इच्छापूर्ति मूर्ति ” लालबाग का राजा. “

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लालबाग के राजा की जानकारी हमें हासिल करना हो तो हमें इसके प्रारंभ की कथा जाननी होंगी.

सन 1932 की बात है. मुंबई उस समय बॉम्बे के नाम से प्रचलित था. तब बाँम्बे अंग्रेजो के लिए खास था. उस समय बॉम्बे अंग्रेजो के लिए व्यापार का खास मुख्य स्थान हुआ करता था. उस वक्त देश की राजधानी दिल्ली होते हुए भी बॉम्बे का विशेष महत्त्व था.

बाँम्बे शहर के पश्चिम में अरब सागर होनेकी वजह से ब्रिटिशरोकों व्यापार उद्योग के यातायात में काफ़ी सुविधा होती थी. ब्रिटीश काल में उस समय बाँम्बे में अनेक नवनिर्मित उद्योग का व्यवसाय शुरु हुए. जिसमे बड़े बड़े कारखाने शामिल थे.

हर जगह पर नये उद्योग व्यवसाय कारखाने शुरु होनेसे बाँम्बे शहर का पुर्ण स्वरूप बदल गया था. इसी समय एक नया उद्योग टेक्सटाईल मिल का भी प्रारंभ हुआ था. उस समय लालबाग परल भागोंमें भी अनेक कापड मील का निर्माण हुआ. लोग रोजी-रोटी के लिए यहां आने लगे. कपड़ा मिल में काम करने वाले लालबाग परल में रहने लगे.

इसीलिए यहां पर चाली का नव निर्माण बढ़ने लगा. लोगोंको रहने की जगह कम पड़ने लगी. अतः तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने लालबाग परल स्थित ” पेरू” चाल व वहांकी मार्किट हटाकर उस जगह निजी कारखाने का निर्माण करने का निश्चय किया. इससे लालबाग परल मार्किट में मच्छी बिक्री करने वाले कोली लोगों को मच्छी बिक्री के लिए जगह का बड़ा प्रश्न निर्माण हुआ.

उस समय लोकमान्य टिलक ने प्रारंभ किया सार्वजनिक गणेशोत्सव कार्यक्रम पुणे के साथ बॉम्बे में भी शुरु हुआ था. और बॉम्बे में भी सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना होने लगी. लोग संगठित हुए. ऐसी परिस्थिति में लालबाग परल के मच्छी विक्री करने वाले कोली लोगोंने गणेश जी से मन्नत मांगी की हमारी मच्ची विक्री की जगह का प्रश्न हल करो, हमारे हक की जगह हमें मिले.

लालबाग के स्थानीय कोली मच्छी विक्रेता द्वारा इच्छापुर्ती के लिए मांगी गई ये पहली ” मन्नत ” थी.

मन्नत के बाद नयी जगह की शोध शुरु हुईं. उनको यश पुरा मिला. अनेक व्यापारी ओने मदत करनेका आश्वासन दिया. एक सालमे ही उनको सफलता मिली. और लालबाग परल मार्किट में मच्छी विक्री करने वाले विक्रेता ओको हक्क की जगह मिली.

गणपति की कृपा से यह चमत्कार होनेकी वजह से वहीपर एक गणपती बाप्पा की मुर्ती स्थापित की. स्थापना के दिन से ही मन्नत का गणपति के रूपमें प्रसिद्धि मिली. बाहर गांव के लोग भी मन्नत मागने आने लगे, और मन्नत का गणपति के रूपमें पहचान बनी. मानी गई प्रत्येक मन्नत नक्की पुरी होती है ऐसी श्रद्धा भक्तों में निर्माण हुईं.

यह गणपति लालबाग मार्किट में स्थापित होने की वजह से लालबाग का राजा के रूपमें प्रसिद्ध हुआ. शुरुआत से ही गणपति की मूर्ति विविध स्वरूप में साकार की जाती है. यहा श्री गणपति कभी मच्छीमारी करने वाले कोली लोगों की नाव में बैठा हुआ. कभी भगवान श्री कृष्ण की तरह रथ चलाते हुए जैसी मूर्ति का निर्माण किया जाता है.

लालबाग के राजा गणपति की मूर्ति और आजुबाजु की रोशनाई लोगों को खास आकर्षित करती है. यहांपर लाखों भाविक भक्त दूर दूर से दर्शन को आते है, करीब एक लाख भक्त रोज इसके दर्शन करते है.

श्री मूर्ति बनानेकी शुरुआत बाप्पा के चरण से होती है. उस दिन चरण पूजन का कार्यक्रम भी होता है. गणेश उत्सव के दौरान बडी सेलिब्रिटी, नेते, अभिनेते, राजकीय कार्यकर्ते लालबाग के गणपति के दर्शन को आते है.

मंदिर में आने वाले सेलिब्रिटी व नेता की सुरक्षा के लिए विशेष पुलिस पथक और सुरक्षा रक्षक तैनात किये जाते है. यहां दस दिन प्रचंड भीड़ होती है. मन्नत की लाइनमें लाखो भाविक दस से बारा घंटे नंबर लगाकर खड़े रहते है.

आपको जानकर हैरानी होगी की लालबाग के राजा का डिजाइन पेटेंट है. कांबली फैमिली ने लालबाग के राजा के डिजाइनको पेटेंट करवा रखा है. उसकी नक़ल कोई नहीं कर सकता.

कांबली आर्ट्स द्वारा बनाई गई मूर्ति इस पंडाल की सबसे खूबसूरत व अहम चीज है. करीब 8 दशक से भी ज्यादा समय से कांबली परिवार लालबाग के राजा की मूर्तिकला बना रहा है. इस मूर्ति को बनाने वाले रत्नाकर कांबली के पिता भी एक मूर्तिकार थे, जिनकी मूर्तियों का प्रदर्शन पूरे राज्यमें होता था.

” लालबाग का राजा ” मुंबई का सबसे अधिक लोकप्रिय सार्वजनिक गणेश मंडल है. यह लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना सन 1934 में चिंचपोकली के

कोली समुदाय के मछुआरों द्वारा हुई थी. यह मुंबई के लालबाग, परेल इलाके में स्थित हैं. यह गणेश मंडल अपने दस दिवसीय उत्सव के दौरान लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

मान्यता के अनुसार लालबाग के राजा से जो मन्नत मांगी जाती है, वह पूरी जरूर होती है. इसलिए इन्हें मन्नत का राजा भी कहा जाता है.

ईस जगह पर मिट्टियाँ भरकर इसे समतल इसलिए बनाया गया था ताकी यहाँ पर शहर बसाया जा सके. लेकिन इस स्थान को जिस मिट्टी से समतल किया गया था उसका रंग लाल था जिस कारण से इसका नाम लालवाड़ी पड़ गया था. और यहां पर कटहल, सुपारी और आम के पौधे लगाए गए थे जो की आगे चलकर बाग़ बन गया.

सन 1799 में चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में टीपू की मृत्यु के बाद, लालबाग, जिसे तब तक सुल्तान के बगीचे के रूप में जाना जाता था, ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आ गया. 1856 में इसका वर्तमान नाम “लालबाग” पड़ा.

गणेश मंडल की स्थापना लालबाग मार्केट को उसके मौजूदा स्थान पर ही बनाने की मन्नत के कारण हुई थी. पेरू चॉल का बाज़ार सन 1932 में बंद कर दिया गया था. इसलिए, मछुआरे और विक्रेता जो खुले स्थान पर बैठते थे, वो गणेश की मन्नत मानते थे.

कुंवरजी जेठाभाई शाह, श्यामराव विष्णु बोधे, वीबी कोरगाँवकर, रामचन्द्र तावटे, नखावा कोकम मामा, यूए राव भाऊ साहेब शिंदे और स्थानीय लोगोंकी सहायता से, मकान मालिक राजाबाई तैय्यबली बाजार के लिए एक भूखंड समर्पित करने के लिए सहमत हुए. बाद मछुआरों और व्यापारियों ने कृतज्ञता पूर्वक ता : 12 सितंबर 1934 को गणेश प्रतिमा की स्थापना की.

मूर्ति को मछुआरों की पारंपरिक शैली में तैयार किया गया था. माना जाता है कि यह मूर्ति यहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती है. मंडल का गठन उस दौर में हुआ था जब स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था.

प्रत्येक वर्ष केवल दर्शन पाने के लिए यहां करीब 5 कि.मी. की लंबी कतार लगती है, लालबाग के गणेश मूर्ति का विसर्जन गिरगांव चौपाटी में दसवें दिन किया जाता है.

सन 2023 में लालबाग चा राजा की पहली झलक दिखाई गई. इस बार लालबाग का राजा की श्री छत्रपति शिवाजी महाराज जी का राज्याभिषेक रखी गई है. इसी को ध्यान में रखते हुए पंडाला सजाया गया है. बप्पा को गुलाबी रंग के वस्त्र पहनाए हैं. ये लाल बागचा राजा पंडाल का 90वां साल है.

लालबागचा मंडल” में आई हुई दान रकम से कई चैरिटी भी चलती है. इस मंडल की अपनी कई अस्पताल और एम्बुलेंस हैं जहां गरीबों का निःशुल्क इलाज किया जाता है. प्राकृतिक आपदाओं में राहत कोष के लिए भी “लालबाग गणेश मंडल” आर्थिक रूप से मदद करता है. 1959 में कस्तूरबा फंड, और सन 1947 में महात्मा गांधी मेमोरियल फंड और बिहार बाढ़ राहत कोष के लिए दान दिया गया था.

गणेश उत्सव में मुंबई के लालबाग का राजा को देश का सबसे प्रसिद्ध पंडाल माना जाता है. यहां देश ही नहीं विदेश से भी लोग लालबाग के राजा के दर्शन के लिए आते हैं. इन्हें मन्नत के राजा भी कहा जाता है.

सन 1934 से लेकर अब तक हर साल स्थापित होने वाली गणेशी जी की प्रतिमा कांबली परिवार के ही मूर्तिकार बना रहे हैं. क्योंकि वे स्थापना के समय से इससे जुड़े हुए हैं. मूर्ति निर्माण का काम पीढ़ि दर पीढ़ि आगे बढ़ रहा है. गणपति की इस प्रतिमा की एक और खासियत यह है कि इसे बाहर से नहीं खऱीदा जाता, बल्कि प्रतिमा वहीं बनाई जाती हैं जहां पर वो स्थापित होती है.

यहां चढ़ावा भी खूब आता है. पिछले साल में यहां नव करोड़ का चढ़ावा आया था.

मुखदर्शन और नवस चरण-स्पर्श दर्शन :

👉 मुख दर्शन :

यदि आप कुछ मीटर की दूरी से मूर्ति के त्वरित दर्शन से सहमत हैं तो इस कतार में शामिल हों. प्रतीक्षा समय 6-7 घंटे तक लग सकता है.

👉 नवस या चरण-स्पर्श दर्शन :

लालबागचा राजा गणपति को नवसाचा गणपति, या “इच्छा-पूर्ति करने वाले गणपति” के रूप में जाना जाता है. यह कतार उन भक्तों के लिए है जो आशीर्वाद के लिए मूर्ति के पैर छूना चाहते हैं. इस लाइन में आमतौर पर 12 से 15 घंटे तक लगता है.

लालबाग के राजा के पवित्र उत्सव के अनंत चतुर्दशी (गणेश विसर्जन) के अंतिम दिन मूर्ति को गिरगांव चौपाटी पर विसर्जन के लिए ले जाया जाता है. 7 किलोमीटर लंबी इस जुलूस में लाखों लोग शामिल होते हैं, पूरे रास्ते में लोगों के झुंड के कारण लगभग बीस घंटे तक चलना पड़ता हैं. उसके बाद गिरगांव चौपाटी पर अरब सागर में विसर्जित कर दिया जाता है.

लालबागचा राजा तक पहुंचने के लिए मुंबई पश्चिम रेल्वे से लोअर परेल स्टेशन उतरकर पंडाल तक जा सकते है. मध्य रेल्वे से आने वाले भाविक भक्त करी रोड स्टेशन से आ सकते है.

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