धूनी का मतलब होता है कि किसी जगह पर जम कर बैठ जाना, उठने का नाम नहीं लेना या किसी वस्तू को बंद करके धुएँ या सूगंध की परत जमाना, ईश्वर की याद में लीन होना, ज्ञान ध्यान में लीन होना, एकांतवासी होना. ऐसा माना जाता है कि धूनी के पास बैठने से ” व्यक्ति की तरंगें शुद्ध होती हैं ” और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है.
सभी साधक साधुओं की आराधना और तपस्या के तरीके अलग-अलग और कठोर होते हैं. भक्ति का ऐसा ही एक तरीका है धुनी रमाना. धुनी रमाने की क्रिया में साधु कठोर तप करता है और खुद के शरीर को तपाता है. ये क्रिया अलग-अलग तरह के हठयोगों में से एक है. धुनी रमाने की एक पूरी प्रक्रिया है और अलग-अलग चरणों में इसे किया जाता है.
धूनी में क्या क्या चीजें होनी चाहिए इसमें मतभेद है. पद्यपुराण के अनुसार कपूर, कुष्ठ, अगर, चंदन, गुग्गुल, केसर, सुगंधबाला तेजपत्ता, जायफल व खस आदि दस चीजें होनी चाहिएँ. सारांश यह कि साल और सलई का गोंद, अगर मैनसिल, देवदार, पद्याख, मोचरस, मोथा, जटामासी इत्यादि सुगंधित द्रव्य धूप देने के काम में आते हैं.
धुनी रमाने की क्रिया मे शरीर को तपाता है. आमतौर पर एक साधु को धुनी रमाने के सभी चरण पूरे करने में 18 साल से भी अधिक समय लगता है. जब धुनी रमाने के सभी चरण पूरे होते हैं, तब ही साधु का तप पूरा होता है.
धुनी रमाने की क्रिया और उसके चरण :
धुनी रमाने के लिए साधु एक स्थान पर बैठकर सबसे पहले अपने चारों ओर कंडे या उपलों का घेरा बनाता है. इसके बाद जलते हुए कंडों को घेरे में रखे हुए कंडों पर रखता है, जिससे घेरे के सभी कंडे जलने लगते हैं. जलते हुए कंडों के कारण भयंकर धुआं होता है और कंडों की गर्मी भी उस साधु को सहन करनी पड़ती है. इसी कंडों की धुनी में साधु अपने इष्ट देव के मंत्रों का जप करता है.
धुनी रमाने का पहला चरण :
धुनी रमाने की प्रक्रिया का पहला चरण है पंच धुनी. इसके अंतर्गत साधु पांच जगह कंडे रखकर गोल घेरा बनाता है, उन्हें जलाता है. इस घेरे में बैठकर साधु तप करता है.
धुनी रमाने का दूसरा चरण :
दूसरे चरण को सप्त धुनी कहा जाता है. इस चरण में साधु 7 जगह कंडे रखकर घेरा बनाता है. इन सात जलते कंडों के बीच बैठकर तप करता है.
धुनी रमाने का तीसरा चरण :
इस चरण को कहते हैं द्वादश धुनी. इसमें साधु 12 जगह जलते हुए कंडे रखकर गोल घेरे के बीच में बैठकर तप करता है.
धुनी रमाने का चौथा चरण :
इस चरण में साधु को 84 जगह कंडे रखकर घेरा बनाना पड़ता है. इसे चौरासी धुनी कहा जाता है. इस चरण में कंडों का घेरा बनाने के लिए साथी साधु की मदद लेनी होती है.
धुनी रमाने का पांचवां चरण :
धुनी रमाने के इस चरण को कोट धुनी कहा जाता है. इसमें साधु कंडों का घेरा बनाते समय जलते कंडों के बीच दूरी नहीं रखी जाती है. कंडे एकदम पास पास रहते हैं, जिससे घेरे में बैठे साधु को असहनीय तपन और धुएं का सामना करते हुए तप करना होता है.
धुनी रमाने का अंतिम चरण :
छठें और अंतिर चरण को कोटखोपड़ धुनी कहा जाता है. ये धुनी रमाने की क्रिया का सबसे कठिन चरण है. इसमें साधु को अपने सिर पर मिट्टी के पात्र में जलते हुए कंडे रखकर तप करना होता है.
घर से नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकालकर सकारात्मक उर्जा बढ़ाने के लिए, पितृदोष, ग्रह दोष, वास्तु दोष और गृह कलह से मुक्ति हेतु धूप देते हैं. इससे घर के सभी सदस्य निरोगी, सुखी और शांतचित्त रहते हैं.
माना जाता है कि हफ्ते में एक बार किसी भी दिन घर में कंडे जलाकर गुग्गल की धूनी देने से गृहकलह शांत होता है. गुग्गल सुगंधित होने के साथ ही दिमाग के रोगों के लिए लाभदायक होता है. पीली सरसों, गुग्गल, लोबान, गौघृत को मिलाकर सूर्यास्त के समय उपले (कंडे) जलाकर उस पर ये सारी सामग्री डाल दें. नकारात्मकता दूर हो जाएगी.
खासतौर से माता दुर्गा की पूजा में लोबान का उपयोग जरूर किया जाता है. कहते हैं लोबान जलाने से किस्मत के द्वार खुल जाते हैं. इसके अलावा लोबान जलाने से घर से हर तरह की नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं. वहीं लोबान का इस्तेमाल पूजा-पाठ के अलावा तंत्र मंत्र में भी किया जाता है.
पीली सरसों में गाय का घी और गुगुल डालकर उपले में रखकर धूनी दी जानी चाहिए. घर में कलह-क्लेश हो रहा हो तो ये उससे बचाव का बढ़िया उपाय है.
नीम के पत्तों की भी धूनी सेहत के लिहाज से बढ़िया है. खासकर मौसम बदलने पर नीम की धूनी खूब फायदेमंद रहती है. चंदन, इलायची और कपूर को मिलाकर इसकी धूनी भी दी जा सकती है. इसकी खुशबू से मन भी खुश रहता है और समृद्धि आती है.
कर्पूर :
कर्पूर जलाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है. शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं के समक्ष कर्पूर जलाने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है. जिस घर में नियमित रूप से कर्पूर जलाया जाता है, वहां देवदोष, पितृदोष या किसी भी प्रकार के ग्रह दोषों का असर नहीं होता है. कर्पूर जलाते रहने से घर का वास्तु दोष भी शांत रहता है.
वैज्ञानिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा बीमारी होने का भय भी नहीं रहता.
लोबान की धूप :
लोबान को सुलगते हुए कंडे या अंगारे पर रख कर जलाया जाता है. लोबान का इस्तेमाल अक्सर दर्गाह जैसी जगह पर होता है. लोबान को जलाने के नियम होते हैं. इसको जलाने से पारलौकिक शक्तियां आकर्षित होती है. अत: लोबान को घर में जलाने से पहले किसी विशेषज्ञ से पूछकर जलाएं.
धूप देने के लाभ :
धूप देने से मन, शरीर और घर में शांति की स्थापना होती है. इससे देवदोष, पितृदोष, वास्तुदोष, ग्रहदोष आदि मिट जाते हैं. इससे सभी तरह के रोग और शोक मिट जाते हैं. गृहकलह और आकस्मिक घटना-दुर्घटना नहीं होती. घर के भीतर व्याप्त सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलकर घर का वास्तुदोष मिट जाता है.
ग्रह-नक्षत्रों से होने वाले छिटपुट बुरे असर भी धूप देने से दूर हो जाते हैं. धूप देने से देवता और पितृ प्रसंन्न होते हैं जिनकी सहायता से जीवन के हर तरह के कष्ट मिट जाते हैं.