हम उस देश के बासी है..जिस देशमें गंगा बहेती है.

jish desh main ganga behti hai 1

आज मुजे बात करनी है सन 1961 मे रिलीज हुई और राज कपूर अभिनित, देश प्रेम पर आधारित हिंदी फ़िल्म ” जिस देश में गंगा बहती है ” की जो उस जमाने सुपर डुपर हिट फ़िल्म थी. फ़िल्म के सभी गाने लाजवाब थे मगर मुजे यहां बात करनी है. आ अब लौट चलें…. गाने की.

इस गानेको स्वर दिया था कोकिल कंठी लता मंगेशकर जी ने. इसका कंपोज़र श्री जयकिशन दयाभाई पंचाल ने किया था. इसके गाने को लिखा था , गीतकार शैलेन्द्र शंकरदास केसरीलाल ने. म्यूजिक डिरेक्टर थे श्री जयकिशन दयाभाई पंचाल. मुख्य किरदार राज कपूर , प्राण ललिता पवार और पद्मनी ने निभाया था. निर्माता राज कपूर की इस फ़िल्म ने 1960 मे सर्व श्रेष्ठ फ़िल्म का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता था. सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के अलावा तीन अन्य श्रेणियों में पुरस्कृत किया गया था.

शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र जी हिन्दी के एक प्रमुख गीतकार थे. उनका जन्म रावलपिंडी में और देहान्त मुम्बई में हुआ था. इन्होंने राज कपूर के साथ बहुत काम किया. शैलेन्द्र हिन्दी फिल्मों के साथ-साथ भोजपुरी फिल्मों के भी एक प्रमुख गीतकार थे. विकिपीडिया.

फ़िल्म की पुरी कहानी देश भक्ति पर आधारित है. जो पुलिस और आंतक वादी गिरोह के इर्दगिर्द घूमती है.

राजू (राज कपूर) एक भोला भाला अनाथ है जो गाने गाकर अपना निर्वाह करत है. एक दिन उसे ज़ख़्मी हालत में एक डाकुओं के गिरोह का सरदार मिलता है जिसकी जान राजू बचाता है. तभी वहाँ डाकुओं का वह गिरोह आ जाता है और सरदार का दाहिना हाथ राका (प्राण) राजू को पुलिसवाला समझकर सरदार के साथ उसे भी अपने साथ अपने अड्डे पर ले जाता है. होश आने पर सरदार राका को बताता है कि राजू ने ही उसकी जान बचाई थी.

सरदार की लड़की कम्मो (पद्मिनी) से राजू प्यार हो जाता है लेकिन कम्मो पर नज़र राका की भी ह. कम्मो राजू को समझाती है कि दरअसल वो लोग अच्छे हैं क्योंकि अमीर लोग ग़रीबों को लूटकर अपनी तिजोरियाँ भरते हैं और वो लोग अमीरों को लूट कर ग़रीबों में पैसा वापस कर देते हैं. भोले राजू को यह बात अच्छी लगती है और वह राजू गिरोह के साथ ही रहने लगता है.

राजू गिरोह को पुलिस को समर्पण करने को बोलता है. सब हथियार डालने को तैयार हो जाते हैं. अकेला पड़ गया राका भी उनके साथ पुलिस के पास जाने को निकल पड़ता है. डाकू अपना अड्डा छोड़कर पुलिस की ओर रवाना होते हैं और उधर कम्मो पुलिस के दबाव में आकर पुलिस को डाकुओं के ठिकाने की तरफ़ ले चलती है.

एक जगह दोनों दलों का टकराव होता है और राका के उकसाने पर डाकू फिर से हथियार उठाकर पुलिस से लोहा लेने का मन बना लेते हैं. तभी राजू डाकुओं के बीवी बच्चों को लेकर दोनों दलों के बीच में आकर खड़ा हो जाता है और फिर से राजू डाकुओं से हथियार डाल देने का आग्रह करता है. राका सहित इस बार सभी डाकू अपने हथियार डालकर अपने और अपने परिवार को पुलिस के सुपुर्द कर देते हैं. राजू पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट से निवेदन करता है कि इनको फाँसी की सज़ा नहीं मिलनी चाहिये. पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट सबको आश्वासन देता है कि डाकुओं को अपने किये की सज़ा तो ज़रूर मिलेगी मगर मौत की सज़ा नहीं.

इस फ़िल्म के सभी गाने लाजवाब थे जिसमे,मेरा नाम राजू घराना अनाम. बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना, प्यार करले नही तो फांसी चढ़ जायेगा. ओ बसंती पवन पागल ना जा रे ना जा रोको कोई. ये आग हमारे सीने मे हम आग से खेलते आये है. ये मुजे क्या हुआ क्या पत्ता….जैसे गाने आज भी लोग पसंद करते है.

इस फ़िल्म का अंतिम गाना, ” आ अब लौट चले ” दिल को छु लेने वाला है. जो शैलेंद्र जी ने लिखा है. इस गाने मे शैलेंद्र जी बहुत कुछ कह जाते है. आप लिखते है……( कोई ये माने या न माने बहुत ही मुश्किल गिर के संभलना.) ये बात सही है की आदमी जब गिर जाता है तो फिरसे उठना बहुत मुश्किल होता है. इस गाने मे आगे लिखते है कि, लाख लुभाये महल पराए, अपना घर फिर अपना घर है…. वाह शैलेंद्र जी पराये महल चाहे लुभावने होते है मगर अपना घर कैसा भी हो अपना होता है.

प्रस्तुत है गाने के पुरे बोल….

आ अब लौट चले, आ अब लौट चले

नैन बिछाए बाहें पसारे, तुझको पुकारे देश तेरा

आ अब लौट चले. आ अब लौट चले

नैन बिछाए बाहें पसारे. तुझको पुकारे देश तेरा

आ जा रे आ आ आ

सहज है सीधी राह पे चलना , देख के उल्झन बच के निकलना

कोई ये माने या न माने .बहुत मुश्किल है गिर के संभलना

आ अब लौट चले/ आ अब लौट चले

नैन बिछाए बाहें पसारे . तुझको पुकारे देश तेरा

आ जा रे आ आ आ

आँख हमारी मंजिल पर है , दिल में ख़ुशी की मस्त लहर है

लाख लुभाये महल पराए ,अपना घर फिर अपना घर है

आ अब लौट चले, आ अब लौट चले

नैन बिछाए बाहें पसारे, तुझको पुकारे देश तेरा

आ जा रे आ आ आ.

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