फूट डालो राज करो का मंत्र देने वाला अंग्रेज़ कमांडर इन चीफ रोबर्ट क्लाइव. (भारत में अंग्रेज़ी शासन का संस्थापक)

कहा जाता है, कि भारत सोनेकी चिड़िया थी. यहीं कारणवश हमारे देश को लूटनेमे किसीने कसर नहीं छोडी.

मुगलों से लेकर, पुर्तगाल और अंग्रेज इसमे प्रमुख है. आज मुजे बात करनी है एक अंग्रेज क्लर्क की जो भारत को लूटकर यूरोप का सबसे अमीर इंसान बन गया.

कहा जाता हैं कि भारत को लूटने में सबसे बड़ा योगदान इसी का रहा. वो जो भी लूट करता था, उसमेसे ब्रिटिश सरकार के खजाने में भी जमा करता था और अपना खजाना भी भरता गया था. देखते ही देखते वह यूरोप का सबसे बड़ा अमीर आदमी बन गया. उस पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे.

उस लूटेरा आदमी का नाम था, “रॉबर्ट क्लाइव”, जो लूटमार करके एक दिन यूरोप का सबसे अमीर व्यक्ति बन गया. रॉबर्ट क्लाइव का जन्म ता : 29 सितंबर 1725 के दिन हुआ था. जिसने भारत को लूटकर ब्र‍िट‍िश हुकूमत में अपनी खास जगह बनाई थी.

महज 18 साल की आयुमें क्लर्क के रूप में ब्रिटेन से वो नौजवान भारत आया. मद्रास बंदरगाह पर ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ नौकरी शुरू की. फिर अपने कौशल से सेना में दाखिल हुआ और दो बार बंगाल प्रांत का गवर्नर बना. फ्रांस से लड़ा, मुगलों से लड़ा, राजाओं से लड़ा और सबको काबू में करके अंग्रेज शासन में सबसे बड़े पद पर पहुंचा.

ईस्ट इंडिया कम्पनीने रॉबर्ट क्लाइव को सन 1757 में बंगाल का गवर्नर पद पर कायम किया. रॉबर्ट क्लाइब को भारत में अंग्रेज़ी शासन का संस्थापक माना जाता है. पहली बार वह ई. सन 1757 से 1760 और फिर दूसरी बार सन 1765 से 1767 तक बंगाल का गवर्नर रहा. हिन्दुस्तान से रोबर्ट क्लाइव सन 1767 में इंग्लैण्ड वापस चला गया, जहाँ ई.सन 1774 में उसने आत्महत्या कर ली.

कहा जाता हैं कि भारत को लूटने में सबसे बड़ा योगदान रोबर्ट का रहा. उस पर भ्रष्टाचारके कई आरोप भी लगे. जांच भी हुई. फिरभी ब्रिटिश अफसर उस पर भरोसा करते रहे. शुरू में उसने फ्रांसीसी सैनिकों के साथ लड़ाई की और उन्हें परास्त किया. कुछ सालों में लगातार जीत हासिल करते हुए क्लाइव का उत्साह इतना बढ़ चुका था कि उस ने साल 1757 में 50 हजार सैनिकों वाली सेना के सामने सिर्फ 32 सौ सैनिकों के साथ युद्ध में शामिल हुआ. इस लड़ाई को प्लासी युद्ध के नाम से जाना जाता हैं.

यह रोबर्ट के जीवन में बड़ा मोड़ साबित हुआ क्योंकि ब्रिटेन ने बंगाल पर अपना आधिपत्य इसी युद्ध के बाद ही जमाया था. देखते ही देखते वह ब्रिटिश हुकूमत का करीबी होता गया. भारत में अंग्रेजी सत्ता को मजबूती देने में उसका नाम हमेशा से आगे रहा.

समझौते के बाद जीती लड़ाई पलासी युद्ध में सिराजुदौला अपने सेनापति मीर जाफ़र की वजह से हार का सामना करना पड़ा. बाद में अंग्रेजों ने मीर जाफ़र को बंगाल का नवाब बना दिया. यह लड़ाई क्लाइव ने मीरजाफ़र से युद्ध में जाने से पूर्व किए गए एक समझौते के बाद जीती थी. युद्ध में मीर जाफ़र को अंग्रेजों की मदद करना था और उसके बदले उसे बंगाल की नवाबी मिलनी थी, जो बाद में मिली भी. अंग्रेज एक साथ दो फ्रंट पर जीते, प्लासी की लड़ाई भी और बंगाल पर राज करने का अधिकार भी क्योंकि मीर जाफ़र तो सिर्फ नाम का नवाब था.

असली हुकूमत अंग्रेजों के हाथ में थी. इसीलिए भारत में जब गद्दारी में कोई नाम लिया जाता है तो मीर जाफ़र की भूमिका अग्रणी बताई जाती है. अनेक युद्ध को जीतने के बाद उसके सामने ईस्ट इंडिया कंपनी के अंदर से भ्रष्टाचार और अराजकता को खत्म करने की चुनौती थी.

वह काफी हद तक कामयाब भी हुआ. उसे क्लाइव ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता था. वारेन हेस्टिंग्स के साथ मिलकर उसने राजनीतिक वर्चस्व भी हासिल करने में बड़ी भूमिका अदा की. सैन्य अफसर के रूप में करियर शुरू करने वाला क्लाइव मेजर जनरल के रूप में ब्रिटिश भारत के कमांडर इन चीफ के पद तक पहुंचा.

इस दौरान क्लाइव ने करीब डेढ़ दर्जन युद्धों में हिस्सा लिया. नेतृत्व किया. उसके सैन्य और राजनीतिक कौशल को देखते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने उसे बंगाल का गवर्नर बनाया.

👉 एक बार रॉबर्ट के किसी सीनियर ने पूछा कि भारत से कितना माल लूटकर ब्रिटिश सरकारका खजाना भरा. उसका जवाब था कि इतना तो बिल्कुल नहीं याद है कि लूट कितनी बार, कहां से और कुल कितनी की लेकिन आकलन कर सकता हूं. जहाज में एक बार में 70 हजार किलो माल आता है और मैंने नौ सौ जहाज भरकर सोना-चांदी और अन्य मंहगी वस्तुओं को लूटकर ब्रिटेन को दिया है. इससे यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता था ? और वो माल कहा गया. 👈

” फूट डालो और राज करो ” का सिद्धांत क्लाइव ने जो डाला, उसे आने वाले हर अंग्रेज अफसर ने फॉलो किया. साल 1767 में क्लाइव ने भारत छोड़ा तो फिर नहीं लौटा. इंग्लैंड में उस पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चला. हालांकि, वह बरी हुआ लेकिन तब तक अंदर ही अंदर टूट चुका था. क्लाइव की मौत आज भी रहस्य बनी हुई है.

कहीं खुदकुशी की खबर मिलती है तो कहीं स्वाभाविक मौत की. कम उम्र में इतनी बडी उपलब्धि हासिल करने के बावजूद मुकदमे की वजह से वह अंदर ही अंदर टूट चुका था और अंततः महज 49 साल की उम्र में दुनियाको अलविदा कह दिया

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