इतिहास वीर पुरुषों की कहानियां लिखता है. छत्रपति शिवाजी महाराज हों, पेशवा बाजीराव हों या फिर तानाजी मालुसरे सबकी गौरव गाथा इतिहास में अंकित है. मराठा हों, मेवाड़ हो या फिर दक्षिणका कोई राजवंश हो उन वीरों की कहानियों से हमारे गीत, कविताएं, कहानियों की किताबें भरी पड़ी हुईं है. इनपर नाटक बने है और कई फिल्मे बनी है.
मगर हमें खेद है कि इन किताबों में, हमारे गीतों में, फ़िल्मों में, नाटक में वीरांगनाओंको वो उच्च स्थान नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए था. भारत भूमि की रक्षाके लिए शूरवीर कई वीरांगनाओं ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है. पर इतिहास ने उनको हासिया में धकेल दिया है.
आज हम ऐसी ही एक बहादुर , शूरवीर वीरांगना की कहानी की चर्चा करेंगे जिसने मराठाओं की बागडोर तब संभाली जब ये दुश्मन के हाथों में जाने वाली थी. उस महान नारी ने सालों तक मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब से मराठा साम्राज्य को बचाए रखा, वो वीरांगना थीं रानी ताराबाई भोंसले.
ताराबाई का जन्म सन 1675 में श्री शिवाजी महाराज के मराठा सैन्य के प्रसिद्ध सर सेनापती हंबीरराव मोहिते की कन्या के रूपमें हुआ था. बचपन से उनको तलवारबाजी, धनुर्विद्या जैसे शस्त्र, घोडेस्वारी और राजनीति का उत्तम प्रशिक्षण दिया गया था.
ताराबाई भोसले छत्रपति राजाराम प्रथम की दूसरी पत्नी थी. (पहली पत्नी जानकीबाई थी ) वह मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की बहू थी. राजाराम प्रथम , छत्रपति शिवाजी महाराज के दूसरे बेटे थे. परंतु, ताराबाई जब 5 वर्ष की थी उस समय में शिवाजी महाराज का देहांत हो गया था.
ताराबाई भोसले का जन्म अप्रैल 1675 को महाराष्ट्र, भारत में हुआ था. उनके पिता श्री हंबीरराव मोहिते, मराठा साम्राज्य के मुख्य सेनापति थे जो श्री छत्रपति शिवाजी महाराज तथा छत्रपति संभाजी महाराज दोनों के शासनकाल के समय में सेनापति थे.
ताराबाई की एक बुआ सोयराबाई थी जिनका विवाह छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ हुआ था. उनकी बुआ का एक पुत्र था जिसका नाम राजाराम था. हंबीरराव ने अपनी पुत्री ताराबाई का विवाह शिवाजी महाराज के पुत्र राजाराम के साथ कर दिया जो उन्हीं का भांजा था. अर्थात मामा ने अपनी पुत्री का विवाह अपने भांजे के साथ कर दिया. ताराबाई व राजाराम भोसले के पुत्र का नाम शिवाजी द्वितीय था उनको राजाराम की मृत्यु के बाद मे मराठा साम्राज्य की राजगद्दी पर बिठाया गया था.
राजाराम द्वितीय को मुगलों ने बंदी बना लिया तथा मार्च 1700 में उसकी हत्या कर दी. अब ताराबाई विधवा हो गई थी. 1689 में मुगलों ने उनके ज्येष्ठ संभाजी महाराज को भी मार डाला था. उन दोनों की शहीदी के बाद, मराठा साम्राज्य की राजगद्दी सुनी हो गई, तो ताराबाई ने अपने छोटे से बच्चे शिवाजी द्वितीय को मराठों का छत्रपति घोषित किया तथा उसे राजगद्दी पर बिठा दिया.
शिवाजी द्वितीय ने 1700 से लेकर सन 1707 तक मराठा साम्राज्य पर शासन किया था.
ताराबाई ने अपने पुत्र को राजगद्दी पर तो बिठा दिया था परंतु वह एक बच्चा था उसे पढ़ना लिखना तक नहीं आता था. तो अप्रत्यक्ष रूप मे शासन की जिम्मेदारी उन्हीं पर आ गई थी.
उधर औरंगजेब के आदेशों पर मुगल सेना मराठों के हर एक क्षेत्र पर क्रूरता से आक्रमण कर रही थी. जिसके बाद मराठों की इस लड़ाई का चार्ज ताराबाई ने अपने ऊपर ले लिया तथा मुगलों के साथ युद्ध किया.
सन 1705 में मराठा सेना ने नर्मदा नदी को पार करते हुए मालवा क्षेत्र पर चढ़ाई कर दी. सन 1706 में मुगल सेना ने ताराबाई को पकड़ लिया. परंतु वह 4 दिनों के अंदर ही वहां से निकल कर वापस महाराष्ट्र आ गई.
ताराबाई एक समझदार व बुद्धिमान स्त्री थी. वह एक मुगल सैनिक को रिश्वत देकर के वहां से बाहर निकलने में कामयाब हो गई थी. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने हाथ के कड़े दिए थे जिनकी अनुमानित कीमत 10 मिलियन रुपए से भी ज्यादा थी. सन 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो गई. जिसके बाद मुगलों की तरफ से मराठों के क्षेत्रों पर आक्रमण भी बंद हो गए.
ताराबाई भोंसले की मृत्यु 9 दिसंबर 1761 में महाराष्ट्र के सतारा के किले में हुई थी उन्होंने लगभग 85-86 वर्षों का जीवन जिया जिसमें कई उतार-चढ़ाव देखे. उन्होंने दुविधा के समय में मराठा साम्राज्य को अपने हाथों में ले करके उसे पतन से बचाया. पति राजाराम प्रथम की कम उम्र में ही मृत्यु हो जाने पर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.
उनके अंतिम जीवन में कुछ असामान्य घटना घटित हुई थी. उन्होंने राजाराम द्वितीय को पहले अपना पोता माना तथा बाद में उसे पहचानने से इंकार कर दिया. इस तरह की घटनाएं असमंजस में डाल देती हैं.
ताराबाई 1700 से लेकर 1707 तक मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बनके औरंगजेब को बराबर की टक्कर देती रही और उन्होंने सात साल तक अकेले दम पर मुगलों से टक्कर ली और मराठा साम्राज्य को बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.