जगन्नाथ पुरी मंदिर ओडिशा के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है. यहां हर साल लाखों श्रद्धालु पुरे विश्व से भगवान के दर्शन के लिए आते हैं. जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के 8वें अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है. पुरी का ये विश्व प्रसिद्ध पौराणिक मंदिर अपने आप में खूब अलौकिक है. यह 800 साल से ज्यादा पुराना है. इस पवित्र मंदिर से जुड़ी ऐसी कई रहस्यमय और चमत्कारी बातें हैं जो हैरान कर देती हैं. इसका जवाब विज्ञान के पास भी नहीं है.
कलिंगशैली से बने इस मंदिर की स्थाप्तय कला और शिल्प खुबसुरती की मिसाल है. श्री जगन्नाथ का मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है. इस भव्य मंदिर के शिखर पर भगवान विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र है जो शहर के किसी भी कोनें से देखने पर मध्य में ही नजर आता है.
आठ धातु ओसे बनाया गया यह चक्र नीलचक्र भी कहा जाता है. मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट ऊंचे पत्थर के चबूतरे पर खड़ा है. इसके अंदर बनाये गये आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं. मंदिर का यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली है. मंदिर की मुख्य मढ़ी यानि भवन एक 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है , और दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है. एक भव्य सोलह किनारों वाला स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है. इसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित है.
जगन्नाथ मंदिर का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वनपर्व में मिलता है. कहा जाता है कि सबसे पहले सबर आदिवासी विश्ववसु ने नीलमाधव के रूप में इनकी पूजा की थी. आज भी पुरी के मंदिरों में कई सेवक हैं जिन्हें दैतापति के नाम से जाना जाता है.
जगन्नाथ मंदिर रहस्य से भरा है. इसका रहस्य आज तक कोई भी नहीं सुलझा पाया. जानते है कुछ रहस्य :
*** यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं. जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं. तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी है. 12 साल में एक बार मूर्तियां नई बनाई जाती हैं , लेकिन आकार और रूप वही रहता है. कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं.
मूर्ति बदलने की प्रक्रिया करते समय मंदिर के आसपास पूरी तरह अंधेरा कर दिया जाता है. शहर की बिजली काट दी जाती है. मंदिर के बाहर CRPF की सुरक्षा तैनात कर दी जाती है. मूर्ती बदलने वाले पुजारी को ही मंदिर के अंदर जाने की इजाजत होती है.
*** जगन्नाथ मंदिर का बड़ा रहस्य ये है कि इसके शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है. वैसे आमतौर पर दिन के समय हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती है और शाम को धरती से समुद्र की तरफ, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां यह प्रक्रिया उल्टी चलती है. अब ऐसा क्यों है, ये रहस्य आज तक कोई विज्ञानी तक नहीं जान पाया है.
*** जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र लगा है, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि उसे किसी भी दिशा से खड़े होकर देखें, पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी ही तरफ है. एक और रहस्य ये है कि इस मंदिर के शिखर की छाया हमेशा अदृश्य ही रहती है. उसे जमीन पर कभी कोई नहीं देख पाता.
*** कहा जाता है कि मंदिर के अंदर समुद्र की लहरों की आवाज किसी को बिलकुल सुनाई नहीं देती है, जबकि समुद्र पास में है, लेकिन आप जैसे ही मंदिर से एक कदम बाहर निकलोगे वैसे ही समुद्र के लहरों की आवाज स्पष्ट सुनाई देने लगती है.
*** आमतौर पर देखा जाता है कि कई मंदिरों के ऊपर से पक्षी गुजरते हैं. या कभी-कभी उसके शिखर पर भी बैठ जाते हैं, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई भी पक्षी नहीं गुजरता. सिर्फ यही नहीं, मंदिर के ऊपर से हवाई जहाज भी नहीं उड़ते हैं.
*** महान सिख सम्राट महाराजा श्री रणजीत सिंह ने इस मंदिर को अधिक मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिए गए स्वर्ण से कहीं अधिक था.
*** दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर यहां पर है 500 रसोइए और 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद. लगभग 20 लाख भक्त भोजन कर सकते है. कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है.
*** मंदिर की रसोई भी सबको हैरान कर देती है. दरअसल, यहां भक्तों के लिए प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि सबसे ऊपर रखे बर्तन में ही प्रसाद सबसे पहले पकता है. फिर नीचे की तरफ एक के बाद एक बर्तन में रखा प्रसाद पकता जाता है. इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि यहां हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के बीच कभी कम नहीं पड़ता. चाहे 10-20 हजार लोग आएं या लाखों लोग, सबको प्रसाद मिलता ही है, लेकिन जैसे ही मंदिर का द्वार बंद करने का समय होता है, वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है.
*** 9वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने यहां की यात्रा की थी और यहां पर उन्होंने चार मठों में से एक गोवर्धन मठ की स्थापना की थी.