माता दुर्गा का प्रथम स्वरूप ” शैलपुत्री.”| Shail Putri

Mata shailputri

प्रत्येक वर्ष में छह माह के अंतराल पर दो नवरात्रि आती हैं. अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होने वाली नवरात्रिको शारदीय नवरात्रि कहा जाता है.

नवरात्रि के नव दिनों में मां दुर्गा के जिन नव रूपों का पूजन किया जाता है, उनमें पहला (1) शैलपुत्री, दूसरा (2) ब्रह्मचारिणी, तीसरा (3) चंद्रघंटा, चौथा (4) कूष्मांडा, पांचवां (5) स्कंदमाता, छठा (6) कात्यायनी, सातवां (7) कालरात्रि, आठवां (😎 महागौरी और नौवां (9) सिद्धिदात्री का पूजन कीया जाता है.

इस साल 2023 की शारदीय नवरात्रि ता : 15 अक्टूबर से ता : 24 अक्टूबर तक मनाई जायेगी. इसमे उपरोक्त नव देवियोंकी पूजा, अर्चना, आराधना की जायेगी. ता : 24 अक्टूबर 2023 के दिन विजयदशमी (दशहरा) का त्यौहार मनाया जायेगा.

मां दुर्गा की पहली स्वरूपा शैलपुत्री :

शैलराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के पूजा के साथ ही दुर्गा पूजा आरम्भ हो जाती है. नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश स्थापना के साथ इनकी ही पूजा और उपासना की जाती है. माता रानी “शैलपुत्री” का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प रहता है. नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी योग साधना प्रारंभ होती है.

पौराणिक कथानुसार मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के घर कन्या रूप में उत्पन्न हुई थी. उस समय माता का नाम सती था और इनका विवाह भगवान् शंकर से हुआ था. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आरम्भ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु भगवान शिव को आमंत्रण नहीं किया. अपने मां और बहनों से मिलने को आतुर मां सती बिना निमंत्रण के ही जब पिता के घर पहुंची तो उन्हें वहां अपने और भोलेनाथ के प्रति तिरस्कार से भरा भाव मिला.

इसके बाद इस अपमान से अत्यंत दुखी होकर सती ने उसी समय वहां यज्ञ की अग्नि में कूदकर स्वयं के प्राण त्याग दिए. जैसे ही भगवान भोलेनाथ को इस बात की जानकारी हुई तो वे भी बहुत दुखी हो गए. इसके बाद दुखी भगवान शिव क्रोध से आगबबूला होते हुए राजा दक्ष के यहां गए और यज्ञ को ध्वस्त कर दिया. अगले जन्म में शैलराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया. शैलराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण मां दुर्गा के इस प्रथम स्वरुप को शैल पुत्री कहा जाता है.

” शैलपुत्री ” देवी का प्रसिद्ध मंदिर

बनारस में वरुणा नदी के तट पर स्थित है. यह माता शैलपुत्री का एक प्राचीन मंदिर है. जो वाराणसी सिटी रेलवे स्टेशन से 4 किमी दूर अलीपुरा कस्बे में है. यह काशी का प्राचीन शैलपुत्री मंदिर अन्य शक्तिपीठों से काफी अलग है. यहां मंदिर के गर्भगृह में मां शैलपुत्री के साथ शैलराज शिवलिंग भी विराजमान हैं. पूरे भारत में यह एकमात्र भगवती मंदिर है, जहां देवी मां शिवलिंग के ऊपर विराजमान हैं.

नवरात्रि के दिनों में माता के दरबार में भक्तों की काफी भीड़ देखी जाती है. कहा जाता है कि नवरात्रि में पहले दिन माता के दर्शन करने से भक्तों को विवाह संबंधी परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है और भक्तों की मन्नतें भी पूरी होती है.

अस्वीकार :

यहापर दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया है.

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