चमत्कारी ज्वालादेवी मंदिर – हिमाचल.

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ज्वालादेवी का मंदिर भारतीय राज्य हिमाचल के कांगड़ा घाटीसे 30 कि.मी. की दूरी पर विध्यमान है, जिसे माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. यहां माता की जीभ गिरी थी. इस ज्वालादेवी मंदिर को नगरकोट और ज्योता वाली मां के नाम से भी जाना जाता है.

इस मंदिर में जल रही नौ ज्वाला में से एक ज्वाला बड़ी हैं जिसे मां ज्वाला का स्वरूप माना जाता है. और दूसरी बाकी आठ ज्वाला को (1) अन्नपूर्णा, (2) चंडी, (3) हिंगलाज भवानी, (4) विंध्यावासनी, (5) महालक्ष्मी, (6) सरस्वती, (7) अंबिका और (8) अंजना देवी का रुप माना जाता है.

ज्वाला देवी मंदिर की वास्तुकला इंडो-सिख शैली में देखने को मिलती है. यह एक लकड़ी के चबूतरे पर बनाया मंदिर है और शीर्ष पर एक छोटे से गुंबद के साथ चार कोनों वाला दिखाई देता है. मंदिर में एक केंद्रीय वर्गाकार गड्ढा है जहाँ अनन्त लपटें जलती हैं. आग की लपटों के सामने गड्ढे हैं जहां फूल और दूसरे प्रसाद रखे जाते हैं.

मंदिर का गुंबद और शिखर सोने से ढका हुआ देखने को मिलता है. उसको महाराजा रणजीत सिंह ने उपहार में भेट दिया था. उसके निर्माण में महाराजा खड़क सिंह या रणजीत सिंह के पुत्र ने चांदी का उपहार दिया था.

बताया जाता है कि मंदिर के सामने बनी पीतल की घंटी नेपाल के राजा ने भेंट चढ़ाई थी. मंदिर सुनहरे गुंबद और हरियाली में चमकते चांदी के दरवाजों से और भी सुंदर दिखता है. मुख्य हॉल के केंद्र में संगमरमर से बना बिस्तर है वह चांदी से सजाया गया है. रात में देवी की आरती के बाद कपड़े और सौंदर्य प्रसाधन कमरे में रखे जाते हैं. कमरे के बाहर महादेवी, महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी की मूर्तियाँ बनी हैं. गुरु गोविंद सिंह द्वारा दी गई गुरु ग्रंथ साहिब की पांडुलिपि भी कमरे में सुरक्षित है.

ज्वालामुखी मंदिर में माता जी के मूर्तिरूप की नहीं बल्कि ज्वाला रूप की पूजा होती है जो प्राचीन काल से वहां प्रज्वलित है. कालांतर में इस स्थान को गुरुगोरख नाथ ने व्यवस्थित किया था. यहां पर प्रज्वलित ज्वाला प्राकृतिक न होकर चमत्कारिक मानी जाती है. मंदिर के थोड़ा ऊपर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है.

यहा विध्यमान मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है. क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है. जो की 51 शक्तिपीठ में से एक है. इस मंदिर में नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ दिखाई देती है. बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझााने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहे थे. आज तक वैज्ञानिक भी इस ज्वाला के लगातार जलने का कारण नहीं जान पाए हैं.

ऐतिहासिक पुष्ट भूमि कहती है कि ज्वालामुखी देवी के मंदिरको जोतावाली का मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है. इसकी गिनती माता की प्रमुख शक्ति पीठों में होती है.

ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अंदर से निकलती इस ऊर्जा का क्या रहस्य है लेकिन इस भूगर्भ से निकलती ज्वाला का पता नहीं कर पाए थे. वहीं बादशाह अकबर ने भी इस ज्योत को बुझान की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहा था. विज्ञानी भी इस ज्वाला की जड़ तक नहीं पहुंच पाए.

सतयुग में महाकाली के परमभक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यहां भव्य मंदिर बनाया था. बाद में इस स्थान की खोज पांडवों ने की थी. इसके बाद यहां पर गुरुगोरखनाथ जी ने घोर तपस्या करके माता से वरदान और आशीर्वाद प्राप्त किया था. सन 1835 में इस मंदिर का पुन: निर्माण राजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने करवाया था. यही वजह है कि इस मंदिर में हिंदुओं व सिखों की साझी आस्था है.

ज्वाला देवी की उत्पत्ति :

ज्वालादेवी का मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है. पूरे भारत मे कुल 51 शक्तिपीठ है. इन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है, जो शिव और शक्ति से जुड़े हुई हैं. मान्यता है कि शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था. जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नही किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नही समझते थे.

फिर भी सती बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी. यज्ञ स्थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कूद गयीं. जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे. जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया. तब पूरे ब्रह्माण्ड को संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर के सुदर्शन चक्र से 51 टुकड़े कर दिए. देवी के शरीर के अंग जहां जहां गिरे वहां शक्ति पीठ बन गया. मान्यता है कि ज्वालाजी मे माता सती की जीभ गिरी थी और इस स्थान को शक्ति पीठ की मान्यता मिली.

बादशाह अकबर ने इस मंदिर के बारे में पहली बार सुना तो वह हैरान हो गया. उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा. मंदिर में जल रही ज्वालाओं को देखकर उसके मन में शंका हुई. उसने ज्वालाओं को बुझाने के लिए नहर का निर्माण करवाया. उसने सेना को मंदिर में जल रही ज्वालाओं पर पानी डालकर बुझाने के आदेश दिए. लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी अकबर की सेना मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाई.

देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए उसने सवा मन (पचास किलो) सोने का छतर देवी मां के दरबार में चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया. आज भी बादशाह अकबर का यह छतर ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है.

ज्वालादेवी ने अकबर को दिखाया चमत्कार :

बताया जाता हैं कि माता के उत्सव के दौरान हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी ज्वालादेवी के एक भक्त ध्यानू हजारों यात्रियों के साथ माता के दरबार में दर्शन के लिए जा रहे थे इतनी बड़ी तादाद में यात्रियों को जाते देख अकबर के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली में उन्हें रोक लिया और ध्‍यानू को पकड़कर अकबर के दरबार में पेश किया गया.

अकबर ने पूछा कि तुम इतने सारे लोगों को लेकर कहां जा रहे हो? ध्यानु ने हाथजोड़कर ‍विन‍म्रता से उत्तर दिया कि हम ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहे हैं. मेरे साथ जो सभी लोग हैं वे सभी माता के भक्त हैं. यह सुनकर अकबर ने कहा यह ज्वालादेवी कौन है और वहां जाने से क्या होगा? तब भक्त ध्यानू ने कहा कि वे संसार का जननी और जगत का पालन करने वाली है . उनके स्थान पर बिना तेल और बाती के ज्वाला जलती रहती है.

सुनकर अकबर ने कहा यदि तुम्हारी बंदगी पाक है और सचमुच में यकिन के काबिल है तो तुम्हारी इज्जत जरूर रखी जायेगी लेकिन यदि वह यकीन के काबिल नहीं है तो फिर उसकी इबादत का क्या मतलब? ऐसा कहकर अकबर ने कहा कि इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन काट देते हैं, तुम अपनी देवी से कहकर दोबारा जिंदा करवा लेना कहकर घोड़ेकी गर्दन काट दी गई.

इसपर ध्यानू ने अकबर से कहा मैं आप से एक माह तक घोड़े की गर्दन और धड़ को सुरक्षित रखने की विनती करता हूं. अकबर ने ध्यानू की बात मान ली. बादशाह से अनुमती लेकर ध्यानू मां के दरबार में जा बैठा. स्नान,पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया. प्रात: काल ध्यानू ने हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना की और कहा हे मां अब मेरी लाज आपके ही हाथों में है. कहते हैं कि अपने भक्त की लाज रखते हुए मां ने घोड़े को पुन: जिंदा कर दिया.

(2) एक अन्य कहानी :

औरंगजेब ने भी यहां की ज्वाला को बुझाने का योजना बनाई थी. जब अपने सैनिकों को ज्वाला को बुझाने के लिए भेजा तो मां के चमत्कार की वजह से उन सैनिकों पर मधु मक्खियों ने हमला कर दिया और सारे सैनिक वही से लौटकर औरंगजेब के पास पहुंचकर औरंगजेब से सभी बातें बताई. उसके बाद औरंगजेब ने इस ज्वाला को बुझाने की योजना ही त्याग दि.

ज्वालामुखी मंदिर के दर्शन और आरती का समय :

ज्वालाजी मंदिर का खुलने और यहां होने वाले दर्शन का समय मौसम के अनुसार खुलने और बंद होने के समय में बदलाव होते रहता है.

गर्मियों के मौसम में :

मंदिर सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुलता है.

सर्दीयो के मौसम में :

सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन कर सकते है.

आरती का समय :

मंगल आरती :

गर्मी में 5 से 6 बजे तक.

सर्दी में 6 से 7 बजे तक.

भोग आरती : 11 से 12 बजे.

शाम की आरती : 7 से 8 बजे.

शयन आरती : 9 से 10 बजे.

यहां तक कैसे पहुचे :

आप यहां के लिए सड़क मार्ग वायु मार्ग व रेल मार्ग के माध्यम से आ सकते हैं.

(1) रेल मार्ग के माध्यम से :

यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन ज्वालामुखी रोड है लेकिन यहां पर कोई भी एक्सप्रेस ट्रेन नहीं आती यहा सिर्फ लोकल ट्रेन आती है. इसके अलावा जहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन जालंधर और पठानकोट पड़ता है. दौलतपुर रेलवे स्टेशन यहां के नजदीक पड़ता है.

ज्वालादेवी मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन कांगड़ा है, जो यहाँ से लगभग 31 किमी दूर है. इसके अलावा पर्यटकों की पसंदीदा जगह होनेके कारण ज्वाला जी मंदिर तक पहुँचने के लिए शिमला, धर्मशाला और दूसरी अन्य जगहों से परिवहन के साधन आसानी से उपलब्ध होते हैं. यहाँ तक कि दिल्ली, लुधियाना, चंडीगढ़ और जम्मू जैसे शहरों से भी ज्वाला मंदिर पहुँचने के लिए यातायात के साधन उपलब्ध होते हैं.

(2) हवाई मार्ग से :

यहां का नियर हवाई अड्डा एयरपोर्ट कांगरा का है जिससे भारत के हर कोने से यहां के लिए आ सकते हो. यह हवाई मार्ग अड्डा ज्वालामुखी मंदिर से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है.

(3) सड़क मार्ग से :

पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरों से ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है. इसके अलावा यात्री अपने निजी वाहनों व हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस के द्वारा वहां तक पहुंच सकते हैं.

यहां के लिए रुकने की व्यवस्था

आप अगर यहां पर दो या दो से अधिक दिन के लिए घूमने के लिए आते हैं. तो आप यहां पर ठहर भी सकते हैं यहां ठहरने के लिए कई होटल है जिसको आप घर से ऑनलाइन बुकिंग भी कर सकते हैं.

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