एक जमाना था, जब 15 नये पैसे का पोस्ट कार्ड संदेश व्यवहार का मुख्य माध्यम था. दूर दरार गांव के लोगों मे इसका बेसब्री से बड़ा इंतजार रहता था. इसके बाद तार आया, फिर टेलीफोन का आविष्कार हुआ. कंप्यूटर आए, वे इंटरनेट से जुड़े. इससे ” ई-मेल ” के उपयोग में वृद्धि हुई. फिर मोबाइल ने क्रांति ला दी. और वीडियो कांफ्रेंसिंग से अलग अलग जगहों के लोगों को एक ही जगह पर जुड़कर बात करना संभव हुआ.
अभी तक यह सब 2डी में होता था और अब अगली तकनीक 3डी में शुरु हुई है. बिना चश्मा पहने 3डी प्रोजेक्शन देखना संभव हुआ.
इस तकनीक का उपयोग करके छात्र दुनिया के किसी भी कोने से अपने दोस्तों, शिक्षकों और अन्य छात्रों के साथ आमने-सामने संवाद कर सकते हैं. शिक्षक एक साथ विश्व की विभिन्न कक्षाओं में पढ़ा सकते हैं. यह तकनीक वर्तमान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को अधिक प्रभावी और यथार्थवादी बनाएगी.
आप लोगोंने कई चीजों पर उनकी प्रमाणिकता साबित करने के लिए उनकी कंपनी का बना हुआ होलोग्राम देखा होगा. वास्तव में देखा जाय तो होलोग्राम भी फोटोग्राफ की तरह होते है, जो 3डी प्रकट होता हैं. होलोग्राम एक ऐसी छवि बनाता है जिसे कई लोगों से देखा जा सकता है.
जब आप होलोग्राम देखते हैं, तो ऐसा प्रतित होता है कि आप तस्वीर को एक वास्तविक भौतिक वस्तु को देख रहे हैं. जब आप एक होलोग्राम की छवि देखते हैं तो आपको वह 3डी के रूपमें दिखाई देता है, परंतु जिस सतह पर इसे संग्रहीत किया जाता है वह सपाट होती है. यह ग्रीक शब्द होलोस (संपूर्ण) और ग्रामा (संदेश) से लिया गया है.
कई नामी कंपनी चीज़ों पर उनकी प्रमाणिकता साबित करने के लिए उन पर उनकी कंपनी का बना होलोग्राम देते है. वास्तव में होलोग्राम फोटोग्राफ की तरह ही हैं जो तीन आयामी (3डी) प्रतीत होते हैं.
होलोग्राम एक ऐसी छवि बनाता है जिसे एकाधिक कोणों से भी देखा जा सकता है. जब आप होलोग्राम देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि आप एक तस्वीर ना देख कर एक वास्तविक मे भौतिक वस्तु को देख रहे हैं.
त्रिआयामी होलोग्राफी (3डी ) एक स्टेटिक किरण प्रादर्शी प्रदर्शन युक्ति होती है. इस तकनीक में किसी वस्तु से निकलने वाले प्रकाश को रिकॉर्ड कर बादमें पुनर्निर्मित किया जाता है, जिससे उस वस्तु के रिकॉर्डिंग माध्यम के सापेक्ष छवि में वही स्थिति प्रतीत होती है, जैसी रिकॉर्डिंग के समय थी. ये छवि देखने वाले की स्थिति के अनुसार वैसे ही बदलती प्रतीत होती है, जैसी कि उस वस्तु के उपस्थित होने पर, इस प्रकार छवि एक त्रिआयामि चित्र प्रस्तुत करती है व होलोग्राम कहलाती है.
होलोग्राम का आविष्कार :
ब्रिटिश-हंगेरीयन भौतिक विज्ञानी डैनिस गैबर ने सन 1947 में इसका आविष्कार किया था, जिसे सन् 1960 में और विकसित किया गया. इसके बाद इसे औद्योगिक उपयोग में लाया गया. इसका उपयोग पुस्तकों के कवर, क्रेडिट कार्ड आदि पर एक छोटी सी रूपहली चौकोर पट्टी के रूप में दिखाई देता है. जिसे होलोग्राम कहा जाता है.
यह देखने में त्रिआयामी छवि या त्रिबिंब प्रतीत होती है, किन्तु ये मूल रूप में द्विआयामी आकृति का ही होता है. इसके लिये दो द्विआयामी (2डी ) आकृतियों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता जाता है. तकनीकी भाषा में इसे सुपरइंपोजिशन कहते हैं. यह मानव आंख को गहराई का भ्रम भी देता है.
होलोग्राफी के सिद्धांत का विकास 1947 में भौतिक वैज्ञानिक डेनिस गेबर ने किया था और लेजर तकनीक के विकास ने होलोग्राफी को संभव बनाया. इसके लिए डेनिस गेबर को 1971 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था. इसके बाद इसे इंडस्ट्रियल उपयोग में लाया गया.
इसका उपयोग पुस्तकों के कवर (बुक कवर), क्रेडिट कार्ड (क्रेडिट कार्ड) आदि पर देखा गया. यह देखने में त्रिरूप छवि या त्रिबिंब होता है, यह मूल रूप में द्विरूप आकृति ही होती है, इसी कारण इसे 3डी होलोग्राम भी कहा जाता है. आज इस तकनीक में काफी विकास हुआ है. अब इसका उपाय विभिन्न उत्पादों या क्रेडिट कार्ड तक सीमित नहीं है. फिल्मों और ब्लॉक्ड (दृश्य) प्रदर्शन में भी यह तकनीक काफी उपयोग की जाती है. इसमें आपको दो चित्रों को त्रिलिप छवि में दिखाया गया है, जिससे आपको ऐसा प्रतीत होता है कि वो वस्तु आपके सामने है.
नकली दवाओं की पहचान करने के लिए भारत की प्रमुख औषधि कंपनी ने ग्लैक्सो ने बुखार कम परने वाली औषधि क्रोसीन को एक त्री-आयामी होलोग्राम पैक में प्रस्तुत किया है. यह परिष्कृत थ्री-डी होलोग्राम भारत में पहला एवं एकमात्र पीड़ानाशक एंटी पायेरेटिक ब्रांड है.
होलोग्राम का प्रयोग करने वाली प्रसिद्ध भारतीय कंपनियों में हिन्दुस्तान यूनीलीवर,फिलिप्स इंडिया, किर्लोस्कर,
अशोक लेलैंड, हॉकिन्स जैसी अनेक कंपनियां शामिल है.
इसके अलावा रेशम और सिंथेटिक कपड़ा उद्योग के लिए होलोग्राफिक धागों के उत्पादन की योजना भी प्रगति पर है. होलोग्राम कम खर्चीला है और इसके रहते उत्पादों के साथ छेड़छाड़ की जाये तो बड़ी सरलता से उसका पता लग जाता है. इसकी मदद से उत्पाद की साख और विशिष्टता बनी रहती है.
इसके अलावा मतदाता पहचान पत्र आदि में भी थ्री-डी होलोग्राम का प्रयोग किया जाता है. इसके लिये भारतीय निर्वाचन आयोग ने भी निर्देश जारी किये हैं. भारत के मतदाता पहचान पत्रों में भी होलोग्राम का प्रयोग होता है. इसके अलावा विद्युत आपूर्ति मीटरों पर बिजली की चोरी रोकने हेतु भी होलोग्राम का प्रयोग होता है.
होलोग्राम तकनीकी के क्षेत्र में कई अधिक शोध चल रहे हैं, इस तकनीक को भविष्य में स्मार्ट फोन में, स्वास्थ्य संबन्धी सेवाओं को देने में, जैसे कि थ्रीडी होलोग्राम एकसरे या स्कैनिंग, अल्ट्रासॉउंड जैसी चिकित्सीय सेवाओं को दिया जा सकता है.
इसके अलावा और भी कई क्षेत्रों में थ्रीडी होलोग्राम तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है, टेलीवीजन में इसका व्यावहारिक रूप से क्रान्तिकारी होगा, जिसमें होलोग्राम प्रदर्शन का प्रयाग किया जा सकता है, भविष्य में तीनडी होलोग्राम फोन और कम्प्प्यूटर भी आपके सामने हो सकते हैं, यह उसी समय पता चलेगा कि यह तकनीक को कहॉ तक विकसित किया जायेगा.