नये जमानेकी वन्दे भारत ट्रैन.

vandhe bhart

आज मुजे वन्दे भारत ट्रैन की बात आप मित्रों से करनी है. भारतीय रेल्वे, स्पेन की टैल्गो ट्रैन लानेकी तैयारी कर रही थी लेकिन भारतीय रेलवे के होनहार इंजीनियरों ने आधी कीमत में वन्दे भारत ट्रैन बना दी. वंदे भारत ट्रैन का जनक सुधांशु मणि कहा जाता है. वंदे भारत ट्रेन को बनाने के पीछे की कहानी रोचक है. इस ट्रैन को कुल 18 महीने के भीतर तैयार की गई थी.

इस ट्रैन को बनाने के लिए सन 2016 में चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) को चुना गया था. सुधांशु मणि के नेतृत्व में कुल आधे समय में इस ट्रेन की डिजाइनिंग से लेकर इंजीनियरिंग, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस रोल-आउट का काम पूरा कर लिया था. जिसकी महज 100 करोड़ से भी कम लागत हुईं थी.

फरवरी 2019 में लॉन्च हुई वंदे भारत ट्रेन की संख्या वर्तमान में बढ़ती जा रही है. सुधांशु मणि की आखिरी पोस्टिंग सन 2016 में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में हुई थी, जहां उनको जनरल मैनेजर नियुक्त किया गया था. वहीं रहकर उन्होंने अपनी टीम के साथ टी-18 बनाई थी. वन्दे भारत ट्रेन की खास बात है कि इसकी टेक्नोलॉजी भी स्वदेशी है.

सुधांशु मणि का सालों से सपना था कि हमारे यहां जापान जैसी ट्रेनें बने. जब रेलवे में नौकरी लगी तब तक तो ये सपना था. सन 2016 में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में जब जनरल मैनेजर के रूप पोस्टिंग हुई उससे करीब 25 साल पहले से ही बात हो रही थी कि कोई मॉडर्न ट्रेन इम्पोर्ट होनी चाहिए या बननी चाहिए. लेकिन विचाराधीन बात थी. सुधांशु ने इस स्वप्न को साकार करनेको सोचा. फिर जब मौका मिला और अच्छी टीम मिली तो ये सपना पूरा हुआ और भारत को वंदे भारत ट्रेन मिली.

वास्तव में सन 2015-16 में भारत में स्पेनिश ट्रेन टैल्गो का ट्रायल हुआ था. जिसके 10 से 12 डब्बों की कीमत करीब 200 करोड़ पड़ रही थी. भारत में इस ट्रेन को लाने की बात हो रही थी. लेकिन उस दौरान ही सन 2016 में वंदे भारत ट्रैन टैल्गो ट्रेन से भी आधी कीमत में अपनी खुद की स्वदेशी ट्रेन 18 हमारे इंजीनियरो ने बना ली.

भारतीय रेलवे ने सोचा था कि हम अपनी तकनीक से खुद एडवांस कोच बनाएंगे. उस वक्त केवल 2 ट्रेन का ही सैंक्शन मांगा था. साथ में हमारे कुशल इंजीनियरों ने कहा कि आप जितने में भी कोई नई एडवांस ट्रेन बाहर के देश से इम्पोर्ट करके लाएंगे हम उससे एक तिहाई या आधी कीमत पर इसे बनाएंगे.

और स्वपना साकार हुआ और सब कुछ भारत में बनाया गया. इसीलिए कम दाम में ये ट्रेन बन गई. अनुमान 100 करोड़ का था लेकिन इसे 98 करोड़ में तैयार कर लिया गया.

ट्रेन के शुरू होने के बाद में समय समय पर अपने दुर्घटनाग्रस्त होने की वजह से भी ये काफी चर्चा में आई है.

160 किलोमीटर पर चलाने के लिए ये ट्रेन डिज़ाइन की गई थी. 160 का ट्रैक हमारे पास बहुत कम है. इसमें से एक दिल्ली से आगरा का है. ट्रेन को इतनी स्पीड से चलाने के लिए जरूरी होता है कि रेलवे ट्रैक पर फेंसिंग रहे. ये नियम होता है इसके बगैर रेलवे कमिश्नर खुद ट्रेन चलाने की अनुमति नहीं देंते.

इसलिए ये ट्रेन बिना फेंसिंग वाली ट्रैक पर 130 की स्पीड से चलेगी या और कम स्पीड से चलाई जायेगी.

भारतीय रेल्वे पर हर रोज 20 से 25 केस गाय-भैंस या किस मवेशी के कटने के होते हैं. लेकिन इसके लिए

आमतौर पर हमारी ट्रेनों में लोकोमोटिव के आगे एक स्ट्रक्चर होता है जिसे काऊ कैचर कहा जाता है. जिससे कोई भी मवेशी आगे सामने आ जाती है तो इससे ज्यादा नुकसान नहीं होता है.

मगर वंदे भारत ट्रेन की स्पीड ज्यादा होनी थी अतः इसकी एयरोडायनामिक प्रोफाइलिंग करनी थी ताकि हवा का रेसिस्टेंट कम से कम हो. इसलिए वो कैचर नहीं लगा सकते थे. इसका उपाय

फेंसिंग होना जरुरी है.

सुधांशु मणि का कहना है कि कई कारणों से मैं एक लीडर के तौर पर तो लाइमलाइट में आया लेकिन मेरी कोर टीम कहीं न कहीं गायब हो गए. कुछ पेपर्स में उनका जिक्र हुआ भी लेकिन जितना सम्मान उन्हें मिलना चाहिए था शायद वो नहीं मिल पाया. इसीलिए सुधांशु मणि ने Train-18 नाम की एक किताब लिखी. जिसमे उन सभी का जिक्र किया है जिन्होंने इस वंदे भारत को बनाने में साथ दिया या जो इस पूरे सफर में उनके साथ रहे.

वन्दे भारत ट्रैन के प्रधान इंजीनियर सुधांशु मणि का कहना है कि हमें 5 स्टार रेल्वे स्टेशन बनाने पर ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए, हमें केवल फंक्शनल स्टेशन चाहिए.

एक वंदे भारत ट्रेन कितने में बनती है :

इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, चेन्नई के महा प्रबंधक के अनुसार एक वंदे भारत ट्रेन को बनाने में तकरीबन 110 से 120 करोड़ रुपये तक की लागत आती है. 16 कोच वाले इस इंजनलेस सेमी हाई स्पीड ट्रेन को बनाने में 120 करोड़ रुपये तक की लागत आती है.

वंदे भारत ट्रैन की खासियत :

ट्रेन में ऑटोमेटिक स्लाइट डोर लगे हुए हैं और हर गेटके बाहर ऑटोमेटिक फुट रेस्ट भी है जो स्टेशन आनेपर बाहर निकलता है. इस ट्रैन की सीटें मुसाफिर की सुविधा के लिए रीक्लाइनिंग है. वहीं हर सीट के नीचे चार्जिंग प्वाइंट्स भी दिए गए हैं.

ट्रेन में पैसेंजर्स के एंटरटेनमेंट का भी पूरा ध्यान रखा गया है. इसके अंदर 32 इंच की टीवी स्क्रीन भी लगी हुई है.

वंदे भारत ट्रेन में पैसेंजर्स की सेफ्टी का पूरा ध्यान रखा गया है. इसमें फायर सेंसर, GPS और कैमरे की सुविधा भी मिलती है. किसी भी अनचाहे खतरे से बचाने के लिए वंदे भारत ट्रेन में रेलवे सुरक्षा कवच नाम का सेफ्टी फीचर भी लगाया गया है, जो इसे किसी दूसरे ट्रेन की टक्कर से बचाता है.

वंदे भारत ट्रेन एक्सप्रेस की स्पीड 160 किलो मीटर प्रति घंटा है. इस

मेंइंटेलिजेंट ब्रेकिंग सिस्टम लगा है, जो कम समय में भी ट्रेन को रोकने में मदद करता है. दिव्यांग पैसेंजर का पूरा ध्यान रखते हुए सीट हैंडल्स पर ब्रेल लिपि में भी सीट नंबर लिखा गया है. व दिव्यांग फ्रेंडली बॉयो टॉयलेट भी लगे हुए हैं.

एशिया की प्रथम महिला लोको मोटिव पायलट सुरेखा यादव हैं. उनको मुंबई-पुणे-सोलापुर रूट पर वंदे भारत एक्सप्रेस चलाने का अवसर मिला था.

यादव ने चलाई वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रैन सोलापुर से समय से रवाना हुई और 5 मिनट पहले सीएसएमटी पहुंच गई. हालांकि चलाने से पहले एशिया की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा ने पूरी जानकारी ली थी. और फिर ट्रेन को चलाने के लिए आगे बढ़ी थी.

उल्लेखनीय है कि सतारा की रहने वाली सुरेखा यादव ने 1989 के दौरान सहायक चालक के रूप में कैरियर की शुरुआत की थी. 1996 में मालगाड़ी चलाने का मौका मिला. इसके बाद उन्होंने कई गाड़ियों का संचालन किया.

सन 2017 में मध्य रेलवे का माटुंगा स्टेशन ऐसा पहला स्टेशन बना जिसका प्रबंधन केवल महिला कर्मचारियों द्वारा किया जाता है. रेलवे अधिकारियोंके

अनुसार देश में करीब 1,500 महिला लोकोमोटिव पायलट हैं.

ये थी वन्दे भारत ट्रैन की खास बातें. आपको जरूर पसंद आयी होंगी.

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