प्राचीन भाईंदर का इतिहास बड़ा दिलचस्प है. जबसे इस धरा का निर्माण हुआ तबसे भाईंदर का अस्तित्व कायम है. एक समय भाई बंदर नामसे प्रचलित यह क्षेत्र कालान्तर के बाद भाई(बं)दर भाईंदर के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ. एक समय यहां भाईंदर की खाड़ी से रेती निकालनेका व्यवसाय जोरोमें था. तब इसे रेतीबंदर के नामसे पहचाना जाता था. भाईंदर भूमि का इतिहास…..
*** देवगिरी यादव :
यह भूमि विविध शासन कर्ताओ के अधिकार में रही. सोशल मीडिया के अनुसार भाईंदर भूमि सन 1200 से लेकर 1290 के बिच देवगिरी यादव के अधिकार में रही. देवगिरि यादव (850 से 1334) भारत का एक राजवंश था जिसने अपने चरमोत्कर्ष काल में तुंगभद्रा से लेकर नर्मदा तक के भूभाग पर शासन किया जिसमें महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, और मध्य प्रदेश के कुछ भाग शामिल थे. उनकी राजधानी सिन्नर और बाद में देवगिरि हुई जो आज दौलताबाद के नाम से जानी जाती है.
*** म्हमूद बेगड़ा ऑफ गुजरात :
भाईंदर की भूमि सन 1459 से 1513 के बिच गुजरात के म्हमूद बेगड़ा के अधिकार में रही. सुल्तान महमूद बेगड़ा या महमूद शाह प्रथम ( 25 मई 1458 – 23 नवंबर 1511) गुजरात सल्तनत के सबसे प्रमुख सुल्तान थे.
कम उम्र में सिंहासन पर बैठे, उन्होंने पावागढ़ और जूनागढ़में किलेको कब्ज़ा कर लिया, जिससे उनका नाम बेग पड़ गया. उन्होंने चंपानेर को राजधानी के रूप में स्थापित किया. वह गुजरात के द्वारका में द्वारका के मंदिर को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार था , जो भगवान द्वारा पवित्र माने जाने वाले चार धामोंमें से एक है.
*** पुर्तगाल (सन-1526) वसई किला पुर्तगालियों द्वारा सन 1536 में बनाया था. यह किला 110 एकड़ में फैला है. उस समय भाईंदर पुर्तगाल की हकूमत तले था.
इसके बाद भाईंदर बहादूर शाह के कब्जे में रहा. फिर अँटीनियो गॅलवो के पास से मुगल होते हुए अब्दुल फझल (सन 1586) में गया. उसके बाद अरब पायरेट्स के पास (सन 1674) में गया.
ये एरिया सन 1675 में श्री छत्रपती शिवाजी महाराज जी के अधिकार में रहा. सन 1739 में ये नरवीर चिमाजी अप्पाके अधिकार में गया. आगे चलकर ये सन 1767 में डच के अधीन हुआ.
फिर सन 1774 में ब्रिटिश के अधीन हो गया. सन 1780 में गोद्दार्ड गुजरात के पास गया. उसके पास से सन 1783 में फिर मराठा ओके अधिकार में ले लिया.
और उसके बाद श्री यशवंतराव होळकर के पास सन 1802 में आया.
भारत में ब्रिटिश शासन कुल 190 साल (1757 से 1947) तक चला. उसके बाद आजादी से आज तक का इतिहास हम सबको पता है.
भाईंदर का पिछले 90 सालका इतिहास
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ई. सन 1931 में लोकमान्य तिलक भाईंदर आये, उन्होंने ग्रामवासियो का मार्गदर्शन किया और तभी से भाईंदर में पहलीबार सार्वजनिक गणेशोत्सव शुरु हुआ. ता : 7 मई 1938 के दिन बंबई (अब मुंबई) के पहले कोंग्रेसी प्रधानमंत्री श्री बालासाहिब गंगाधर ख़ैर साहब जब भाईंदर पधारे तो उनके स्वागत समारोह में श्री जे बी सी नरोना ने ग्रामपंचायत की स्थापना करने का निवेदन किया.
सन 1942 में भारत छोडो आंदोलन हुआ. तत्पश्चात भाईंदर गांव का विकास करने के लिए सरकार ने नोटिफ़ाय एरिया कमिटी की स्थापना की. तब सरकारी कर्मचारी ही उसके सदस्य थे. उनका कार्य संतोषजनक ना होनेकी वजह से जनता की मांग पर सरकार ने भाईंदर के लिए ” विलेज अप्लीफ्ट कमिटी ” की स्थापना की. उसके प्रथम चेयरमैन श्री जे बी सी नरोना थे.
इसके अलावा सदस्य के रूपमें श्री आनंदराव रकवी, श्री बाबूराव पवार, मुरझेलो, श्री आनंदराव पाटिल, श्री माधवराव तलवडेकर, व अन्य सरकारी अधिकारी मिलकर गांव का कार्य देखते थे. उसके बाद…..
सन 1942 में ही भाईंदर, गोड़देव, नवघर, बंदरवाड़ी ग्रुप ग्रामपंचायत की स्थापना हुईं और प्रथम सरपंच के रूपमें जे बी सी नरोना चुने गये.
1961 में भाईंदर ग्रुप ग्रामपंचायत से नवघर ग्रुप ग्रामपंचायत अलग हो गई. इसमे पूर्व के बंदरवाड़ी , नवघर, गोड़देव और खारीगांव का समावेश था. चुनाव जनतांत्रिक पद्धति से हुआ और भाईंदर पश्चिम के सरपंच पद पर श्री चंदूलाल छबीलदास शाह जी को भाईंदर ग्रुप पंचायत का सरपंच चुन लिया गया. सन 1962 में श्री चंदूलाल सेठ का निधन हो गया तो श्री कृष्णाराव गोविंदराव म्हात्रे को सरपंच चुना गया.
भाईंदर पूर्व में श्री गोपीनाथ आर. पाटिल, श्री तुलसीदास म्हात्रे, तथा स्व : मोरेश्वर नारायण पाटिल सन 1957 में नवघर ग्रुप ग्रामपंचायत के सरपंच पद पर रहे. उसके बाद परशुराम पाटिल नगर परिषद् की स्थापना ता : 12 जून 1985 तक सरपंच पद पर रहे.
भाईंदर पश्चिम सन 1972 से 75 तक श्री बंकटलाल हजारीमल गाडोदिया भाईंदर ग्राम पंचायत के सरपंच रहे. श्री चंदूलाल शाह सेठ के बाद उनके भतीजे श्री चंद्रकांत भाईदास शाह भी भाईंदर के सरपंच पद पर रहे. जो बीना विरोध चुने गए थे.
राईगांव, मुर्धा, मोरवा ग्रामपंचायत की स्थापना हुईं तो राई गांव के प्रसिद्ध समाजसेवी सदाशिव मुकुंद तेंदुलकर 6 साल तक सरपंच पद पर रहे. भाईंदर पश्चिम के श्री हरिचंद्र केशव पाटिल ऊर्फ माधवराव सन 1964 में राई मुर्धा मोरवा ग्रुप ग्रामपंचायत की स्थापना के बाद 11 साल तक सरपंच पद पर रहे.
जब भाईंदर के विकास की बात चली है तो, भाईंदर का प्रथम अख़बार ” भाईंदर भूमि ” को भुलाया नहीं जा सकता. ता : 1 जानवरी 1986 के दिन इसका प्रकाशन प्रारंभ हुआ था और कुछ महीनों के भीतर ही भाईंदर का सर्वश्रेष्ठ अखबार बन गया था.
जिस समय इस अखबार का शुभ आरंभ हुआ, तब भाईंदर शहर पानी की किल्लत, कच्चे रोड, गटर योजना, स्ट्रीट लाइट, अस्पताल, पशुओंकी तरह सफर करते रेलयात्री, बाग बगीचे और फ्लाई ओवर ब्रिज जैसी विविध जनसमस्या से जनता परेशान थी.
उसी वक्त भाईंदर भूमि ने विकास का ब्यूगुल बजाया. यहांकी जनसमस्या को उच्च अधिकारियो तक पहुंचाया. पर्याप्त पानी के लिए 14 साल तक दाढ़ी बाल बढाकर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया. लोगोंको भाईंदर भूमि का मंच मिला लोक एकजुट हुए. और विकास आज आप लोगोके सामने है.
“गुरूजी”, ” लाल साहब ” भाईंदर पत्रकारिता जगत ” भीष्मपितामह ” के नामसे सुप्रसिद्ध श्री पुरुषोत्तम लाल बिहारीलाल चतुर्वेदी ने यहां लंबे समय तक तपस्चर्या की है. यहाके विकास को गति दी है.
अब वक्त आ गया है, उनकी कदर करने का. मैं पत्रकार सदाशिव माछी मेरी राजकीय सृस्टि, चकोर दृस्टि स्तंभ के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक सेवा के तेज-तर्रार एवं ईमानदार अधिकारी, मिरा भाईंदर के आयुक्त एवं प्रशासक श्री संजय काटकर साहब से विनंती करता हूं की मिरा भाईन्दर महानगर पाकीका मुख्य कार्यालय स्थित पत्रकार कक्ष का नाम, ” पत्रकार पुरुषोत्तम लाल बिहारीलाल चतुर्वेदी कक्ष ” रखा जाय. जो उसके वें हक़दार है. विकास की चाह रखने वाली मिरा भाईंदर की प्रबुद्ध जनता एकजुट होकर अवश्य इसके लिए प्रशासनका ध्यान आकर्षित करेंगे