भारत मे ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं जहां देवोंके देव महादेव अपने विभिन्न रूपों में विराजमान हैं. आज मुजे बात करनी है, शिवजी का निवास कहे जाने वाली प्राचीन और प्रसिद्ध शिवखोड़ी गुफा की, जो ” शिवालिक” पर्वत की श्रृंखलाओं में विध्यमान है.
यह जम्मू-कश्मीर राज्य के जम्मू से कुछ दूरी पर है. इसके रहस्य की बात ये है कि, इसी गुफा का दूसरी बाजूका छोर अमरनाथ गुफा में खुलता है. यही कारण है कि शिवखोड़ी शिव भक्तों के लिए खास बात है.
शिवखोड़ी नयनरम्य प्रकृति की गोद में बसी हुई, एक ऐसी दुर्लभ जगह है, जहां आदिकाल से भगवान शिवजी की महिमा बनी हुई है.
हिंदू भाविक भक्तों की मान्यता के अनुसार शिवखोड़ी गुफ़ा में समस्त 33 कोटि देवी-देवताए निवास करते हैं. यह स्थान जम्मू से करीब 140 कि.मी. एवं कटरा से 85 कि.मी. दूर उधमपुर ज़िले में स्थित है. रनसू (रणसू) से शिवखोड़ी की गुफ़ा करीब 3.5 कि.मी. दूरी है. यहां से पैदल व खच्चर के द्वारा बाबा भोलेनाथ की यात्रा प्रारंभ हो जाती है.
रनसू से थोड़ा आगे चलने पर लोहे का एक छोटा सा पुल आता है, जो नदी पर बना हुआ है. मान्यता के अनुसार इस नदी को दूध गंगा कहते हैं. इससे जुड़ी किंवदंति के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन इस नदी का जल स्वतः ही दूध के समान सफ़ेद हो जाता है.
इससे आगे एक कुंड आता है, जिसे अंजनी कुंड के नाम से जाना जाता हैं. इसी कुंड के पास नीलकंठ की सवारी “नंदी” यानि “बैल” के पैरों के निशान हैं. मान्यता है कि नंदी इस कुंड में पानी पीने आता था.
हर-हर महादेव, बम-बम भोले, भोले तेरा रूप निराला शिवखोड़ी में डेरा डाला आदि जैसे जयकारों के साथ भक्त जन काफ़िले में आगे बढ़ते हैं. करीब एक किलोमीटर आगे चलने पर “लक्ष्मी-गणेश” का मंदिर आता है. जिसके अंदर छोटी सी एक गुफ़ा में प्राचीन लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति है. इसके अलावा नीचे से बहती हुई दूध गंगा की ध्वनि मंदिर की शोभा में और चार चांद लगाती है.
पवित्र गुफा शिव खोड़ी की लंबाई 150 मीटर बताई जाती है. इस गुफा के अंदर भगवान शिव शंकर का 4 फीट ऊंचा शिवलिंग है. इस शिवलिंग के ऊपर प्राकृतिक तौर पर पवित्र जल की धारा सदैव गिरती रहती है. शिवलिंग के साथ ही इस गुफा में पिण्डियां विराजित हैं. इन पिण्डियों को शिव, माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय और गणपति के रूप में पूजा जाता है.
” शिवखोड़ी ” की गुफ़ा का निर्माण स्वंय भगवान शिव द्वारा किया गया है. दरअसल भगवान शिव ने इस गुफा का निर्माण भस्मासुर को सबक सिखाने के लिए किया था.
पौराणिक कथा के अनुसार जब भस्मासुर ने घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया तो भगवान शिव ने उसे मन चाहा वर मांगने को कहा. फिर क्या भस्मासुर ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि वह जिस किसी के भी सिर पर हाथ रख दे वो भस्म हो जाए.
भगवान शिव ने तथास्तु कहकर भस्मासुर को ये वरदान दे दिया और इसके बाद भस्मासुर सबसे पहले शिव जी को ही भस्म करने के लिए निकल पडे. इसके बाद भगवान शिवजी और भस्मासुर के बीच में भीषण युद्ध हुआ और जिस स्थान पर ये युद्ध हुआ उसे रणसु या फिर रनसु के नाम से जाना जाता है. क्योंकि इस जगह पर युद्ध हुआ था इसलिए इस जगह का नाम रणसु पड़ा.
इस युद्ध के दौरान भस्मासुर अपनी हार मानने को तैयार ही नहीं था और भगवान शिवजी उसे मार भी नहीं सकते थे, क्योंकि उसे अभय होने का वरदान खुद भगवान शिव द्वारा ही दिया गया था. ऐसे में भस्मासुर को सबक सिखाने के लिए भगवान शिव ने एक ऐसी जगह ढूढी जहां भस्मासुर भगवान शिव को न ढूढ सके.
तब भगवान शिव ने पहाड़ों को चीरकर एक गुफा का निर्माण किया व उसके अंदर छिप गए. ये वही गुफा है जिसे आज हम ” शिवखोड़ी ” गुफा के नाम से जानते हैं. इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी रुप धारण किया और भस्मासुर को रिझाने लगे, मोहिनी रुप में भस्मासुर इस कदर डूबा कि उसने नृत्य करते करते अपने ही सिर पर अपना हाथ रख दिया और वो भस्म हो गया. भस्मासुर के भस्म होने के बाद भगवान शिव भी गुफा से बाहर आ गए.
कहा जाता है कि भगवान शिव द्वारा बनाई गई इस गुफा में मौजूद शिवलिंग और पिंडियों से आगे तक कोई नहीं जा पाता अगर कोई व्यक्ति शिवलिंग के दर्शन कर गुफा में आगे जाता है तो वो
वहां से कभी कोई वापिस नहीं लौट सका. वहीं ये गुफा शिवलिंग से आगे दो रस्तों में बट जाती है. ऐसा कहा जाता है कि इसका एक छोर अमरनाथ गुफा में जाकर निकलता है, वहीं गुफा के दूसरे छोर के बारे में आज तक किसी को भी कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है. मगर उसे स्वर्ग का द्वार कहते है.