से बनी यह जोड़ी बॉलीवुड की मशहूर संगीत जोड़ियों में से एक है. झनकार बीट्स के “तू आशिक़ी है” गाने से प्रसिद्ध हुई इस जोड़ी ने बॉलीवुड को साल 2005 में “सलाम नमस्ते”, “दस” और “ब्लफमास्टर” जैसी सुपर हिट फिल्मों में अपना संगीत दिया.

इनके संगीत ने पर्दे पर धमाल मचा दिया. इसके बाद इनकी जोड़ी ने “ओम शांति ओम”, “तारा रम पम”, “टशन”, “बचना ऐ हसीनों”, “दोस्ताना”, “आई हेट लव स्टोरिज”, “अंजाना-अंजानी” और ब्रेक के बाद आदि हिट फिल्मों में काम किया. हालांकि यह जोड़ी संगीत देने के साथ-साथ गायन के क्षेत्र में भी काम करती है. यह जोड़ी प्रसिद्ध स्टार खोज “सा रे गा मा पा” चैलेंज 2007 म्यूज़िकल टैलेंट शो में जज की भी भूमिका निभा चुकी है.

सलीम-सुलेमान:

पिछले दस साल से बॉलीवुड में अपनी संगीत के जादू से सबको दीवाना बनाने वाले सलीम और सुलेमान आज बॉलीवुड की सबसे फेमस संगीतकारों से एक हैं. फिल्म “चक दे इंडिया” के शीर्षक गीत से यह जोड़ी काफी प्रसिद्ध हुई. सलीम और सुलेमान दोनों ही सगे भाई हैं.

संगीत के अलावा गायन में भी यह जोड़ी अव्वल मानी जाती है. इस जोड़ी ने कई भारतीय पॉप बैंड के लिए भी अपना संगीत दिया है, जिसमें वीवा, आसमां, श्वेता शेट्टी, जैस्मीन और स्टाइल भाई प्रमुख हैं. इस जोड़ी को 2007 में जवानी दीवानी के लिए श्रेष्ठ पार्श्व संगीत का भी पुरस्कार मिल चुका है. कांची, भूतनाथ रिटर्न्स, कृष -3, हेरोइन, बैंड बाजा बारात इस जोड़ी की कुछ हिट फिल्में हैं.

आनंद-मिलिंद :

” पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा ” यह गाने ने खूब धूम मचाई थी. यह वही फिल्म थी जिसने आनंद-मिलिंद को बॉलीवुड में एक पहचान दी है. अपने शुरू के दिनों में यह संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल की शिष्य रही.

आनंद-मिलिंद मशहूर संगीतकार चित्रगुप्त के बेटे हैं. शुरू के दिनों में इन्हें अपनी पहचान बनाने में काफी संघर्ष करना पड़ा था, लेकिन इस जोड़ी ने हार नहीं मानी और धीरे-धीरे एक से बढ़कर एक बड़ी फिल्म देकर खुद को प्रमाणित किया. “कोयल सी तेरी बोली” और ‘

“बड़ी मुश्किल है खोया मेरा दिल है” इन जोड़ी के सबसे मशहूर गानों में से हैं.

नौशाद अली :

उन्होंने सन 1940 में रिलौज हुई ” प्रेम नगर ” फ़िल्म में पहली बार स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन का काम किया.

नौशाद नाम का अर्थ खुश होता है. ये

हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे. पहली फिल्म में संगीत देने के 64 साल बाद तक अपने संगीत का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फिल्मों में ही संगीत दिया था. वे क्वांटिटी मे नही क्वालिटी मे विश्वास रखते थे.

नौशाद अली ने बैजू बावरा मदर इंडिया, अंदाज, आन,अनमोल घड़ी, अमर, स्टेशन मास्टर, शारदा, कोहिनूर, उड़न खटोला, दीवाना, दिल्लगी, दर्द, दास्तान, शबाब, मुग़ल-ए-आज़म, दुलारी, शाहजहां, बाबुल,लीडर, संघर्ष, मेरे महबूब, साज और आवाज, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, गंगा जमुना, आदमी, गंवार, साथी, पालकी, तांगेवाला, आईना, धर्म कांटा, पाक़ीज़ा (गुलाम मोहम्मद के साथ संयुक्त रूप से), सन ऑफ इंडिया, लव एंड गाड सहित अन्य कई फिल्मों में उन्होंने अपने संगीत से लोगों का मन जीत लिया.

ए. आर. रहमान :

अल्लाह रक्खा रहमान बॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्रीज का एक लोकप्रिय प्रसिद्ध संगीतकार है. जो ए.आर. रहमान के नामसे जाना जाता है.उन्होंने मुख्य रूप से हिन्दी और तमिल फिल्मों में संगीत दिया है.

उनका नाम ” अरुणाचलम् शेखर दिलीप कुमार मुदलियार” रखा गया था. धर्मपरिवर्तन के पश्चात उन्होंने “अल्लाह रक्खा रहमान ” नाम धारण किया था. ए. आर. रहमान उसीका संक्षिप्त रूप है. टाइम्स पत्रिका ने उन्हें मोजार्ट ऑफ मद्रास की उपाधि दी है. रहमान गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय व्यक्ति है. ए. आर. रहमान ऐसे पहले भारतीय हैं जिन्हें ब्रिटिश भारतीय फिल्म स्लम डॉग मिलेनियर में उनके संगीत के लिए दो ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त हुए है.

इसी फिल्म के गीत “जय हो” के लिए सर्वश्रेष्ठ साउंडट्रैक कंपाइलेशन और सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत की श्रेणी में दो ग्रैमी पुरस्कार भी मिले है.

अन्य पुरस्कारो मे……

*** संगीत क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए सन 1995 में मॉरीशस नेशनल अवॉर्ड्स, मलेशियन अवॉर्ड्स.

*** फर्स्ट वेस्ट एंड प्रोडक्शन के लिए लारेंस ऑलीवर अवॉर्ड्स.

*** चार बार संगीत के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता.

*** सन 2000 में पद्मश्री से सम्मानित.

*** मध्यप्रदेश सरकार का लता मंगेशकर अवॉर्ड्स.

*** छः बार तमिलनाडु स्टेट फिल्म अवॉर्ड विजेता.

*** 11 बार फिल्म फेयर और फिल्म फेयर साउथ अवॉर्ड विजेता.

*** विश्व संगीत में योगदान के लिए सन 2006 में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से सम्मानित.

*** सन 2009 में फ़िल्म स्लम डॉग मिलेनियर के लिए गोल्डेन ग्लोब पुरस्कार.

*** ब्रिटिश भारतीय फिल्म स्लम डॉग मिलेनियर में उनके संगीत के लिए ऑस्कर पुरस्कार.

*** सन 2009 के लिये 2 ग्रैमी पुरस्कार, स्लम डॉग मिलेनियर के गीत जय हो…. के लिये: सर्वश्रेष्ठ साउंडट्रैक व सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत के लिये.

राहुल देव बर्मन :

बॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्रीज के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे. इन्हें पंचम या “पंचमदा” नाम से भी पुकारा जाता था. “राहुल देव बर्मन” को “बॉलीवुड के संगीत का बादशाह” भी कहा जाता है.

संगीतकार राहुल देव बर्मन फिल्म फेअर अवॉर्ड्स के लिए 17 बार नॉमिनेट हुए थे, लेकिन उन्हें तीन बार, सनम तेरी कसम (1983), मासूम (1984) और 1942 : ए लव स्टोरी (1995), ही यह अवॉर्ड मिला था. आर. डी बर्मन ने 331 फिल्मों में संगीत दिया, जिनमें से 292 हिंदी में हैं.

पंचमदा ने अपनी संगीतबद्ध की हुई 18 फिल्मों में आवाज़ दी थी.भूत बंगला (1965 ) और प्यार का मौसम (1969) में इन्होने अभिनय किया था.

भारतीय वाद्य यंत्रों की सूची :

(1) गिटार (Guitar)

(2) सितार (Sitar)

(3) पियानो (Piano)

(4) सरोद (sarod)

(5) शहनाई (Clarionet)

(6) तुरही (Clarion)

(7) नगाड़ा/ ढोल (Drum)

(8) हारमोनियम (Harmonium)

(9) ढोलक (Tomtom)

(10) शंख (Conch)

(11) बाँसुरी (Fluete)

(12) मशकबीन ( Bagpipe)

(13) सारंगी (Harp)

(14) बैंजो (Banjo)

(15) सैक्सोफोन (Saxophone)

(16 ) वायलिन (Violin)

(17 ) घंटी (Bell)

(18) तबला (Tabor)

(19) सीटी (Whistle)

(20) वीणा (Harp)

प्रस्तुत है कुछ वाद्य की जानकारी :

वीणा :

वीणा का प्रयोग शास्त्रीय संगीत में किया जाता है. यह सबसे प्राचीन वाद्य यंत्र माना जाता है. वैदिक साहित्य में वीणा का उल्लेख कई जगह मिलता है. सरस्वती और नारद मुनि के हाथ में वीणा वाद्य यंत्र सदैव रहता था. माना जाता है कि अमीर खुसरो ने सितार की रचना वीणा और बैंजो को मिलाकर की थी. इस वाद्य यंत्र में 4 तार होते हैं. रूद्र वीणा और विचित्र वीणा वीणा के ही दूसरे रूप हैं.

सितार :

यह एक लोकप्रिय वाद्ययंत्र है. सितार को भारत का राष्ट्रीय वाद्य यंत्र भी कहते हैं. इस वाद्ययंत्र के द्वारा मन की भावनाओं को व्यक्त किया जाता है. हिंदू और मुसलमानों के वाद्य यंत्रों को मिलाकर सितार की रचना की गई है.

इसमें 1 से 5 तार हो सकते हैं. एक तार वाले सितार को “एकतारा”, दो तार वाले सितार को “दोतारा” तीन तार वाले सितार को ” तीन तारा ” इसी तरह 4 वाले सितार को “चहरतारा” और 5 तार वाले सितार को “पचतारा” कहा जाता हैं. श्री पंडित रविशंकर मशहूर सितार वादक थे.

तबला :

तबला भी एक लोकप्रिय वाद्ययंत्र है. भारत में यह बहुत मशहूर है. यह वाद्य यंत्र दो भागों में होता है दाहिना तबला जिसे दाहिने हाथ से बजाते हैं और बाया तबला जिसे बाएं हाथ से बजाते हैं.

तबले का आविष्कार 13वीं शताब्दी में महान भारतीय कवि और संगीतज्ञ अमीर खुसरो ने पखावज के दो टुकड़े करके किया था.

तबला शीशम की लकड़ी से बनाया जाता है. इसे बजाने के लिए हथेली और उंगलियों का प्रयोग होता है. उस्ताद अल्लाह रखा खान, किशन महाराज अहमद जान थिरकवा, उस्ताद जाकिर हुसैन, प्रसिद्ध तबला वादक हैं.

ढोलक :

भारत के घर घर शुभ अवसरों पर ढोलक बजाई जाती है. किसी परिवार में जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो खुशहाली मनाने के लिए ढोलक बजाई जाती है. होली शादी जैसे अवसरों पर ढोलक का प्रयोग खूब होता है. शीशम सागौन आम जैसी लकड़ियों को अंदर से खोखला करके दोनों किनारों पर चमड़ा चढ़ा देते है. यह दोनों हाथों से बजाई जाती है.

मशकबीन :

मशकबीन (बैगपाइप) का इस्तेमाल पाश्चात्य देशों में अधिक किया जाता है. इसकी धुन बहुत ही मधुर होती है. गणतंत्र दिवस समारोह में देश के जवान बैगपाइप को बजाकर मार्च करते है. सभी लोगों को इस वाद्य यंत्र की धुन पसंद आती है. इसकी धुन को सुनकर शाही एहसास होता है.

प्राचीन काल के राजा महाराजा अपने समारोह में इसका इस्तेमाल करते थे. इस वाद्ययंत्र का वजन 4 किलोग्राम के आस पास होता है. इसे बजाने के लिए बहुत शक्ति लगती है, इसलिए बजाने वाले व्यक्ति को पौष्टिक आहार खाना पड़ता है जिससे उसकी ताकत बनी रहे.

बांसुरी :

मेलो बाजारों में भी कई बांसुरी बेचने वाले दिख जाते हैं. हिंदू धर्म में श्री कृष्ण भगवान बांसुरी बजाकर गोपियों को रिझाते थे. ये एक लोकप्रिय वाद्य है. इसकी धुन अत्यंत मधुर होती है. यह बांस से बनाया जाता है.

बांसुरी में कुल 7 छेद बनाये जाते हैं. यह वाद्य यंत्र श्री कृष्ण भगवान का प्रिय वाद्य यंत्र था. इसे मुरली के नाम से भी जाना जाता है. श्री हरिप्रसाद चौरसिया विश्व के प्रसिद्ध बांसुरी वादक हैं.

गिटार :

यह वाद्य यंत्र काफी मशहूर है. गिटार का विकास सितार से हुआ है. यह हल्की लकड़ी का बना होता है. इसमें 6 तार होते हैं. उंगलियों से तारों को छेड़कर धुन निकाली जाती है. इसका प्रयोग एकल गायन के लिए किया जाता है. आजकल इलेक्ट्रॉनिक गिटार भी काफी लोकप्रिय हो गया है.

वायलिन :

इस वाद्य यंत्र को बेला भी कहा जाता हैं. विश्व भर में यह वाद्य यंत्र काफी प्रसिद्ध है. वैसे वायलिन का आविष्कार इटली में किया गया था.

पियानो :

पियानो लोकप्रिय वाद्ययंत्र है. इसका आविष्कार 10 वीं शताब्दी में हुआ था. इसे महावाद्य भी कहते हैं. पियानो में कुल 88 स्वर होते हैं जो अष्टको में विभक्त होते हैं. 49 वा स्वर पिच ऐ कहलाता है जिसकी आवृति 440 प्रति सेकंड होती है. पियानो का प्रत्येक स्वर निश्चित होता है. प्रत्येक स्वर मूल स्वर और सन्नादी स्वरों के मेल से बनता है.

सैक्सोफोन :

यह तांबे का बना वाद्य यंत्र है. इसे मुंह से बजाया जाता है. इसमें बहुत सी चाभियाँ लगी होती हैं जिसे बजाते वक्त दबाने से स्वर में भिन्नता आती है. सेक्सोफोन का आविष्कार बेल्जियन अडोल्फ़ सैक्स ने 1840 में किया था.

ता : 28 जून 1846 को उन्होंने इसका पेटेंट करवाया था. इस वाद्ययंत्र का इस्तेमाल शास्त्रीय संगीत में किया जाता है. सेना के समारोहों, मार्चिंग बैंड और विजय संगीत में भी सेक्सोफोन का इस्तेमाल किया जाता है.

सारंगी :

इसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत में अधिक किया जाता है. यह गायकी प्रधान वाद्य यंत्र है. इसे गाने के साथ बजाया जाता है. सारंगी का अर्थ है 100 रंगों वाला. इसका आविष्कार 18 वीं शताब्दी में किया गया था. राग ध्रुपद जैसे कठिन राग को सारंगी के साथ गाने पर बहुत सुंदर स्वर निकलता है.

सारंगी के स्वर को शांति का स्वर माना जाता है. इस वाद्य यंत्र को बजाना बहुत ही कठिन है. मुस्लिम शासन काल में सारंगी का इस्तेमाल राजा के दरबार के कार्यक्रमो में किया जाता था.

शहनाई :

शहनाई भारत का एक प्रसिद्ध वाद्य यंत्र है. इसका इस्तेमाल शादी विवाह के शुभ अवसर पर किया जाता है. इसका इस्तेमाल शास्त्रीय संगीत में अधिक किया जाता है. शहनाई के अंदर से पाइप होती है जिसका एक सिरा पतला और दूसरा सिरा चौड़ा होता है. उस्ताद बिस्मिल्लाह खां विश्व के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक हैं.

मंजीरा :

मंजीरा भजन में प्रयुक्त होने वाला एक महत्वपूर्ण वाद्य है. इसमें दो छोटी गहरी गोल जैसी मिश्रित धातु की बनी कटोरियां होती है. इनका मध्य भाग गहरा होता है. इस भाग में बने गड्ढे के छेद में डोरी लगी रहती है. ये दोनों हाथ से बजाए जाते हैं, दोनों हाथ में एक एक मंजीरा रहता है. इसे ढोलक व तबले के साथ में सहायक यंत्र के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

हारमोनियम :

हारमोनियम एक संगीत वाद्य यंत्र है जिसमें वायु प्रवाह किया जाता है और भिन्न चपटी स्वर पटलों को दबाने से अलग-अलग सुर की ध्वनियाँ निकलती हैं. इसमें हवा का बहाव पैरों, घुटनों या हाथों के ज़रिये किया जाता है, हालाँकि भारतीय उपमहाद्वीप में इस्तेमाल होने वाले हरमोनियमों में हाथों का प्रयोग ही ज़्यादा होता है.

हारमोनियम भारतीय शास्त्रीय संगीत का अभिन्न हिस्सा है. हारमोनियम को सरल शब्दों में “पेटी बाजा” भी कहा जाता है.हारमोनियम का उपयोग सुगम, शास्त्रीय, भजन, फ़िल्मी, इत्यादि में लाया जाता है.

घंटी वाद्य :

घंटी या घंटा कम्पनस्वरी तालवाद्य यंत्र है.अधिकांश घंटियों में खोखले कप का आकार होता है. जब उसे ठोका जाता है तो उसमें मजबूत कंपन होती है जबकि इसके कोने कुशल अनुनादक बनाते हैं. घंटी एक विशेष प्रकार के धातु से बनती है, जिसे घंटा धातु (एक तरह का कांसा) कहते है. लेकिन इसे कई और धातु से भी बनाया जाता है. हिन्दू धर्म में घंटी का उपयोग पूजा में किया जाता है. ईसाई धर्म में भी घंटे का उपयोग होता और कई गिरजाघर में इसका उपयोग देखा जा सकता है.

शंख वाद्य :

शंख सागर के जलचर का बनाया हुआ एक ढाँचा है, जो कि ज्यादातर पेचदारवामावर्त या दक्षिणावर्त में बना होता है. यह हिन्दु धर्म में अति पवित्र माना जाता है. यह धर्म का प्रतीक माना जाता है. यह भगवान विष्णु के दांए ऊपरी हाथ में शोभा पाता दिखाया जाता है. धार्मिक अवसरों पर इसे फूँक कर बजाया भी जाता है.

सीटी :

एक ऐसा उपकरण है जो गैस की धारा से ध्वनि उत्पन्न करता है, आमतौर पर हवा. यह मुंह से संचालित हो सकता है, या हवा के दबाव, भाप या अन्य माध्यमों से संचालित हो सकता है. खेल के मैदान मे परेड के समय प्रशिक्षक द्वारा उपयोग मे लाई जाती है. ट्रैफ़िक पुलिस भी इसका अक्षर यूज़ करते है.

नगाड़ा :

नगाड़ा एक वाद्ययंत्र है. यह एक प्रकार का ड्रम है जिसका पीछे का भाग गोलाकार होता है. प्रायः यह जोड़ों में ही बजाये जाते हैं. भारत में इसे संस्कृत में “दुन्दुभि” कहते हैं. हिन्दु धर्म के विभिन्न संस्कारों में एवं देवालयों पर इन्हें बजाया जाता है. यह “नौबज” (नव वाद्य) में से एक है.

वाद्ययंत्रों को चार वर्गों में विभाजित किया गया है. इसमें (1) घन-वाद्य, (2) अवनद्ध-वाद्य, (3) सुषिर -वाद्य और (4) तत-वाद्य शामिल हैं.

घन-वाद्य में डंडे, घंटियों, मंजीरे आदि शामिल किए जाते हैं जिनको आपस में ठोककर मधुर ध्वनि निकाली जाती है.

अवनद्ध-वाद्य या ढोल में वे वाद्य आते हैं, जिनमें किसी पात्र या ढांचे पर चमड़ा मढ़ा होता है जैसे-ढोलक.

सुषिर वाद्य में वे यंत्र शामिल होते हैं जो पतली नलिका में फूंक मारकर संगीतमय ध्वनि उत्पन्न करने वाले होते हैं, जैसे-बांसुरी.

तत-वाद्य में वे यंत्र शामिल होते हैं, जिनसे तारों में कम्पन्न उत्पन्न करके संगीतमय ध्वनि निकाली जाती है, जैसे सितार. इन वर्गों के हिसाब से आज हम आपको इन वाद्य यंत्रों के बारे में बता रहे हैं. वैसे तो इन्हें शास्त्रीय संगीत के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन हिंदी फिल्मों के गीतों के लिए भी कई बार इन वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल होता है.

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