नवरात्रि उत्सव का आठवां दिन जिसे अष्टमी कहा जाता है. देवी माता महागौरी को समर्पित है. नाम महागौरी दो शब्दों से बना है एक शब्द है “महा” जिसका अर्थ है “महान” और ” गौरी ” शब्द से तात्पर्य है “ग़ौर वर्ण” अर्थात वह देवी जो महान है जिसका वर्ण ग़ौर है.
नवरात्रि के आठवें दिन का नवरात्रि पूजा मे विशेष महत्व है. इस दिन नौ कन्याओ को माँ नवदुर्गा के नौ स्वरूपों के रूप मे पूजा जाता है. कन्याओ को आदरपूर्वक बिठाकर बड़ी श्रद्धा से उनके पैर धोए जाते हैं. और फिर उनके माथे पर तिलक लगाया जाता है. उन्हें हलवा, खीर व काला चना आदि का भोग लगाया जाता है. और उन्हें प्रेम पूर्वक उपहार दिया जाता है. और मातारानी के जयकारे लगाए जाते है.
माता महागौरी को अनेक नामो से पुकारा जाता है. जिनमे से कुछ प्रमुख नामो को माता के स्वरूप से जोड़ा गया है. माताने सफ़ेद वस्त्र धारण किए हुए है इसलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा के नाम से भी जाना जाता है. माता के चार हाथ है तो उन्हें चतुर्भुजी और माता बैल पर सवार है इसके लिए उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है.
उनके तीन नेत्र है और उनके चार हाथ है जिनमे से एक हाथ वरद मुद्रा और एक हाथ अभय मुद्रा में हैं एक भुजा मे त्रिशूल और एक भुजा मे डमरू लिए हुए है. इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर है, इसलिए इन्हें महागौरी कहा जाता है. इनके गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से की गई है और इनकी आयु आठ वर्ष की मानी हुई है. इनके समस्त वस्त्र और आभूषण आदि भी श्वेत हैं. इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है. मां वृषभवाहिनी व शांतिस्वरूपा हैं.
माता महागौरी सफेद वस्त्रों को धारण किए हुए, बैल की सवारी करती है. मां महागौरी को नारियल या उससे बनी मिठाई का भोग लगाना शुभ माना जाता है. मां महागौरी को भोग लगाने के लिए नारियल और चीनी की मिठाई बनाई जाती है. आप नारियल की बर्फी या नारियल का लड्डू बना सकते हैं और उसे मां को अर्पित कर सकते हैं.
माता महागौरी की कथा :
जब मां की कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए तो उन्होंने मां को पत्नी के रूप में स्वीकार किया और इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर अत्यंत कांतिमय बना दिया, जिस कारण इनका काला रंग गौर वर्ण जैसा हो गया. इसके बाद मां पार्वती के इस स्वरूप को महागौरी के नाम से जाना गया.
आठवें दिन की पूजा देवी के मूल भाव को दर्शाता है. देवीभगवत् पुराण में बताया गया है कि देवी मां के 9 रूप और 10 महाविघाएं सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं लेकिन भगवान शिव के साथ उनके अर्धांगिनी के रूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती हैं. माँ महागौरी की पूजा मात्र से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और वह व्यक्ति अक्षय पुण्य का अधिकारी हो जाता है.
देवीभागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती अपनी तपस्या के दौरान केवल कंदमूल फल और सिर्फ पत्तों का आहार करती थीं. बाद में माता केवल वायु पीकर ही तप करना आरंभ कर दिया था. तपस्या से माता पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ है और इससे उनका नाम महागौरी पड़ा.