बीरबल का गुरु कौन था ?

एक दिन की बात है. बादशाह अकबर के उस्ताद पीर साहब मक्का से चलकर दिल्ली आए थे. रास्ता न जानने की वजह से उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. बादशाह ने उनका स्वागत किया. कुछ दिन ठहरकर पीर साहब मक्का लौट गए.

जब पीर साहब चले जानेके बाद अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा, कि बीरबल! क्या तुम्हारे भी कोई गुरू हैं, जैसे कि मेरे पीर साहब हैं? यदि हैं तो वे कहां रहते हैं, कभी आते-जाते भी हैं या नहीं?

इस पर बीरबल ने जवाब दिया कि जहांपनाह! मेरे भी गुरू हैं, लेकिन वह बाहर रहते हैं कहीं आते-जाते नहीं है. हाल ही मैंने सुना है कि मेरे गुरूदेव जी किसी को कुछ बताते भी नहीं है, और कभी किसी से एक पैसा भी नहीं लेते. रूपये-पैसे का उन्हें लोभ नहीं है.

बीरबल की बात सुनकर बीरबल के गुरू के प्रति अकबर बादशाह के मन में श्रद्धा उत्पन्न हुई और उन्होंने बीरबल से अपने गुरू से मिलवाने को कहा.

बीरबल अकबर से बातें करके लौट रहे थे तो उसने परिश्रम करके लकड़िया बेचने वाले एक बूढ़े को देखा.वह सुबह से शाम तक इधर-उधर भटका, लेकिन किसी ने भी उसे उचित मूल्य देकर वह लकड़ी नहीं खरीदा. लाचार होकर बूढ़ा लकड़हारा गठ्टर अपने धर वापस लिए जा रहा था.

पहले तो बीरबल ने उस लकड़ी बेचने वाले से लकड़ियों के उस गठ्टर का मूल्य पूछा, फिर उसे अपने घर ले गए और उससे बोले कि मालूम होता है कि तुम समय के कुच्रक में फसकर इस दीन अवस्था में पहुंचे हो.

बीरबल ने उसे अच्छे साफ-सुथरे कपडे और काली जटा इत्यादि से युक्त ब्राहाम्ण साधु बना दिया. उसके हाथ में रूद्राक्ष की माला दे दी. फिर एक बड़े मंदिर के पीछे मृगचर्म के आसन पर बैठाकर उससे बोला कि तुमसे मिलने बड़े-बड़े अमीर लोग आएंगे, पर उनसे तुम बिल्कुल मत बोलना.

तुम्हें कितनी ही बहुमूल्य वस्तुएं वे क्यों न दिखाएं, पर तुम उनकी तरफ आंख भी मत उठाना. तुमसे जो कुछ भी पूछें, उसका जवाब मत देना. बस अपने ध्यान में रहना और सिर्फ माला फेरते रहना. ध्यान रहे, यदि इसके अलावा तुमने कोई भी हरकत की तो तुम्हारी खैर नहीं, क्योंकि मैं तुम्हारी हर हरकतों को देखता रहूंगा.

गरीब बूढ़े लकड़हारे ने बीरबल की बातों को स्वीकार कर लिया. जब बीरबल को यकीन हो गया कि वह भलीभांति स्वांग कर सकता है, तब वह अकबर बादशाह के पास दरबार में गए. दरबार में उस समय सभी दरबारी उपस्थित थे.

बीरबल ने अकबर बादशाह को अपने गुरू के आने की शुभ सूचना दी और कहा कि पहले तो गुरूदेव ने दर्शन देने से इन्कार किया, पर मेरे खुशामद करने पर वह पधारे हैं, और मन्दिर के पिछले हिस्से में आसन जमाए हुए हैं. उन्होंने आप लोगों को दर्शन देना भी स्वीकार कर लिया है. लेकिन मुझे साथ आने को मना कर दिया है. यदि मैं हठ करके जाऊंगा तो हो सकता है, वह मुझे शाप दे दें. अतः आप और लोगों के साथ उनके दर्शन करने के लिए जा सकते हैं.

बीरबल को छोड़कर अकबर बादशाह के साथ सभी दरबारी गुरूदेव के दर्शन करने के लिए गए. अकबर बादशाह ने गुरूदेव के सामने जाकर सादर मस्तक झुकाया. फिर बैठकर उनसे पूछाकि गुरूजी! अपना निवास स्थान तथा शुभ नाम इस दास को भी बताने की कृपा करें.

अकबर बादशाह की बातें सुनी अनसुनी करके वह अपने ध्यान में ही रहे. अकबर बादशाह फिर बोले कि, भगवन! मैं सारे हिंदुस्तान का बादशाह हूं और आपकी प्रत्येक इच्छा पूर्ण करने में समर्थ हूं. आप कृपा करके एक बार मेरी ओर नजर उठाकर देख लें तो मैं आपको धन्य समझूंगा.

इस पर भी जब गुरूदेव ने ध्यान नहीं दिया तो अकबर बादशाह ने दस हजार रूपये मूल्य का कड़ा, जिसे वह स्वयं पहने हुए थे, हाथ से उतारकर गुरूदेव के चरणों में यह सोचकर रख दिया कि लालच में शायद आशीर्वाद देकर इस बहुमूल्य कड़े को स्वीकार कर लें. परंतु जब कुछ नतीजा न निकला तो निराश होकर अकबर बादशाह वहां से उठ खड़े हुए और बोले कि जो आदमी अतिथि के साथ ऐसा व्यवहार करे, उस कठोर से बातें करना भी मूर्खता है.

अकबर बादशाह को क्या पता था कि ऐसे मूर्ख से सामना होगा. उन्होंने वह कड़ा बीरबल के यहां भिजवा दिया, क्योंकि दान की वस्तु बादशाह के महल में कैसे आ सकती थी.

अगले दिन गुरूदेव का सारा हाल सुनाकर अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा कि , मूर्ख मिले तो क्या करना चाहिए. बीरबल बोले, उस समय चुप रहना ही अच्छा है. चतुर.बीरबल के इस जवाब से अकबर बादशाह की रही सही मर्यादा पर भी पानी पड़ गया. उनका विचार था कि ऐसी बात कहकर वह बीरबल के गुरू को मूर्ख साबित करेंगे, पर उल्टे खुद मूर्ख बने.

अकबर बादशाह को चुप देखकर बीरबल बोले कि जब मैंने पहले ही उनका स्वभाव आपको बता दिया था कि उन्हें रूपये-पैसे का लालच नहीं है, कभी किसी के दरवाजे पर वह नहीं जाते, और मेरे कहने पर बड़ी मुश्किल से तो वह मिलने को राजी हुए थे, फिर आपने उन्हें लालच क्यों दिया? आपने अपशब्द कहकर गुरू का अपमान किया है. आपको धन-दौलत का घमंड है, इसलिए वह आपसे नहीं बोले.

फिर क्या? बीरबल की बात सुनकर अकबर बहुत लज्जित हुए.

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