शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन माता दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है. ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है. माता माँ का ये रूप अपने भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला होता है. इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है.
पौराणिक शास्त्रों में ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानि तप का आचरण करने वाली बताया गया है. देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है. इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं.
माता ब्रह्मचारिणी को पीला और सफेद रंग पसंद है. इस दिन आप अपने घर के मंदिर को गेंदे के फूल से सजा सकते हैं. पीले या सफेद रंग के वस्त्र पहन कर पूजा करने से मां ब्रह्मचारिणी शीघ्र प्रसन्न होती हैं. हिंदू धर्म पर पीले रंग को शिक्षा और ज्ञान का रंग माना गया है.
माता ब्रह्मचारिणी देवी ने पूर्वजन्म में हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी. इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से
पहचाना जाता है.
एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर जड़ी बूटी
पर निर्वाह किया. कुछ दिनों कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे. तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं. इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए.
कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं. पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया. माता माँ ब्रह्मचारिणी का कठिन तपस्या के कारण शरीर एकदम क्षीण हो गया.
देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा, हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की. यह तपस्चर्या तुम्हीं से ही संभव थी. तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे. अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ. जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं.
माता ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है. दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है.
अस्वीकार :
यहापर दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया है.