अनादिकाल से हिमालय पर्वत को भारतीय संतों की तपोभूमि कहा गया है. प्राचीन समय से ऋषि-मुनि से लेकर आधुनिक काल के अनेक संत योगी हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में कठोर तपस्या करते है. सिद्ध पुरुष जिस स्थान पर बैठकर योग साधना करते हैं वह स्थान सिद्धभूमि बन जाता है.
भारत के राज्य जम्मू और कश्मीर, सियाचिन, उत्तराखंड, हिमाचल, असम, सिक्किम, अरुणाचल तक हिमालय का ही विस्तार कहा जाता है. इसके अलावा तिब्बत, नेपाल, उत्तरी अफगानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान और भूटान देश भी हिमालय के ही भाग हैं.
आज मुजे बात करनी है हिमालय के सिद्धाश्रम की जो हिमालय पर्वत में सिद्धाश्रम नामक एक आश्रम है जहाँ सिद्ध योगी और साधु रहते हैं. तिब्बती लोग इसे ही शम्भल की रहस्यमय भूमि के रूप में पूजा करते है. कहा जाता है कि सिद्धाश्रम, तिब्बत क्षेत्र में कैलाश पर्वत के निकट स्थित है.
इस आध्यात्मिक अलौकिक आश्रम का उल्लेख हमारे चारों वेदों के अलावा अनेकों प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है. इसके एक ओर कैलाश मानसरोवर है, दूसरी ओर ब्रह्म सरोवर है और तीसरी ओर विष्णु तीर्थ है. कहा जाता है कि स्वयं विश्वकर्मा ने ब्रह्मादि के कहने पर इस आश्रम की रचना की थी.
मान्यता के अनुसार राम, कृष्ण, बुद्ध, शंकराचार्य माँ आनन्दमयी और निखिल गुरु देव आदि दैवी विभूतियाँ सिद्धाश्रम में सशरीर विद्यमान हैं. माना
जाता है, कि सिद्धाश्रम हिमालय में एक गुप्त भूमि में स्थित है, जहां महान योगी, साधु और ऋषि रहते हैं.
सिद्धाश्रम को आध्यात्मिक चेतना, दिव्यता के केंद्र और महान ऋषियों की वैराग्य भूमि का आधार माना जाता है. सिद्धाश्रम मानव और सभी दृश्य और अदृश्य प्राणियों के लिए समान रूप से दुर्लभ है. इस प्रकार, सिद्धाश्रम को एक बहुत ही दुर्लभ दिव्य स्थान माना जाता है. लेकिन साधना प्रक्रिया के माध्यम से कठिन साधना और साधना पथ पर चलकर इस दुर्लभ और पवित्र स्थान में प्रवेश करने के लिए दिव्य शक्ति प्राप्त करना संभव होता है.
बताया जाता है, सिद्ध योगी और संन्यासी हजारों वर्षों से इस स्थान पर ध्यान कर रहे हैं. विभिन्न धर्मों में वर्णित कई रहस्यमय स्थानों की तरह इस जगह को नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता है, केवल ध्यान, सिद्धि व आध्यात्मिक जागरूकता के मार्ग से हम इस स्थान का अनुभव कर सकते हैं. श्री स्वामी विशुद्धानंद परमहंस ने सबसे पहले सार्वजनिक रूप से इस स्थान की बात की थी. उन्हें बचपन में कुछ समय के लिए वहाँ ले जाया गया और उन्होंने लंबे समय तक ज्ञानगंज आश्रम में अपनी साधना की थी.
सिद्धाश्रम को शांग्री-ला, शंभाला और सिद्धआश्रम के नाम से भी जाना जाता है. यहां केवल सिद्ध महात्माओं को स्थान मिलता है. इस जगह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां रहने वाले हर किसी का भाग्य पहले से ही निश्चित होता है और यहां रहने वाला हर कोई अमर है. यहां किसी की मृत्यु नहीं होती.
मान्यता है कि महर्षि वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, कणाद, पुलस्त्य, महायोगी, गोरखनाथ, श्रीमद शंकराचार्य, भीष्म, कृपाचार्य को भौतिक रूप में वहाँ पर भटकते देखा जा सकता है. कई सिद्ध योगी, योगिनियां, अप्सरा (एंजल), संत इस स्थान पर ध्यान करते पाए जाते हैं. ये एक ऐसी रहस्य जगह है जहाँ किसी की भी मृत्यु नही होती.
ज्ञानगंज सिद्धाश्रम जाने के लिए आधुनिक मैपिंग सिस्टम की मदद लेकर भी इसे ढूंढ़ा नहीं जा सकता. यहां तक कि सैटेलाइट में भी इसे नहीं देखा जा सकता है. कई लोग तो ये भी कहते हैं कि इस घाटी का संबंध सीधे दूसरे लोक से है. कहा जाता है कि चीन की सेना ने कई बार इस जगह को तलाशने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम रहे. इस सिद्धाश्रम का जिक्र महाभारत, वाल्मिकी रामायण और वेदों में भी है. अंग्रेज लेखक जेम्स हिल्टन ने भी अपने उपन्यास “लास्ट होराइजन” में इस जगह का जिक्र किया है.
आधुनिक युग में सिद्धाश्रमका उल्लेख सबसे पहले पंडित गोपीनाथ कविराज ने किया है. इसका उल्लेश्री स्वामी नदानंद जी की एक पुस्तक ऑटोबायोग्राफी ऑफ एन अवधूत में भी मिलता है.
हिमालय में आज भी हजारों ऐसे स्थान हैं जिनको देवी-देवताओं और तपस्वियों के रहने का स्थान माना जाता है. हिमालय में जैन, बौद्ध और हिन्दू संतों के कई प्राचीन मठ और गुफाएं हैं. मान्यता है कि गुफाओं में आज भी कई ऐसे तपस्वी हैं, जो हजारों वर्षों से कठोर तपस्या कर रहे हैं. इस संबंध में हिन्दुओं के दसनामी अखाड़े, नाथ संप्रदाय के सिद्धि योगियों के इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है. उनके इतिहास में आज भी यह दर्ज है कि हिमालय में कौन-सा मठ कहां पर है और कितनी गुफाओं में कितने संत विराजमान हैं.
अब आप समझ गये होंगे कि कुंभ मेले मे नागा साधु कहांसे आते है, और कहा चले जाते है.