” नारियल ” का नाम सुनते ही हमें नारियर पानी याद आता है. नारियल का पानी स्वस्थ हो या बीमार, सबके लिये पोष्टिक आहार है. वैसे, नारियल के झाड़ कोंकण के किनारे, केरल , पश्चिम बंगाल, उड़ीसा मे अधिक पाए जाते है. गोवा सहित कोंकण मे नारियल को मीठा तेल की जगह सब्जी मे भी इस्तमाल किया जाता है. नारियल तेल को लोग सर पर भी लगाते है. जो सिर को ठंडक देता है.
मोदक से लेकर ” खोपरा पाक “, झणझणीत खोपरा लसुन चटनी , खोपरा की मिठाई, खोपरे के लड्डू , खोपरे की बर्फी , खोपरे की गुझिया आदि विविध स्वादिष्ट आइटम नारियल से बनाई जाती है.
नारियल का झाड़ एक ऐसा वृक्ष है की उसकी कोई भी चीज निक्कमी नहीं जाती . नारियल का वृक्ष हमें पोष्टिक पानी देता है. गावोमे नारियल की तनी का उपयोग नाली के उपर रखकर पुल की तरह चलने के लिये किया जाता है. नारियल की डाली पट्टी का उपयोग झोपड़ी का छप्पर बनाने एवं गावों मे खेती के लिये छत्री बनाकर उपयोग किया जाता है. बारिस मे काम करने छाता जैसा साधन बनाके बरसते बारिस मे किसान काम करते है. नारियर नमकीन जगह मे समुद्र किनारे ज्यादा उगता है.
नारियल एक अच्छा एंटी बायोटिक औषधि है. इसमे कोलोस्ट्रोल के अलावा प्रोटीन , खनिज , फाइबर , एमीनो एसिड , विटामिन , कार्बोहायड्रेड आदि पोषक तत्व पाए जाते है. नारियल रक्त विकार नाशक , बलवर्धक, वात पित्तनाशक एवं मूत्राशय शोधक है. बीमार व्यक्ति को नारियल का सेवन करने कहां जाता है.
पहले पुराने ज़माने मे नारियल का खोपरा निकाल कर डोहरी बचती है उसमे विविध आइटम बनाई जाती थी. जैसे लकड़े का डंडा लगाकर डाल सब्जी का चमचा , पानी पीनेके के लिये वाटी , तेल रखने के लिये डिब्बा , और विविध गृह उपयोगी कलात्मक चीजे भी लोग बनाते थे.
वैसे नारियल को श्री फल भी कहा जाता है. सनातन धर्म के लोग उसे पवित्र फल मानते है. और हर पूजा पाठ आदि कोई भी विधी मे इसका उपयोग किया जाता है.
पुराने ज़माने मे जिंदा इंसान की बलि दी जाती थी. उसके बाद पशुओ की बलि देने का कुरिवाज चला. जीवदया प्रेमी मानवता वादी लोगोंने नारियल को बलि का प्रतिक मानकर बलि देने के लिए नारियल का उपयोग किया जाने लगा.
आज भी कोई धार्मिक, सांस्कृतिक या सामाजिक शुभ कार्य करने से पहिले नारियल फोडा जाता है.
नारियल पूर्णिमा के दिन नारियल का महत्व बढ़ जाता है. श्रद्धालु लोग नदी, तालाब, समुद्र या खाड़ी मे उस दिन नारियल को अर्पण करते है. कुछ लोग आपस मे नारियल फोडने का खेल खेलते है. जिसका फुट गया समजो वो हार गया. फूटा हुआ नारियल जितने वाले को दे दीया जाता था.
नारियल पूर्णिमा वैसे हिंदू ओका पवित्र धार्मिक त्यौहार माना जाता है. फ़िरभी कोली समाज इसे नये साल की तरह मनाता आया है. आजके दिन कोली समाज बेंड बाजा के साथ नाचते गाते समुद्र किनारे जाते है और सोनेका नारियल बनाकर समुद्र को अर्पण करते है. और अपनी रोजी, रोटी, धंधे के लिए दुआ मांगते है.
बच्चे, बुजुर्ग , पुरुष, महिला नये वस्त्र परिधान करके आनंद उत्सव मनाते है. नारियल पूर्णिमा के दिन से सरकार का समुद्र मे मच्छी मारी करने का प्रतिबन्ध उठ जाता है.अतः दूसरे दिन से कोली समाज समुद्र मे मच्छी पकड़ने जाते है. इसलिए नारियल पूर्णिमा को नये साल का नया दिन के रूप मे भी मनाया जाता है.
एक आँख का नारियल कोई भाग्य शाली को ही मिलता है. उसे एकाक्षी नारियल भी कहते है. एकाक्षी नारियल को माता लक्ष्मी जी का रूप माना जाता है. कभी हजारों मे एक मिल जाता है. मगर जिसको मिल जाता है , वो इंसान धनवान बन जाता है. एकाक्षी नारियल को फोड़ना अशुभ माना जाता है.
कालीकट का नारियल स्वादिष्ट होता है. आजकल तो बोनशाय पौधो का जमाना आ गया है. कलम किये गये आठ दस फुट के नारियल झाड़ मे सेकड़ो फल आते है. नारियल की अनेकों जाती आती है. गोवा करी नारियल का पानी गुलाब जल की तरह मीठा और स्वादिष्ट लगता है.
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शिव सर्जन प्रस्तुति.