सन 2000 तक लोगोंमे ये धारणा थी की महिला कभी ट्रैन या इंजन गाडी नहीं चला सकती. मगर असंभव लगने वाला यह काम महाराष्ट्र की एक मुलगी सौ. सुरेखा शंकर यादव ने संभव करके दिखाया. सुरेखा भारतीय रेलवे की एक वरिष्ठ महिला ट्रेन ड्राइवर हैं.
उन्होंने सन 1988 में भारत की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनकर नया कीर्तिमान साबित किया. उन्होंने मध्य रेलवे के लिए पहली “लेडीज़ स्पेशल” लोकल ट्रेन चलाई थी. सुरेखा 2000 से 2010 तक उपनगरीय लोकल ट्रेन की मोटर महिला थीं.
सन 2010 में उनको सीनियर लोको पायलट मेल में पदोन्नत किया गया. उनके करियर की एक महत्वपूर्ण घटना ता : 8 मार्च 2011 के दिन घटी थी जब उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर , पुणे से सीएसटी तक डेक्कन क्वीन को चलाने वाली एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनीं थी.
सुरेखा आर भोसले का जन्म ता : 2 सितंबर 1965 के दिन महाराष्ट्र के सतारा में सोनाबाई और रामचंद्र भोसले के घर हुआ था. उनके जीवन साथी का नाम शंकर यादव है जो पेशे से महाराष्ट्र सरकार में पुलिस इंस्पेक्टर हैं. उनकी शादी सन 1990 में हुई थी. उनके दो बेटे हैं. उनके माता-पिता का नाम सौ. सोनाबाई और श्री रामचंद्र भोसले है. रामचंद्र भोसले किसान थे.
उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा सेंट पॉल कॉन्वेंट हाई स्कूल, सतारा में प्राप्त की. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए प्रवेश लिया और पश्चिमी महाराष्ट्र राज्य के सतारा जिले के कराड स्थित सरकारी पॉलिटेक्निक शाखासे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा का अध्ययन किया.
शिक्षक बनने के लिए गणित में स्नातक डिग्री (बीएससी) और शिक्षा स्नातक (बी.एड.) प्राप्त करने के लिए अपने कॉलेज की पढ़ाई जारी रखना चाहती थीं, लेकिन भारतीय रेलवे में नौकरी के अवसर ने उन्हें खत्म कर दिया.
सुरेखा का सन 1987 में रेलवे भर्ती बोर्ड, मुंबई द्वारा उनका चयन किया गया और 1986 में कल्याण प्रशिक्षण स्कूल में प्रशिक्षु सहायक चालक के रूप में मध्य रेलवे में शामिल हुईं, जहाँ उन्होंने छह महीने तक प्रशिक्षण लिया.
सुरेखा सन 1989 में एक नियमित सहायक चालक बनी. पहली स्थानीय मालगाड़ी जिसे उन्होंने संचालित किया था, एल-50 नंबर की थी, जो वाडी बंदर और कल्याण के बीच चलती है.
उन्हें सन 1996 में एक मालगाड़ी चालक के रूप में काम करने के लिए नियुक्त किया गया. 1998 में, वह एक पूर्ण मालगाड़ी चालक बन गईं. सुरेखा डेक्कन क्वीन को चलाने वाली एशिया की पहली मोटरवुमेन थीं. कई महिलाएं उससे प्रेरित होकर सन 2011 तक 50 महिला लोकोमोटिव ड्राइवर बनी जो उपनगरीय ट्रेनों और माल गाड़ियों का संचालन कर रही थीं.
उन्होंने अब तक कई प्रकार की ट्रेनें चलाई हैं जैसे स्थानीय उपनगरीय ट्रेनें, जुड़वां इंजन वाली घाट ट्रेनें, माल और मेल एक्सप्रेस ट्रेनें. सुरेखा दिन में दस घंटे काम करती है.
ता : 13 मार्च 2023 को, वह सेमी-हाई-स्पीड वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन चलाने वाली पहली महिला थीं. उसने सोलापुर से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस तक 455 किलोमीटर की दूरी तय की थी.
उनकी इस सुनहरी सिद्धि के लिए सविता को कई पुरूस्कार से सम्मानित किया गया है.
*** जिजाऊ पुरस्कार (1998)
*** वीमेन अचीवर्स अवार्ड (2001)
*** राष्ट्रीय महिला आयोग, दिल्ली (2001)
*** लोकमत सखी मंच (2002)
*** एसबीआई प्लेटिनम जयंती वर्ष समारोह (2003-2004)
*** सह्याद्री हिरकनी पुरस्कार (2004)
*** प्रेरणा पुरस्कार (2005)
*** जीएमवार्ड (2011)वुमन अचीवर्स
अवार्ड (2011) (सेंट्रल रेलवे द्वारा)
*** वर्ष 2013 का आरडब्ल्यूसीसी सर्वश्रेष्ठ महिला पुरस्कार.
उनकी ये असाधारण सिद्धि के लिए हम उसे सैलूट करते है और उनके स्वस्थ स्वास्थय के लिए शुभकामनायें प्रेषित करते है.