गिद्ध एक ऐसा विशाल काय पक्षी है, जो आसमान मे सबसे उपर तक ऊँचे उडता है. ये पक्षी अन्य पक्षी ओकी तरह सीधे सीधे उपर नहीं उड़ता बल्कि उपर आकाश मे वर्तुल आकार मे चक्कर लगाते उपर उड़ते उड़ते आगे बढ़ता है. ताकि वो अपने खुराक को आसानीसे ढूंढ शके ! यह पक्षी समूह मे रहना पसंद करता है.
सामान्य तौर पर गिद्ध 37, 000 फीट की ऊंचाई तक उपर उड़ सकता है. अन्य पक्षी इतनी उपर ऑक्सीजन की कमी की वजह से मर जाते है. इसका मतलब यह हुआ की वो एवरेस्ट पर्वत की चोटी से भी उपर उड़ सकता है.
गिद्ध को गंदा मुर्दे खानेका शौख है. मरे हुये पशु, गाय , भैंस , घोड़ा , गधा, ऊंट उनका प्रिय स्वादिस्ट भोजन है. एक सर्वे के अनुसार गिद्धों की संख्या मे 95% की कमी आयी है. मान लो यहीं सिलसिला चालू रहा तो कुछ सालोमे गिद्धों की संख्या लुप्त हो जाने की संभावना हुई है.
पारसी धर्म रिवाज़ के मुताबिक शव को ना तो दफ़न किया जाता है ना तो अग्नि संस्कार दिया जाता है. खास बनाये कब्रस्तान मे शव को छोड़ दिया जाता है जहा गीद्ध पक्षी शव को अपना भोजन बनाकर नोच नोचकर खा जाते है. शेष अस्थि बचती है उसे दफ़न किया जाता है. इस प्रकिर्या को ” दखमें नाशीनी ” कहा जाता है. कब्रस्तान को ये लोग ” दखमा ” कहते है. या ” टावर ऑफ़ साइलेन्स ” कहते है.
गिद्धों की कम होती जा रही संख्या से पारसी लोग अति चिंतित – परेशान हो रहे है. यदि ये हालात रहे तो पारसी समुदाय को लाश को जलाना पड़ेगा या फिर दफ़नाने की नौबत आएंगी.
वैसे देखा जाय तो गिद्ध प्रजातिओ के 22 प्रकार पाए जाते है. जिसमे 15 प्रकार के पुराने विश्व गिद्ध तथा 7 प्रकार के न्यू वर्ल्ड गिद्ध ( अमेरिका ) शामिल है. ईसवी सन 1990 के पहले दशक मे करीब 40 लाख गिद्ध भारत मे थे. हम जानते हैं कि गिद्ध स्वच्छता के काम में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. जो लगभग 12 लाख टन मांस को वार्षिक दर से समाप्त करते है.
सन 2017 तक यह संख्या घटकर 19000 की हो गईं ! पिछले दस दशकों में डाइक्लोफेनेक नामक दवाई ने भारत से गिद्धों की कुल 99% आबादी को नष्ट कर दीया है. गिद्ध बड़े पशुओं के शवों को खाते हैं और इसलिए पर्यावरण को साफ करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है.
आज भारत में गिद्धों की संख्या तेजी से कम होती जा रही है ये एक गंभीर समस्या है. देश में गिद्धों की आबादी 40 लाख (1990 में) से कम होकर 40 हजार (2016) से भी कम हो गई है. सन 2012 मे आंध्र प्रदेश राज्य से गिद्ध समाप्त हो चुके थे, और हैदराबाद के नेहरू जैविक उद्यान में इस प्रजाति के सिर्फ पांच पक्षी जीवित है.
गिद्ध का कुल वजन 5.5 किलो से 6.5 किलोग्राम के बीच होता है, लंबाई 75 -93 सेमी और पंखों का फैलाव 5 से 7 फीट का होता है. गिद्ध 37, 000 फीट की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं और एक बार में 100 किलोमीटर से भी अधिक की दूरी बहुत आसानी से पार कर सकते हैं. उनकी सूँघनेकी और देखनेकी शक्ति बहोत तेज होती है. ये करीब एक किलोमीटर ऊपर से मरे हुये जानवर की गंध सूंघ लेते है.
मादा गिद्ध साल मे दो अंडे देती है. ये अंडे आकार मे मुर्गी के अंडे से थोड़े बड़े होते है. नर और मादा दोनों अपने इन अंडो की रक्षा करता है. गिद्ध का बच्चा 6 माह तक अपने घोसले मे ही रहता है. गिद्ध 5 साल की आयु मे प्रजनन करता है. जब तक बच्चा उडने के काबिल नहीं होता, तब तक छोटे बच्चे का देखभाल नर और मादा दोनों करते है.
गिद्ध की आयु 30 से 35 साल तक होती है. ये पक्षी 9.60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से उड़ते है. ये हवाकी दिशा मे उड़ते है, जिससे उनकी शक्ति की बचत होती है गिद्ध बीना पंख फैलाये लम्बे समय तक उड़ सकते है. गिद्ध पक्षी अंटार्कटिक और ऑस्ट्रेलिया मे नहीं पाए जाते है.
गिद्ध का वर्णन भारत के पौराणिक महाकाव्य रामायण में किया गया है जहां रावण की चंगुल से सीता को बचाने के दौरान गिद्धों के राजा जटायु ने अपनी जान गंवा दी थी.
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शिव सर्जन प्रस्तुति.