कंजूस प्रकृति का धनवान धनाजी.

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लेखक लिखते है कि जन्म लेने वाला खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है. कवि कहते है कि……

ज़र ज़मीं , ज़र ज़ेवर,

कुछ ना साथ जायेगा.

खाली हाथ आया है,

खाली हाथ जायेगा.

ये कटु सत्य है कि, पृथ्वी लोग की कमाई, पृथ्वी लोग पर ही रह जाती है, वर्ना कंजूस प्रकृति के धनवान इस धरा को बंजर बना देते थे.

एक शहर मे एक धनाजी नाम का व्यापारी रहता था. लोग उसे दस नंबरी के नाम से पहचानते थे. कंजूस इतना की चमड़ी भले छूटे, पर दमड़ी ना छूटे.

दस प्रतिशत ब्याज से रुपिया लोगोंको उधार देता था. गारंटी के रूपमें वो सोना चांदी या कीमती चीजे गिरवी रखता था.

रुपिया ना दे पाने वाले की अमानत को वो जप्त करके हड़प लेता था.

उसने करोड़ों रुपए की संपत्ति बना रखी थी. संतान थी नहीं और बीबी का भी देहांत हो चूका था. उमर बढ़ती जा रही थी. बस उसे एक ही चिंता थी कि मेरे मरनेके बाद मेरे जर, जमीन, ज़ेवर रुपियों का क्या होगा. चिंता की वजह वो रात को ठीक से सो भी नहीं पा रहा था.

एक दिन वो एक नामी विद्वान से मिला और कहा कि मेरे मरने के बाद मेरी यह सारी संपत्ति मेरे साथ कैसे आ सकती है…? सुनकर विद्वान बोला कि आज तक ऐसा कोई भी आदमी अपनी संपत्ति साथ मे नहीं लेकर गया और ना लेकर जायेगा.

व्यापारी नाराज हुआ, सोचने लगा कोई तो उपाय होगा ही. चलो पूजापाठ करने वाले आचार्य को पूछता हूं….. वो शहर के नामी आचार्य के पास गया और अपनी परेशानी बताई.आचार्य बोला कि ऐसा संभव ही नहीं है. अब क्या करें. वो घुटन महसूस करने लगा.

वो व्यापारी ज्ञानी, विज्ञानी, हकीम, डॉक्टर सभीको पूछकर देखा मगर उसे किसीने कोई उपाय नहीं बताया.

एक दिन एक सीधा सादा इंसान उस व्यापारी के घर के रास्ते से गुजर रहा था. उसने व्यापारी से पूछा, क्या बात है धना सेठ जी ? आज आप इतने दुःखी लग रहे हो ? व्यापारी बोला कुछ नहीं. इस पर वो इंसान बोला. नहीं कुछ तो बात है. आप इतना नाराज क्यों हो ?

व्यापारी बोला कि मेरी सबसे बडी परेशानी मेरी धन दौलत, संपत्ति है. है कोई ऐसा उपाय की मैं मेरी संपत्ति मेरे मरने के बाद मेरे साथ ले जा सकु. वो इंसान बोला, बस इतनी सी बात है ? ये तो बहुत आसान है. मैं तुझे इसका सही उपाय बताता हूं.

जैसे हमारे देश भारत मे रुपिया चलता है, वैसे लंदन मे क्या चलता है ? व्यापारी बोला, वहां पाउंड चलता है. और यदि आप अमेरिका जाओ तो ? व्यापारी तुरंत बोला, वहां डॉलर चलता है. और आरब कंट्री मे ? व्यापारी बोला वहां तो दीनार चलता है.

अगर हम लंदन जाते है तो हमको वहाके रेट के हिसाब से रुपया देते ही हमको पाउंड दिया जायगा. यदि हम अमेरिका जाते है तो हमको रुपये का डॉलर लेना पड़ेगा और आरब देश मे जाते है तो हमको रुपया देने पर वहांके दीनार मील जायेगा.

ठीक इसी प्रकार आप अगर आपकी संपत्ति दीन दुःखी, गरीब, लूले, लंगड़े को अनाथ आश्रम, वृद्धाश्रम, अस्पताल और अंधआश्रम, स्कूलों मे या देश के सैन्य के लिए दान कर देते हो तो आप को वहां उतनी कीमत की पुरी संपत्ति प्रभु के वहां मील जायेगी.

व्यापारी को वो इंसान की बात पसंद आ गई, वो बोला मैं यहीं सोचता था कि कुछ तो उपाय होगा ही. उसने एक शहर के नामी वकील को बुलाया और अपनी संपत्ति का वासियातनामा बनाया और मरने के बाद अपनी तमाम संपत्ति अलग अलग आश्रम, अस्पताल और दीन दुखियों की संस्था मे बाट दी. ( समाप्त )

आजका जोक :

मेट्रो लाइन का काम तेजी से चल रहा था. तीन लोगोंने टेंडर भरे. उसमें एक मद्रासी था. दूसरा मारवाड़ी था. और तीसरा गुजराती था

पहला मद्रासी को बुलाया गया. वो बोला मैं ये प्रोजेक्ट तीन करोड़ मे करके दूंगा. दूसरा मारवाड़ी को बुलाया, वो बोला मैं चार करोड़ मे बनाकर दूंगा. फिर नंबर गुजराती का आया. वो बोला साहेब मैं नव करोड़ मे बनाके दूंगा. साहब तीन करोड़ तेरे, तीन करोड़ मेरे. इसपर साहब बोले फिर काम कौन पुरा करेगा ? गुजराती बोला मद्रासी को तीन करोड़ देके प्रोजेक्ट पुरा करेंगे.

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