आवश्यकता आविष्कारों की जननी है. बायोस्कोप से शुरु हुई कहानी ब्लैक एंड वाइट गूंगी फ़िल्म राजा हरिश्चंद्र से लेकर बोलती फ़िल्म आलम आरा तक की सफर के बाद आज चलचित्र उद्योग नित नये आविष्कारों मे प्रगति करते हुए रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है.
वर्तमान मे आधुनिक टेक्नोलॉजी का आविष्कार हो रहा है. आज मुजे बात करनी है, “3डी” फ़िल्म प्रौद्योगिकी
(TECHNOLOGY ) की. 3डी यांनी
थ्री डायमेंशन यानी तीन आयाम लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई या गहराई. 3डी को इस तरह से समझा जा सकता है कि जैसे एक कागज का पन्ना है जिसकी लंबाई और चौड़ाई तो है परंतु मोटाई नगण्य के बराबर है.
मगर यदि हम लोग इस पन्ने से एक बॉक्स बना देते हैं तो उसमें एक अधिक आयाम जुड़ जाता है. यानी कि लंबाई, चौड़ाई के अलावा ऊंचाई या गहराई भी जुड़ जाती है. इसे हम लोग 3डी की अनुभूति कहते हैं.
हमारे मस्तिष्क व आंखों के काम करने के तरीके पर ही 3डी आधारित होता है. हमारी दो आंखों की पुतलियों के बीच करीब 6.5 सेमी की दूरी होती है. इसलिए प्रत्येक आंख को कोई भी दृश्य एक अलग कोण से दिखाई देता है. जो अपने आप में विशिष्ट होता है.
अब हमारे मस्तिष्क का काम शुरू होता है. वह दोनों दृश्यों को मिलाकर एक बना देता है. दाई और बाई आंख में अंकित छवियों में हल्की भिन्नता को मस्तिष्क उस दृश्य की गहराई के रूप में देखता है. इस तरह से हम 3डी दृश्यों को देखने और समझने में सक्षम होते हैं.
2डी फिल्में किसी सामान्य तस्वीर की तरह होती हैं. इसे देखकर हम जो अनुभव करते हैं वही 2डी फिल्मों को देखने से होता है. वहीं 3डी में हमें दृश्य की गहराई का अनुभव होता है. इन फिल्मों को शूट करने के लिए दो कैमरों का प्रयोग किया जाता है. दो दृश्यों को एक साथ मिलाकर चित्र को पर्दे पर दिखाया जाता है. इन फिल्मों को बनाने के लिए खास तरीके के मोशन कैमरों का इस्तेमाल होता है. 3डी फिल्मों को देखने के लिए खास तरीके के चश्मे का प्रयोग किया जाता है. अब तो ऐसी भी तकनीक उपलब्ध हो गई है जिसमें हम किसी 3डी फिल्म को बगैर चश्मे के भी देख सकते हैं.
ई. सन 1890 में ब्रिटिश फिल्मों के प्रवर्तक विलियम ग्रीन्स ने इसकी शुरुआत की थी. और सन 1922 में लॉस एंजिलिस में “द पॉवर ऑफ लव” फिल्म को प्रदर्शित किया गया. फिर समय के साथ इन फिल्मों में नए प्रयोग किए गए. सन 1980 में बनी फिल्म “वी आर बॉर्न ऑफ स्टार” ने 3डी फिल्मों को नया आयाम दिया.
इसके स्वर्ण युग का प्रारंभ 1952 में बनी फिल्म “ब्वाना डेविल” से माना जाता है. यह पहली रंगीन त्रि-आयामी फिल्म थी. हमारे भारत देश में 3डी की शुरुआत ई. सन 1984 में रिलीज हुई फ़िल्म “माई डियर कुट्टीचथन” नाम से बनी मलयालम फिल्म से 3डी फिल्मों की शुरुआत हुई थी.
सन 1998 में “छोटा चेतन 3डी ” फिल्म को नई तकनीक के प्रयोग और डिजिटल साउंड के साथ डब करके प्रस्तुत किया गया था. इसने बॉक्स ऑफिस पर 60 करोड़ की कमाई के साथ रिकॉर्ड ब्रेक सफलता हासिल की थी.
3डी फिल्मों को अधिक देखनेसे स्वास्थय पर असर पड़ सकता है. 3डी मूवी देखने के शौकीन लोगो को उनका ये शौक उनकी सेहत के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है. इसके साइड इफ़ेक्ट कई बार इतने खराब होते हैं कि व्यक्ति चलने फिरने लायक तक नहीं रह जाता.
डॉक्टरों के मुताबिक ज्यादा 3डी फ़िल्म देखनेसे हमारे शरीर में वेस्टिबुलर सिस्टम और आंखों की मसल के बीच सही तालमेल न बैठने की वजह से ऐसी स्थिति पैदा होती है. सरल शब्दों में कहा जाए तो हमारी आंखों से होती हुई एक नस दिमाग तक जाती है जो आंखों की गतिविधियों को कंट्रोल करती है जिसे OCCULOMOTOR नाम से जाना जाता है.
विशेषज्ञ डॉक्टरों के अनुसार अधिक 3डी फ़िल्म देखने की वजह से इसका असर दिमाग पर पड़ता है और शरीर की मूवमेंट प्रभावित होती है. जिसकी वजह से व्यक्ति को उल्टी या चक्कर आना आंखों का बेलेंस बिगड़ना, डबल विजन की शिकायत के साथ गर्दन और घुटनों में भी दर्द हो सकता है.
कई लोगों को 3डी फ़िल्म देखते समय मूवी देखने के लिए दिए गए चश्में को एडजस्ट करने में ही 10 मिनट लग जाते है. क्योंकि चश्में में काफी लोगों को असहजता महसूस होती है.
इस तरह की दिक्कत से बचने के लिए डॉक्टर्स अक्सर 3डी फ़िल्म के शौकिन लोगों को कम मूवी देखने की सलाह देते हैं. साथ ही ऐसे लोगों को हमेशा ये एडवाइज किया जाता है कि वो अपनी डाइट का खास ध्यान रखें. यदि आपको दिक्कत होती हो या फिर चक्कर आती है तो अपने फिजिशियन को दिखाएं.
IMAX 3D, 4DX, 3D के बीच अंतर :
आखिर IMAX 3D, 4DX, 3D के बीच में अंतर क्या है?
” 3डी. ” :
डिजिटल 3डी एक छोटे स्क्रीन के आकार का छोटा थिएटर होता है. इसमें टॉप नॉच की साउंड क्वालिटी होती है, जिसमें आपको मूवी देखने का एक अलग ही अनुभव होता है. 3D थिएटर में आपको एकदम मूवी में होने जैसा फील आता है.
आईमैक्स 3D – IMAX 3D :
Imax 3D सबसे विशाल स्क्रीन और शानदार ऑडियो क्वालिटी वाली फिल्में देखने का एक नया अनुभव देता है. इसमें स्क्रीन काफी बड़ी होती और इसमें हाई टेक स्पीकर्स का इस्तेमाल किया जाता है. आईमैक्स 3D दिल्ली एनसीआर के 4 थिएटर में मौजूद है.
4DX 3D :
ये एक ऐसा सिनेमा है, जिसमें व्यक्ति सारे सेंसेस, साउंड, स्मैल, टच और मूवमेंट एक साथ फील कर पाता है. जैसे-जैसे मूवी में मूवमेंट होती है, उसी तरह आपकी कुर्सी हिलती है.
आईमैक्स या 3डी में से बेहतर क्या है?
IMAX 3D साउंड के साथ, ऑडियो के साथ कम्प्रेस हो जाता है, जिसमें RealD 3D की तुलना में पिक्चर और भी ज्यादा बैलेंस और क्वालिटी वाली हो जाती हैं. अगर आप एक इमेज वाली मूवी देखना चाहते हैं, तो आईमैक्स 3D ट्राई कर सकते हैं.