एक दिन एक व्यापारी ने अपने खास वकील मित्र को अपने घर में पार्टी के लिए बुलाया. बातों बातोंमे एक बात निकली कि मृत्यु दंड अथवा आजीवन कारावास”? यह दोनों मे क्या अच्छा है.
इसपर वकील बोला कि मैं मृत्यु दंड की तुलनामे आजीवन कारावास को श्रेष्ठ समजता हूं. और मैं तो मृत्यु के बजाय जेल में रहने का पसंद करुंगा.
बहस बढ़ती गई. व्यापारी मृत्यु दंड पसंद कर रहा था. दोनों अपनी बातों पर अटल थे. बात बढ़ी तो दोनों के बीच मे शर्त लगी. शर्त कुछ ऐसी थी कि यदि वकील मित्र पंद्रह साल पूर्णतया एकांत में रह सके तो व्यापारी उसे दो मिलियन (बीस लाख ) रुबल का भुगतान करेगा.
शर्त के मुताबिक इस शर्त के दौरान वकील किसी अन्य व्यक्ति के साथ कोई सीधा संपर्क नहीं कर पाएगा लेकिन उसे जो चाहिए वह लिख के खिड़की में रख दे तो उसे पहुंचा दिया जाएगा.
वकील ने व्यापारी की इस यह शर्त को मंजूर कर ली.व्यापारी ने उसे अपने फार्म हॉउस के पिछे बने एक कमरे में जगह देकर बंद कर दिया. शर्त के अनुसार एक चौकीदार समयानुसार भोजन और आवश्यक सामग्री कमरे में बनी एक खिड़की में रख देता था.
तीन चार दिन तो आराम से बीत गए लेकिन कुछ दिनों के बाद वह उदास हो गया और कुछ दुःखी होने लगा. उसे बताया गया था कि जब भी वह बर्दाश्त न कर सके तो वो घंटी बजा के संकेत दे सकता है और उसे तुरंत वहां से निकाल लिया जाएगा. मगर शर्त हार जायेगा.
जैसे जैसे दिन बीतने लगे उसे एक एक घंटा एक एक युग के समान लगने लगा. कभी वो अपने बाल नोचता, तो कभी वो रोने लगता, तड़पता, चीखता, चिल्लाता – लेकिन शर्त का ख़्याल कर के बाहर से किसी को नहीं बुलाता.
अकेलेपन की पीड़ा उसे भयानक सताने लगी पर वो शर्त के अनुसार बीस लाख रुबल मिलने की बात याद करके अपने आप को रोक लेता. उसके बाद उसने धीरे धीरे नई नई किताबें मंगवा कर पढ़नी शुरु कर दीं. उसने छह नई भाषाएँ भी सीख लीं.
कुछ साल और बीतने पर उसने धर्म शास्त्र की धार्मिक किताबें पढ़ने शुरु कर दि. अब धीरे धीरे उसके भीतर अजीब सी शांति घटित हुई. अब तो उसे किसी और की आवश्यकता का भी अनुभव नही होता था. वो बस मौन शांत बैठा रहता था. उसका चिल्लाना, चीखना, रोना, सब बंद हो चुका था. वकील में आध्यात्मिकता का संचार हो चूका था.
दूसरी तरफ व्यापारी का व्यापार चौपट हो गया था. पंद्रह साल पूरे होने को आ रहे थे. व्यापारी को चिंता होने लगी कि शर्त का समय पूरा हो चला था लेकिन उसका वकील दोस्त बाहर ही नही आ रहा था.
व्यापारी को चिंता होने लगी कि यदि उसके मित्र ने शर्त जीत ली तो वो इतने पैसे उसे कहाँ से लाकर देगा. ऐसा सोच कर समय पूरा होने से एक दिन पहले व्यापारी ने अपने दोस्त को जान से मार देने की योजना बनाई और रात के अँधेरे में उसे मारने के लिये चला गया. जब वो कमरे का ताला खोल कर अंदर गया तो देखा कि मित्र वहां आराम से सो रहा है.
वहापर एक कागज़ पड़ा था जिस पर एक नोट लिखी हई थी. व्यापारी ने वो कागज़ उठाया और पढ़ने लगा. उस नोट में जो लिखा था वो पढ़ कर उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा. उस में लिखा था……
मेरे प्यारे दोस्त! इन पंद्रह सालों में मैंने वो अनमोल वस्तु हासिल की है जिसका कोई मोल नही चुका सकता. मैंने एकांत में रहकर असीम शांति का सुख पा लिया है और अब मैं ये भी जान चुका हूं कि हमारी ज़रुरतें जितनी कम होती जाती हैं हमें उतना ही आनंद और शांति मिलने लगती है. मे जान चूका हूं की न्यूनतम आवश्यकता, अधिकतम सुख का अहसास है.
मैंने इन दिनों में परमात्मा के असीम प्रेम को समज लिया है. आज मुझे यह अनुभव हो रहा है कि बीस लाख रुबल ले कर जिस स्वर्ग की मैंने कल्पना की थी वह सब भौतिक वस्तुएं क्षणभंगुर हैं और दिव्य मोक्ष का मूल्य इन सब से अधिक है.
इसलिए मैं अपनी ओर से यह शर्त तोड़ रहा हूँ अब मुझे तुम्हारे शर्त के धन की कोई ज़रुरत नहीं है. मैं निर्धारित अवधि से एक दो घंटे पहले यहां से परम शांति की खोज मे निकल कर जा रहा हूं. यह पढ़कर व्यापारी की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए. उसने धीरे से अपने दोस्त का माथा चूमा और बीना मारे वापिस अपने घर चला गया.
उस सुबह जब व्यापारी उठा, तो चौकीदार ने आकर बताया कि वकील खिड़की से बाहर कूद कर कही निकल गया है और वहां एक चिठ्ठी पड़ी है.
व्यापारी समज गया. उसने अश्रुभरी आंखों से मित्र को सैलूट किया.