पानीपत भारत के हरियाणा राज्य के पानीपत ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है. यह ज़िले का मुख्यालय भी है.
ता : 1 नवम्बर 1989 को पानीपत जिले का गठन हुआ था. पानीपत जिले के खास आकर्षणों में काबुली बाग मस्जिद, देवी मंदिर, बू-अली शाह कलंदर का मकबरा, काला अंब, सालार गंज गेट और पानीपत संग्रहालय आदि हैं. पानीपत की भाषा हरियाणवी हैं.
पौराणिक कथा के मुताबिक त्रेता युग मे पानीपत महाभारत के समय पांडव बंधुओं द्वारा स्थापित पांच शहरों (प्रस्थ) में से एक था इसका ऐतिहासिक नाम ” पांडुप्रस्थ ” था.
मुस्लिम शासनकाल के समय , पानीपत युद्ध का अखाड़ा बन गया था.
पानीपत में मुख्य तीन ऐतिहासिक लड़ाईयां हुईं थी. (1) पानीपत का पहला युद्ध तारिख : 21 अप्रैल 1526 के दिन बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच में हुआ था.
(2) पानीपत का दूसरा युद्ध ता : 5 नवम्बर 1556 के दिन बैरम ख़ाँ अकबर का सेनापति एवं (शेर शाह सूरी का सेनापति ) हेमू के बीचमे हुआ था.
(3) पानीपत का तीसरा युद्ध ता : 14 जनवरी 1761 के दिन मराठा के सदाशिवराव भाऊ और अहमदशाह अब्दाली के बीचमे हुआ था. जिसमे मराठा ओकी हार हुई थी.
पानीपत सिटी को बुनकरों का शहर कहा जाता है, कारण यह है कि यह कपड़ा का उत्पादन करता है. यह भारत में गुणवत्तापूर्ण कंबल और कालीनों का सबसे बड़ा बुनाई उद्योग है. यह दुनिया में “सस्ते धागे” का सबसे बड़ा केंद्र भी माना जाता है.
पानीपत को हरियाणा राज्य का एक विकासशील औद्योगिक नगर के रूपमें जाना जाता है. पानीपत शहर अपने परम्परागत हथकरघा उद्योग के लिये जाना जाता है. यहाँ के कम्बल, दरी, बैड कवर, गलीचे व टेपेस्ट्री इत्यादि भारत मे और विदेशों में भी प्रसिद्ध है.
ऐतिहासिक नगर पानीपत हाथ से बनी उत्कृष्ट एवं कलात्मक ऊनी दरियों, हथकरघे के सामानों के लिए प्रसिद्ध है. इसी कारण से पानीपत को बुनकरों का शहर कहा जाता है. पानीपत में अन्य उद्योग जैसे चीनी, ऊन, रासायनिक खाद, लौह तथा स्टील उद्योग है. यहाँ का पंचरंगा अचार, डिब्बाबंद सूखी सब्जियां तथा बासमती चावल विदेशों में निर्यात किये जाते है.
भारतीय सेना के ऊनी कम्बलों की कुल मांग का 75 प्रतिशत पानीपत पूरा करता है. हरियाणा के पानीपत जिले में अमोनिया प्लांट स्थापित है.
करोना काल में पानीपत का कपड़ा उद्योग भयंकर मंदी के दौर से गुजर रहा था लेकिन अब स्थिति ठीक हो रही है. पानीपत फिलहाल चीन सहित अन्य देशोंसे अत्याधुनिक मशीनों को आयात कर रहा है.
बुनकरों का शहर ” पानीपत ” का नाम मेहनतकश कारीगरों की बदौलत पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. छोटे से लेकर बड़े-बड़े उद्योगों में लाखों कारीगर यहां काम कर रहे हैं. पानीपत का समालखा मंडल लोहा ढालने के उद्योग तथा कृषि यंत्रों के उद्योग के लिए प्रसिद्ध है.
सिद्घ शिव शनिधाम पानीपत :
पानीपत के मुख्य बाजार में स्थित सिद्घ शनिधाम श्रद्घालुओं के एकता का प्रतिक है. यहाके शनिधान में जहां एक ओर आरती होती हैं वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम श्रद्घालु नमाज अदा करते हैं. यहां शिव पार्वती की प्राचीन प्रतिमा और कई देवी-देवाओं की प्रतिमाएं भी स्थापित की गयी हैं. यह ऐसा मंदिर है, जहां पंचमुखी शिवलिंग और माता अंजनी की गोद में हनुमान की प्रतिमा एक साथ स्थापित है. आस-पास के क्षेत्रों में इस शनिधामों को दादा-पोता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.
पानीपत के तहसील कैंप राम नगर में आमने-सामने स्थित श्री गुरूनानक द्वारा और सनातन आश्रम मंदिर की अपनी अलग हीं विशेषता है. यहां एक ओर श्रद्घालु सनातन आश्रम मंदिर में शीश झुकाते हैं, वहीं दूसरी तरफ श्री गुरूनानक द्वारे में मात्था टेकने के लिए संगत की भीड़ लगी रहती है.
ये दोनों धार्मिक स्थल भाई चारे की मिसाल हैं. आमने-सामने स्थित होने के कारण भाविको में दोनों धार्मिक स्थल “मंदिर गुरूद्वारा” के नाम से प्रसिद्घ है. संत श्री श्रवण स्वरूप महाराज ने सन 1976 में श्री गुरू नानक ने द्वारे की स्थापना की थी. उसी समय गुरूद्वारे के सामने ही सनातन आश्रम मंदिर का निर्माण किया गया था.
काबुली बाग :
पानीपत के निकट काबुली बाग में एक मकबरा तथा तालाब बना हुआ है. यह बाग बाबर ने पानीपत की प्रथम लड़ाई में विजय की खुशी तथा अपनी सबसे प्रिय रानी मुसम्मत काबुली बेगम की याद में बनवाया था.
इब्राहिम लोदी का मकबरा :
यह स्थान पानीपत के तहसील कार्यालय के निकट है. सन 1526 में इब्राहिम लोदी ने बाबर के साथ युद्ध किया था, जिसमे उसकी पराजय हुए और वह मारा गया. युद्ध स्थल पर ही इब्राहिम लोदी को दफनाया गया. बाद में अंग्रेजों ने इस स्थान पर एक बहुत बड़ा चबूतरा बनवाया तथा एक पत्थर पर उर्दू में इस कब्र के महत्व के बारे में लिखवाया.
काला अम्ब :
पानीपत से 8 किमी दूर पर काला अम्ब में सन 1761 में पानीपत का तीसरा युद्ध अहमदशाह अब्दाली और मराठा सरदार सदाशिव राव भाऊ के बिच हुआ था. युद्ध मे मराठा सेना की पराजय हुई थी.
कहा जाता है कि इस स्थान पर एक आम का वृक्ष था, पानीपत में हुए तीसरे युद्ध मे मराठों का इतना खून बहा की आम का वृक्ष भी काला पड़ गया. तभी से इस स्थान को काला अम्ब के नाम से जाना जाता है.