यह एक ऐसा मुद्दा है जो समय समय पर अखबारों की सुर्खियों में चर्चा का विषय बना रहता है. और हमें सोचने पर मजबूर कर देता है कि धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता में अंतर क्या हैं.
दर्शाये गये दोनो ही शब्द अंग्रेजी के SECULARISM सेकुलरिज्म का हिंदी अनुवाद हैं. मगर ये एक असमंजस करने वाली बात रही है कि एक शब्द के अलग अलग अनुवाद कैसे ? और उनके अर्थ भी अलग अलग कैसे ?
धर्मनिरपेक्षता :
इसका अर्थ है जीवन के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं से धर्म को अलग करना, धर्म को विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत मामला माना जाता है. ” धर्मनिरपेक्ष ” शब्द का अर्थ है ” धर्म से अलग ” होना या कोई धार्मिक आधार नहीं होना.
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य राजनीति या किसी गैर-धार्मिक मामले से धर्म को दूर रखे तथा सरकार धर्म के आधार पर किसी से भी कोई भेदभाव न करे. धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी के धर्म का विरोध करना नहीं है बल्कि सभी को अपने धार्मिक विश्वासों एवं मान्यताओं को पूरी आज़ादी से मानने की छूट देता है.
पंथनिरपेक्षता :
शासन सत्ता के लिए सभी धर्मों का समान होना, किसी धर्म के साथ भेद भाव न करना मतलब सर्वधर्म समभाव की भावना को ही पंथनिरपेक्षता कहते हैं. पंथनिरपेक्षता का भाव भारत में ता : 3 जनवरी 1977 से ही प्रभावी माना गया है.
भारत धर्मनिरपेक्ष कैसे बना :
अनुच्छेद 25 के अनुसार भारत के सब नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने की आजादी है. प्रस्तावना में धर्म निरपेक्ष शब्द का प्रयोग 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करके धर्म निरपेक्ष शब्द अंकित करके भारत को स्पष्ट रूप से धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है.
भारत की जनसंख्या के 79.8% लोग हिन्दू धर्म का अनुसरण करते हैं. इस्लाम 15.23%, बौद्ध धर्म 0.70%, ईसाई पन्थ 2.3% और सिख धर्म का पालन करने वाले 1.72% है. वैसे एक अनुमानित आंकड़ों के अनुसार विश्व में धर्मों की संख्या लगभग 300 से ज्यादा है, लेकिन व्यापक रूप से सात धर्म ही प्रचलित हैं, ( 1 ) हिन्दू,( 2 ) जैन,( 3 ) बौद्ध, ( 4 ) सिख,( 5 ) ईसाई, ( 6 ) इस्लाम, ( 7 ) यहूदी और वुडू. इसके अलावा पारसी, यजीदी, जेन, शिंतो, पेगन, बहाई, ड्रूज़, मंदेंस, एलामितेस आदि धर्म को मानने वालों की संख्या बहुत कम है.
दुनियाभर में अनुयायियों की संख्या के लिहाज से ईसाई सबसे बड़ा, जबकि हिंदू धर्म तीसरा सबसे बड़ा धर्म है. और इस्लाम दूसरे स्थान पर है. विश्व में कुल 204 देश हैं. इनमें से 53 देशों में हिंदू रहते हैं.
संविधान में अब तक सौ से ज़्यादा संशोधन किए जा चुके हैं, लेकिन क्या भारत की संसद को यह अधिकार है कि वह संविधान की मूल प्रस्तावना को बदल सके?
संविधान के आर्टिकल 368 के अनुसार संसद संविधान में संशोधन कर सकती है. लेकिन इसकी सीमा क्या है? जब 1973 में यह केस सुप्रीम कोर्ट में सुना गया तो जजों की राय बंटी हुई थी. लेकिन सात जजों के बहुमत से फैसला दिया गया कि संसद की शक्ति संविधान संशोधन करने की तो है परंतु संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को नहीं बदला जा सकता है. कोई भी संशोधन प्रस्तावना की भावना के खिलाफ़ नहीं हो सकता है.
यह केस इसलिए भी ऐतिहासिक रहा क्योंकि इसने संविधान को सर्वोपरि माना. न्यायिक समीक्षा, पंथनिरपेक्षता, स्वतंत्र चुनाव व्यवस्था और लोकतंत्र को संविधान का मूल ढांचा कहा और साफ़ किया कि संसद की शक्तियां संविधान के मूल ढांचे को बिगाड़ नहीं सकतीं. संविधान की प्रस्तावना इसकी आत्मा है और पूरा संविधान इसी पर आधारीत है.
पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र है.
दुनिया में कुल 204 देश है इनमें से 53 देशों में हिंदू रहते है. एक सम्मेलन हुआ था, जिसमें कई देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. पुरी के श्री शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने हिंदू राष्ट्र को लेकर कहा कि सरकार इसे हिंदू राष्ट्र घोषित करती है तो नेपाल व मॉरिशस सहित दुनिया के 15 देश हिंदू राष्ट्र घोषित होने की तैयारी में हैं.
धर्मनिरपक्षता के लिए संविधान में क्या प्रावधान है :
अनुच्छेद 14, 15 और 16 समानता के अधिकार की बात करता है और इसमें साफ कहा गया है कि “राज्य धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा”.
अल्पसंख्यकों के लिए अनुच्छेद 25 – 30 में विशेष प्रावधान है और 25 – 28 में “धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार” की व्याख्या की गई है जो स्पष्ट करता है कि राज्य की प्रति व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार जीवन जीने की आजादी होगी.
अनुच्छेद 29 – 30 में अल्पसंख्यकों को विशेष सुरक्षा दी गई है.
अनुच्छेद 30 : राज्य अल्पसंख्यकों को अपनी रुचि के शिक्षण संस्थान स्थापित करने व उन्हें चलाने की छूट देता है.
1978 में हुए 44 वें संविधान संशोधन के बाद अनुच्छेद 30 में यह भी व्यवस्था की गई कि राज्य किसी “अल्पसंख्यक” समुदाय की शिक्षण संस्थान का अधिग्रहण करता है तो उसे बाजार कीमत पर क्षतिपूर्ति देगा.
लेकिन यदि राज्य “बहुसंख्यक” के शिक्षण संस्थान का अधिकरण करता है तो यह शर्त लागू नहीं होती बल्कि राज्य अपने विवेक के अनुसार कीमत देगा.
सन 1994 में एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने “सेकुलरिज्म” को “संविधान के मूल ढांचे” का हिस्सा माना. भारत सभी धर्मों से दूरी बनाने के बजाय सभी के प्रति समान व्यवहार रखता है जो कि पंथनिरपेक्षता की ज्यादा नजदीक है.
विशेष टिप्पणी :
कृपया इसे सिर्फ सुचना के तौर पर लिया जाय. इसे सोशल मीडिया के आधार पर लिया गया है. अधिक जानकारी के लिए संविधान को सर्वोपरि समजा जाय.