नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा अर्चना की जाती है. ऐसा कहा जाता है कि इनकी आराधना करने से साधक को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की शीघ्र प्राप्ति हो जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि कात्यायन के आश्रम में देवी कात्यायनी प्रकट हुई थी.
कहा जाता है कि देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए देवी कात्यायनी ने जन्म लिया था. महर्षि कात्यायन ने इन्हें अपनी पुत्री माना था और इसी वजह से इनका नाम कात्यायनी पड़ा है. देवी कात्यायनी की उपासना करने से मनुष्य अपनी सभी इंद्रियों को वश में करने की शक्ति प्राप्त करता है.
माता माँ की महिमा न्यारी है. प्रभु
कृष्ण ने कंस का वध करने से पहले यमुना किनारे माता कात्यायनी को कुलदेवी मानकर बालू से मां की प्रतिमा बनाई थी. उस प्रतिमा की पूजा करने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध किया था.
शास्त्रों में माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है. इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है. षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहते हैं. छठी माता जी की पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है.
कहा जाता है कि महर्षि कात्यायन ने भगवती जगदम्बा की कई वर्षों तक कठिन तपस्या की थी , जिससे प्रसन्न होकर जगदम्बा ने कात्यायन ऋषि की इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लेकर महिषासुर का वध किया था. कात्यायन ऋषिको विश्वामित्र वंशीय कहा गया है. स्कंदपुराण के नागर खंड में कात्यायन को याज्ञवल्क्य का पुत्र बताया गया है. उन्होंने ही ” श्रौतसूत्र”, “गृह्यसूत्र” आदि की रचना की थी.
भगवान राम और श्रीकृष्ण ने युद्ध के पूर्व माता कात्यायिनी की पूजा करने उनसे विजयश्री का आशीर्वाद प्राप्त किया था. अर्जुन ने श्रीकृष्ण की सलाह पर ही महाभारत के युद्ध के पूर्व माता कात्यायिनी की पूजा की थी.
श्री कात्यायनी शक्ति पीठ भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है. महर्षि वेदव्यास जी ने कात्यायनी शक्तिपीठ के बारे में श्रीमद भागवत में वर्णन किया है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जिस स्थान पर कात्यायनी शक्ति पीठ है वहां माता सती के केश गिरे थे. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण को अपने वर रूप में प्राप्त करने के लिए राधारानी ने भी कात्यायनी माता की पूजा की थी.
माता कात्यायिनी देवी की कथा :
महिषासुर रम्भासुर का पुत्र था जो अत्यंत शक्तिशाली था. उसने कठिन तप कि. ब्रह्माजी प्रकट हुए. वरदान दिया कि मृत्यु को छोड़कर कुछ भी मांगों. महिषासुर ने बहुत सोचकर कहा कि ठीक है प्रभू मगर देवता, असुर और मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो. किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें. ब्रह्माजी तथास्तु कहकर चले गए. वर प्राप्त करने के बाद उसने तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा कर त्रिलोकाधिपति बन गया.
तब भगवान श्री विष्णु ने सभी देवताओं के साथ मिलकर सबकी आदि कारण भगवती महाशक्ति की आराधना की. सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य तेज निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुईं. हिमवान ने भगवती की सवारी के लिए सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किए. भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया.
भगवती दुर्गा हिमालय पर पहुंचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की. महिषासुर के असुरों के साथ उनका भयंकर युद्ध हुआ. एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनानी मारे गए. आखिरकार विवश होकर “महिषासुर” को भी देवी के साथ युद्ध करना पड़ा. महिषासुर ने नाना प्रकार के मायिक रूप बनाकर देवी को छल से मारने का प्रयास किया लेकिन अंत में भगवती ने अपने चक्र से महिषासुर का मस्तक काट दिया. कहा जाता हैं कि देवी माता कात्यायनी को ही सभी देवों ने एक एक हथियार दिया था और उन्हीं दिव्य हथियारों से युक्त होकर देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध किया था.
कात्यायनी देवी मंदिर मथुरा :
यह मंदिर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश, जिला मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है. यह मंदिर माता कात्यायनी जी को समर्पित है तथा इस मंदिर का नाम प्राचीन सिद्धपीठ में आता है. यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है. इस मंदिर में शक्ति को देवी कात्यायनी के रूप पूजा जाता है और भैरव को भूतेश के रूप में पूजा जाता है.
भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि श्रीधाम वृन्दावन में माँ भगवती देवी के केश गिरे थे, इसका प्रमाण का विवरण सभी शास्त्रों में मिलता है.