शक्तियोंका भंडार पवन पुत्र हनुमान.

Hanuman

वागेश्वर धाम के गुरूजी श्री धीरेंद्र शास्त्री जी आजकल सुर्खियोंमे है. अत्र तत्र सर्वत्र उनकी साधना की चर्चा पुरे विश्व मे हो रही है. गुरूजी इसे अपने दादाजी संन्यासी बाबा और वागेश्वर धाम के हनुमानजी बालाजी बाबा की कृपा बता रहे है.

उनकी साधना और शक्ति के आगे राष्ट्रीय पत्र के दिग्गज पत्रकारोंने भी माथा टेके है. इनके दरबार मे लगी भीड़ से एक बात स्पष्ट हो रही है कि आज विश्व मे सभी लोग अपनी – अपनी कोई भी समस्याओको लेकर दुःखी है. किसी को पुत्र- पुत्री की परेशानी है, तो किसी को पति – पत्नी की समस्या है. कोई भयंकर रोगों से पीड़ित है तो कोई धन की कमी के कारण रों रहा है.

उन्होंने प्राप्त की हुई साधना कोई आजकी नहीं है. ये हमारे ऋषि मुनियों द्वारा कठोर तपस्चर्या करके अर्जित की गई साधना है. उनकी की गई खोज का फल है. आज मे मेरे जीवन मे घटी एक ” सत्य घटना ” को आपके साथ शेयर करना चाहता हूं.

सन 1978 की बात है. स्थल श्री सत्यनारायण मंदिर परिसर खारीगांव, भाईंदर पूर्व की घटना है. दो बालक, एक बड़ा तानपुरा (तंबूरा) लेकर गली गली भिक्षा मांगने घूम रहा था. उनदिनों मैं आजीविका के लिए खारीगांव स्थित जनरल स्टोर चलाता था.

मैंने दो बालक को मेरी दुकान मे बुलाया और एक रुपया देनेकी कोशिश की ( उस ज़माने मे लोग 10 नया पैसे देते थे ) पर उन्होंने रुपिया वापस करते कहा कि हम लोग पैसे नहीं लेते.

आपको कुछ देना ही है तो चावल, आटा या तेल दीजिए. इतने मे नजदीक की एक महिला एक मुठ्ठी मे आटा लेकर आयी. उस बालक ने एक चायका छोटा चमच निकाला और तीन चमच आटा लिया और अपनी जोली मे डाल दिया. मैं भी घर से एक मुठी चावल लाया पर उन्होंने सिर्फ तीन चमच चावल लिए. उनके पास तेल की कितली भी थी.

कोई तेल लेकर आता तो वो तीन चमच तेल लेकर बाकीका वापस करते थे. वें दो बालक मेरे सामने वाले घर पर जाकर बैठे. आजुबाजु की दो तीन महिलाएं आकर खड़ी हो गई. बीना पैसे लिए ही वो सबका भूत, वर्तमान और भविष्य बताने लगा. एक महिला दारू बहोत पीती थी, उसे कहा की तुम गुड़ का पानी बहोत पीती हो. गुड़ के पानी का मतलब दारू से था. क्योंकि गावठी दारू सड़ा हुआ गुड़ से बनती है. सभी महिलाएं सुनकर हसने लगी.

एक महिला ने कहा उसका भविष्य बताओ. मैंने हाथ दिखाना मना किया फिरभी उसने तीन बार तानपुरा के तार को छेड़ा… टुन… टून… टून. उसने मेरे कपाल पर देखा और बोला कि आपके घर लव और कुश दो पुत्र का आगमन हो चूका है और अब लक्ष्मी आ रही है. दीवाली पर नये प्रतिष्ठान का शुभारंभ होगा, सत्यनारायण भगवान की पूजा होंगी, आशीर्वाद.

उस समय मेरे दो पुत्र का जन्म हो चूका था और मेरी पत्नी गर्भवती थी. उस सिद्धि प्राप्त बालक ने कही भविष्य वाणी सत्य हुई, मेरे घर पुत्री ने जन्म लिया. मेरी दुकान का नई जगह पर स्थानान्तर हुआ और वहां सत्यनारायण भगवान की कथा की गई.

राम भक्त हनुमान जी को कुल 108 नामों से पुकारा जाता है. मगर यहां 11 प्रमुख नामों को प्रस्तुत करता हूं.

(1) मारुति :

हनुमानजी का बचपना का नाम मारुति है. इसको उनका असली नाम माना जाता है.

(2) हनुमान :

जब बाल्य अवस्था में मारुति ने सूर्य को अपने मुंह में निगल लिया था तो

समस्त देवगण आकर मारुति से विनती करने लगे की वह “सूरज” को उगल दे लेकिन बाल मारुति ने ऐसा नहीं किया. इसी वजह से भगवान इंद्र ने क्रोधित होकर मारुति के हनु यानी ठोडी पर शस्त्र बज्र से वार कर दिया इस प्रहार से मारुति की ठोड़ी टूट गई. बस इसीसे मारुति का नाम हनुमान पड़ गया.

(3) अंजनी पुत्र :

हनुमान जी की माता का नाम अंजना था. इसीलिए उन्हें अंजनी पुत्र या आंजनेय भी कहा जाता है.

(4) पवन पुत्र :

हनुमान जी को वायु देवता का पुत्र भी माना जाता है, इसीलिए इनका नाम पवन पुत्र पडा. उस काल में वायु को मारुत भी कहा जाता था. मारुत अर्थात वायु, इसलिए उन्हें मारुति नंदन भी कहा जाता है. वैसे उनमें पवन के वेग के समान उड़ने की शक्ति होने के कारण भी यह नाम दिया गया है.

(5) शंकरसुवन :

हनुमाजी को शंकर सुवन अर्थात उनका पुत्र भी माना जाता है क्योंकि वे रुद्रावतार थे.

(6) बजरंगबली :

वज्र को धारण करने वाले और वज्र के समान कठोर अर्थात बलवान शरीर होने के कारण उन्हें वज्रांगबली कहा जाने लगा. अर्थात वज्र के समान अंग वाले बलशाली. लेकिन यह शब्द ब्रज और अवधि के संपर्क में आकर बजरंगबली हो गया.

(7) केसरीनंदन :

हनुमानजी के पिता का नाम केसरी था इसीलिए उन्हें केसरीनंदन भी कहा जाता है.

(8) कपिश्रेष्ठ :

हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था. रामायणा ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ ‘वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम’ आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए.

(9) रामदूत :

प्रभु श्रीराम का हर काम करने वाका दूत के रूपमें उन्हें रामदूत माना गया.

(10) वानर यूथपति :

हनुमानजी को वानर यूथपति भी कहा जाता है. वानर सेना में हर झूंड का एक सेनापति होता था जिसे यूथपति कहा जाता था. अंगद, दधिमुख, मैन्द- द्विविद, नल, नील और केसरी आदि कई यूथपति थे.

(11) पंचमुखी हनुमान :

पातल लोक में अहिरावण का वध करने जब वे गए तो वहां पर उन्हें पांच जगह पर पांच दिशाओं में पांच दिपक मिले जिसे अहिरावण ने माता भवानी के लिए जलाए थे. इन पांचों दीपक को एक ही साथ बुझाने पर अहिरावन का वध होना था. इसीलिए हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धारण किया था.

उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख. इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर के राम, लक्ष्मण को उस से मुक्त किया.उन्होंने मरियल नामक दानव को मार के यह रूप धारण किया था.

आज वागेश्वर धाम के गुरूजी धीरेंद्र महाराज ने सनातन हिंदू धर्मियों को पागल बनाकर रख दिया है. लोग अपना

दुःख दर्द मिटाने के लिए उनके दरबार मे अर्जी लेकर हाजरी लगाने दौड़ रहे है.

यहां पहुंचने वाला हर कोई व्यक्ति कोई ना कोई समस्या से जरूर दुःखी है. खुद शास्त्री जी भी यह कहते देखे जाते है कि मैं आपके करीब तीस से चालीस प्रतिशत दुःख दूर कर सकता हूं. गुरूजी खुद भी जानते है कि विद्याता के लेख को कोई नहीं मिटा सकता.

आपके घरमे भी हनुमान जी का फोटो या मूर्ति होंगी. क्या वो आपके लिए कुछ नहीं करती ? इस विषयमे मैं कई दिन से सोच रहा था. कल रात मुजे राम भक्त हनुमानजी स्वपने मे आया.

स्वयं हनुमान जी को देखकर मेरे मुहसे शब्द निकल गये, प्रभु ! आप.

हनुमान जी मुस्कुराये और बोले, हा मैं राम भक्त हनुमान हूं. आपके मन के प्रश्नों के उत्तर देने आया हूं. पूछो क्या पूछना है. कुछ देर रूककर मेंने पूछा, प्रभु ,आजकल बागेश्वर धाम के गुरूजी धर्मेंद्र शास्त्रीजी सुर्खियों मे है. आजकल आप वही पर रहते हो ?

आपको तो पता है, कि मैं कई सालोसे आपका परम भक्त हूं. आपकी पूजा अर्चना करता हूं. नित्य हनुमान चालीसा पढ़ता हूं. मगर एक आप हो कि कभी हमारी ओर मुड़कर भी नहीं देखते. क्या हमें भी वागेश्वर धाम तक दौड़ना होगा ?

हनुमान जी मंद मंद मुस्कुराये फिर बोले, ऐसा कुछ नहीं है. मैं मेरे भक्तों पर सदा मेरी कृपा बरसाते रहता हूं. मेरी कृपा अदृश्य होती है. आपके घर मे कई अदृश्य नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करने आती है, मैं उसे भगा देता हूं. कई प्रकार की गंभीर बीमारियों का रक्षक बनकर प्रभाव कम कर देता हूं. इसीलिए तो हनुमान चालीसा मे कहा गया है कि…

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

मुजे प्रभु राम जी ने अमरतत्व का वरदान दिया है. इसीलिए मुजे कलियुग का भगवान कहते है. मैं कल भी था. आज भी हूं और कल भी रहूंगा. आप मुजे मिलने कही दूर नहीं जा सकते हो तो कोई बात नहीं, आप मेरी आपके घर पर ही पूजा करे. मैं मेरे भक्तों का संकट दूर करने सदा विध्यमान हूं.

मुजे 108 नामों से पहचाना जाता है. आप कोई भी नाम से मुजे पुकार सकते हो. इसपर मैंने श्री हनुमानजी से पूछा, प्रभु मुजे ये बताओ आपके भक्त आपको किस नाम से पुकारे तो आप अति प्रसन्न होते हो ? इसपर हनुमान जी बोले कि जिस प्रकार रामजी का कोई भक्त सीताराम बोलता है तो प्रभु राम जी प्रसन्न होते है उसी प्रकार मुजे मेरा कोई भक्त ” राम भक्त हनुमान जी ” कहकर पुकारे तो मैं अति प्रसन्न होता हूं. क्योंकि इसमे मेरे प्रभु राम जी का भी नाम आता है.

अचानक दरवाजे की डोर बेल बजी, नींद तूटी. स्वपना टुटा. घड़ी मे देखा तो सुबह के ठीक छह बज चुके थे. दूधवाला भैया दरवाजे पर दस्तक दे चूका था.मेरी नजर पूजा स्थल पर पड़ी. हनुमान जी की मूर्ति मंद मंद मुस्कुरा रही थी, और स्वयं विध्यमान होनेका मानों अहसास करा रही थी.

हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों की कठोर साधना से सिद्धि तक की तपस्चर्या ही हमारे सनातन धर्म की परंपरा रही है. कोई भी सनातन धर्मी साधना से सिद्धि प्राप्त कर सकता है. इसके लिए तपना पडता है. वागेश्वर धाम के गुरूजी ने भी साधना से सिद्धि प्राप्त की है.

उन्होंने कम समय मे अतुलनीय सिद्धि पाकर उनके पागलो की संख्या बधाई है.

गुरु धीरेंद्र शास्त्री जी अपनी मृतप्राय हुई ऋषि परंपरा को फिरसे जाग्रत करना चाहता है. प्रभु श्री राम जी की महिमा को हर घर तक पहुंचाने का कार्य कर रहा है. जो तारीफे काबिल है.

“:हनुमान चालीसा ” की महिमा अपरंपार है. जिस समय विज्ञान का नामों निशान नहीं था. कोई आधुनिक दूरमीन जैसे उपकरण नहीं थे, उस समय लिखी हनुमान चालीसा मे सूर्य से पृथ्वी का अंतर बता दिया था.

पुष्पक विमान का आविष्कार त्रेता युग मे हो चूका था. द्वापर युग मे अग्नि मिसाइल जैसे अग्निबाण का आविष्कार हो चूका था. क्रूर मुगलों द्वारा हमारी नालंदा और तक्षशिला जैसी यूनिवर्सिटी को जला नहीं दी गई होती तो आज हमारी आयुर्वेदिक पद्धति अलोपथी पर राज करती होती.

रामायण के युद्ध के समय संजीवनी जैसी जड़ीबूटी ने लक्षमण जी के प्राण बचाये थे, ये प्रमाण क्या कम है? ऐसे तो सेकड़ो प्रमाण है, जो हमारी ऋषि मुनि प्रणाली का हिस्सा है.

योग गुरु रामदेव ने लोगोंको योग का ज्ञान देकर नाम और दाम दोनों कमा लिए. जो हमारी ऋषि मुनिओंकि देन है. शास्त्री धिरेन्द्र महाराज भी अपनी प्राप्त सिद्धि से सुर्खियों मे है. हर एक का एक समय होता है, धीरेंद्र महाराज कितने दिन अपने भक्तों पर राज करेगा ये तो

आगे आनेवाला समय ही बतायेगा.

बोलो, राम भक्त हनुमान की जय

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →