भारत-तिब्बत सीमा से लगे माणा गाँव की महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासत.

माणा गांव उत्तराखंड के चमोली जिले में है. यह गांव भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित है. इस गांव का नाम भगवान शिव के भक्त मणिभद्र देव के नाम पर रखा गया है. बताया जाता है कि इस गांव पर भगवान शिव की ऐसी महिमा है कि यहां जो आता है उसकी गरीबी दूर हो जाती है.

माणा गांव हिंदुओं के लिए एक धार्मिक स्थल है, क्योंकि यह पवित्र स्थान महाभारत के समय से है. ऐसा माना जाता है कि पांडव (महाकाव्य महाभारत के पांच पौराणिक पात्र) माण गांव से गुजरे थे जब उन्होंने स्वर्ग की अपनी अंतिम यात्रा शुरु की थी.

माणा गाँव की जनसंख्या करीब 400 के आसपास है और यहाँ केवल लगभग 60 घर हैं. ज्यादातर घर दो मंजिलों पर बने हुए हैं और इन्हें बनाने में लकड़ी का ज्यादा प्रयोग किया जाता है. छत पत्थर के पटालों की बनी है. इन घरों की खूबी ये है कि इस तरह के मकान भूकम्प के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं.

इन मकानों में ऊपर की मंज़िल में घर के लोग रहते हैं जबकि नीचे पशुओं को रखा जाता है. शराब के बाद चाय यहाँ के लोगों का प्रमुख पेय पदार्थ है. यहाँ चावल से शराब बनाई जाती है और यह घर-घर में बनाई जाती है. यहां हिमालय क्षेत्र और जनजाति होने के कारण सरकार ने इन्हें शराब बनाने की छूट दे रखी है.

करीब 10,200 फीट से अधिक की ऊंचाई पर बसा माणा में ( नवंबर के मध्य से ) बर्फबारी शुरू हो जाती है. सभी ग्रामीण गोपेश्वर और पांडुकेश्वर चले जाते हैं. अत्यधिक बर्फबारी और -17 डिग्री सेल्सियस से यहां तापमान निचा रहता है.

हिमालय में बद्रीनाथ से तीन किमी आगे यह गांव ऊँचाई पर बसा है. इसे भारत का अंतिम गाँव कहा जाता है. भारत-तिब्बत सीमा से लगे इस गाँव की सांस्कृतिक विरासत महत्त्वपूर्ण है, वही अपनी अनूठी परम्पराओं के लिए भी खास मशहूर है. यहां रडंपा जनजाति के लोग निवास करते हैं.

पहले बद्रीनाथ से कुछ ही दूर गुप्त गंगा और अलकनंदा के संगम पर स्थित इस गाँव के बारे में ज़्यदातर लोग बहुत कम जानते थे लेकिन अब सरकार ने यहाँ तक पक्की सड़क बना दी है. इससे यहाँ पर्यटक आसानी से आ जा सकते हैं, और इनकी संख्या भी पहले की तुलना में अब काफी बढ़ गई है. भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित इस गाँव के आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें व्यासगुफा, गणेशगुफा, सरस्वती मंदिर, भीम पुल, वसुधारा आदि मुख्य हैं.

माणा गांव क्षेत्र में कड़ाके की सर्दी पड़ती है. छह महीने तक यह क्षेत्र केवल बर्फ से ही ढका रहता है. यही कारण है कि यहां कि पर्वत चोटियां बिल्कुल खड़ी और खुश्क हैं. सर्दियां शुरु होने से पहले यहां रहने वाले ग्रामीण नीचे स्थित चमोली जिले के गाँवों में अपना बसेरा करते हैं.

हिमालय क्षेत्र में मिलने वाली अचूक जड़ी-बूटियों के लिए भी माणा गाँव बहुत प्रसिद्ध है. हालांकि यहाँ के बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है. यहाँ मिलने वाली कुछ उपयोगी जड़ी-बूटियों में ” बालछड़ी” है जो बालों में रूसी खतम करने और उन्हें स्वस्थ रखने के काम आती है. इसके अलावा “खोया” है जिसकी पत्तियों से सब्ज़ी बनाकर खाने से पेट बिल्कुल साफ हो जाता है.

यहां मिलने वाली ” पीपी ” की जड़ काफी प्रसिद्ध है, इसकी जड़ को पानी में उबाल कर पीने से भी पेट साफ होता है और कब्ज की शिकायत नहीं रहती. “पाखान जड़ी” भी अपने आप में बहुत कारगर है, इसको नमक और घी के साथ चाय बनाकर पीने से पथरी की समस्या कभी नहीं होती और पथरी के इलाज में भी ये बहुत कारगर साबित होती है. चावल की शराब यहाके लोगों का प्रिय पेय है.

कहा जाता है कि, जब श्री गणेश जी वेदों की रचना कर रहे थे उस वक्त सरस्वती नदी अपने पूरे वेग से बह रही थी और बहुत शोर कर रही थी. आज भी भीम पुल के पास यह नदी बहुत ज्यादा शोर करती है. गणेश जी ने सरस्वती जी से कहा कि शोर कम करें, मेरे कार्य में व्यवधान पड़ रहा है, लेकिन सरस्वती जी नहीं मानीं. इस बात से नाराज होकर गणेश जी ने इन्हें श्राप दिया कि आज के बाद इससे आगे तुम किसी को नहीं दिखोगी.

इस कारण सरस्वती नदी यहीं पर दिखती है, इससे कुछ दूरी पर यह नदी अलकनंदा में समाहित हो जाती है. नदी यहां से नीचे जाती तो दिखती है, लेकिन नदी का संगम कहीं नहीं दिखता. इस बारे में भी कई मिथक हैं, जिनमें से एक यह है कि महाबली भीम ने नाराज होकर गदा से भूमि पर प्रहार किया, जिससे यह नदी पाताल लोक चली गई.

साथ ही माणा गांव के बारे में कहा जाता है कि, जब पांडव स्वर्ग को जा रहे थे तो उन्होंने इस स्थान पर सरस्वती नदी से जानेके लिए रास्ता मांगा, लेकिन सरस्वती ने उनकी बात को अनसुना कर मार्ग नहीं दिया. अतः महाबली भीम ने दो बड़ी शिलाएं उठाकर इसके ऊपर रख दीं, जिससे इस पुल का निर्माण हुआ. पांडव तो आगे चले गए और आज तक यह पुल मौजूद है.

” माणा गांव ” में कई ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल हैं. गाँव से कुछ ऊपर चढ़ाई पर चढ़ें तो पहले नज़र आती है गणेशगुफा और उसके बाद व्यासगुफा.

गणेशगुफा और व्यास गुफा :

गाँव में मौजूद गणेश गुफ़ा के बारे में कहा जाता है कि यहीं बैठकर भगवान गणेश ने वेद व्यास के कहे अनुसार महाभारत को लिखा था.

कहा जाता है कि यहीं पर वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी और वेदों को चार भागों में बाँटा था. व्यास गुफा और गणेश गुफा यहाँ होने से इस पौराणिक कथा को सिद्ध करते हैं कि महाभारत और पुराणों का लेखन करते समय व्यासजी ने बोला और गणेशजी ने लिखा था. व्यास गुफा, गणेश गुफा से बड़ी है. गुफा में प्रवेश करते ही किसी की भी नज़र एक छोटी सी शिला पर पड़ती है. इस शिला पर प्राकृत भाषा में वेदों का अर्थ लिखा गया है.

भीम पुल :

इसके पास भीमपुल है. पांडव इसी मार्गसे होते हुए अलकापुरी गए थे. कहा जाता हैं कि अब भी कुछ लोग इस स्थान को स्वर्ग जाने का रास्ता मानकर चले जाते हैं. प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ साथ भीम पुल से एक रोचक लोक मान्यता भी जुड़ी हुई है. जब पांडव इस मार्ग से गुजरे थे, तब वहाँ दो पहाड़ियों के बीच गहरी खाई थी, जिसे पार करना आसान नहीं था. तब कुंतीपुत्र भीम ने एक भारी-भरकम चट्टान उठाकर फेंकी और खाई को पाटकर पुल के रूप में परिवर्तित कर दिया. बगल में स्थानीय लोगों ने भीम का मंदिर भी बना रखा है.

वसुधारा जल-प्रपात :

इसी रास्ते से आगे बढ़ें तो पाँच किमी. का पैदल सफर तय कर पर्यटक पहुँचते हैं वसुधारा. लगभग 400 फीट ऊँचाई से गिरता इस जल-प्रपात का शुद्ध पानी मोतियों की बौछार करता हुआ-सा प्रतीत होता है. ऐसा कहा जाता है कि इस पानी की बूँदें पापियों के तन पर नहीं पड़तीं. यह झरना इतना ऊँचा है कि पर्वत के मूल से पर्वत शिखर तक पूरा प्रपात एक नज़र में नहीं देखा जा सकता.

नीलकंठ चोटी :

समुद्र तल से 6957 फीट की ऊंचाई पर नीलकंठ चोटी विध्यमान है. इसे “गढ़वाली की रानी” भी कहते हैं. हर ट्रेकिंग के शौकीनों को यहां घूमने का प्लान तो जरूर बनाना चाहिए.

तप्त कुंड :

हिंदू धर्म के अनुसार, तप्त कुंड में अग्नि देवका वास हुआ करता था. माना जाता है कि इस कुंड में चिकित्सीय गुण है और यहां डुबकी लगाने से कई रोग बीमारियों का भी इलाज हो जाता है.

भारत-तिब्बत सीमा सुरक्षा बल बेस :

माणा में ही भारत-तिब्बत सीमा सुरक्षा बल का बेस है. कुछ समय पहले तक यहाँ के युवकों को सुरक्षा बल में भर्ती नहीं किया जाता था, लेकिन अब यहां के लोगों को भी सीमा सुरक्षा बल में भर्ती किया जा रहा है. कॉ ऑपरेटिव सोसायटी से उन्हें हर महीने राशन मिलता है. सभी के घरों में बिजली है और सभी को गैस कनेक्शन भी दिए गए हैं.

क्या है पौराणिक कथा :

पौराणिक कथा के अनुसार, यहां पर माणिक शाह नाम का एक व्यापारी रहता था, जो भगवान शिव का बड़ा भक्त था. बताया जाता है कि एक वह व्यापार के सिलसिले में कहीं जा रहा था, इसी दौरान लुटेरों ने उसका सिर काटकर हत्या कर दी. इसके बावजूद उसकी गर्दन शिव का जप कर रहा था. उसकी श्रद्धा देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उसके सिर पर वराह का सिर लगा दिया. भगवान शिव ने मणिक शाह को वरदान दिया कि जो भी माणा गांव आयेगा, उसकी गरीबी दूर हो जाएगी और वह अमीर हो जाएगा. तब से ही यहां पर मणिभद्र की पूजा होती है.

स्वर्गरोहिणी सीढ़ी :

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान गणेश ने महर्षि वेद व्यास के कहने पर इसी गांव में महाभारत की रचना की थी. यही नहीं, महर्षि वेद व्यास ने यहीं पर वेद और पुराण की भी रचना की थी. बताया जाता है कि महाभारत युद्ध खत्म होने पर पांडव इसी गांव से होकर स्वर्ग जाने वाली स्वर्गरोहिणी सीढ़ी तक गए थे.

स्वर्गारोहिणी और सतोपंथ :

इस पुल से आप पहाड़ों से छलछलाकर निकलती सरस्वती नदी को देख सकते हैं। माणा से स्वर्गारोहिणी और सतोपंथ जैसे अहम ट्रेक भी शुरू होते हैं.

उत्तराखंड में भारत का आखिरी गांव कहे जाने वाले माणा गांव को अब से देश का पहला गांव कहा जाता है.

अक्टूबर 2022 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी माणा के दौरे पर निकले थे. मोदी जी का कहना था कि माणा को देश का पहला गांव कहा जाना चाहिए और भारत की सीमा पर स्थित हर गांव को यही कहना चाहिए. इस बात को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री ने माणा को नई पहचान दी और BRO बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइज़ेशन ने इस गांव की शुरुआत में ” भारत का प्रथम गांव माणा” बोर्ड लगा दिया. मतलब अब से लोग इस गांव को आखिरी नहीं बल्कि भारत के पहले गांव के रूप में संबोधित करेंगे.

हम सब जानते है कि सरस्वती नदी लुप्त हो चुकी है, लेकिन आपको माणा गांव में आज भी इसके दर्शन हो जाएंगे. यहां गांव के आखरी छोर पर चट्टानों के बीच से एक झरना गिरता हुआ दिखाई देता है. इसका पानी कुछ दूर जाते ही अलकनंदा नदी में समा जाती है. इसे ही सरस्वती नदी का उद्गम स्थल माना जाता है.

कहा जाता है कि जब पांडव इस गांव से होते हुए स्वर्ग जा रहे थे तो उन्होंने यहां मौजूद सरस्वती नदी से रास्ता मांगा था, लेकिन सरस्वती ने उन्हें रास्ता नहीं दिया. इसके बाद महाबली भीम ने दो बड़ी चट्टानों को उठाकर नदी के ऊपर रखकर अपने लिए रास्ता बनाया और इस पुल को पार करके वे आगे बढ़े. इसी पुल को भीम पुल कहा जाता है.

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